जर्मन राजदूत वाल्टर लिंडनेर करीब साढ़े तीन साल भारत में बिताने के बाद अपने विदाई समारोह में हमारे देश के बारे में एक बेजोड़ सलाह देकर गए।
ये सलाह विदेशों से भारत आने वाले सैलानियों के बारे में थी और इसे हमारे पर्यटन मंत्रालय को ध्यान में रखते हुए अपने अभियान डिजाइन करने चाहिए।
वे बोले=विदेश पर्यटकों को मेरी सलाह है कि वे भारत घूमने के लिए न आएं। भारत को जानने के लिए, भारत को एक्सेस करने के लिए भारत आएं।
भारत आने से पहले भारत को समझना बहुत जरूरी है नहीं तो बहुत निराशा हाथ लगेगी।
भारत ऐसा गुलाब है जो दूर से देखने से बहुत सुहाना लगेगा। लेकिन गुलाब की क्यारी में आकर पहले कांटों से साबका पड़ता है।
उनसे बचते—बचाते हुए गुलाब तक पहुंचना होगा। गुलाब तक पहुंचने से पहले घायल न हो जाएं, इसकी सावधानी बरतनी पड़ेगी।
भारत पहुंचने से पहले यह उम्मीद लेकर न आएं कि बरगद के पेड़ तले साधु समाधि में बैठे मिलेंगे और लोग योगाभ्यास कर रहे होंगे।
रंग—बिरंगे लिबास में होली खेली जा रही होगी और हिंदू मुसलमान ईद पर गले मिल रहे होंगे।
यहां आने पर बेहद गर्मी भी आपको सताएगी, बसों की भीड़ भी आपको रुलाएगी, इन सबके बीच से होते हुए भारत तक पहुंचना होगा।
लिंडनर ने वाकई वह नजरिया दिया है जो हर विदेशी को भारत पहुंचने से पहले लेकर आना चाहिए।
खुद संगीतकार हैं लिंडनेर, भारतीय संगीत के बारे में भी उन्होंने कुछ अलग ही कहा।
बोले—दुनिया के जितने भी संगीत हैं वे एक रिदम को पकड़ते हुए आगे बढ़ते हैं, भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक गजब का ठहराव है जो बहुत दूर तक और बहुत देर तक अपने सुरों को बांधे और साधे रखता है।
और भारत की खूबी क्या है? इस पर उन्होंने बेहद साफगोई से कहा कि जिस भारत को मैं वाकई प्यार करता हूं वह आपस में सदभाव से और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में जीने वाला सांस्कृतिक भारत है।
ऐसा भारत जिसमें आपसी नफरत की गुंजाइश नहीं है।
करीब 130 करोड़ की आबादी वाले भारत की सबसे बड़ी खासियत ही यही है कि यह प्रेम से रहना जानता है।
हम तो हैरत करते हैं कि जिस भारत में हर साल एक ऑस्ट्रेलिया की आबादी जुड़ती जा रही है वह आखिर चलता कैसे है।
इस देश की हर सरकार की सबसे बड़ी चुनौती ही यही है कि यह देश चले तो आखिर कैसे चले। लेकिन यह चल रहा है।
लेखक दिल्ली दैनिक भास्कर में डेपुटी एडीटर हैं।
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