मल्हार मीडिया।
पिछले कुछ सालों के अंदर मध्यप्रदेश में देश की सबसे बड़ी छंटनी हुई है, जिसमें 3 लाख से अधिक शिक्षित युवाओं को नौकरियों से निकाला गया है।
5-7 लाख के करीब उच्च शिक्षित युवाओं से बंधुआ मजदूरों की तरह काम लिया जा रहा है, जिन्हें 4 से 6 हजार रुपए वेतन के नाम पर दिए जाते हैं और जब चाहे तब घर बिठा दिया जाता है।
यह स्थिति वल्लभ भवन से लेकर कलेक्ट्रेटों, कालेजों से लेकर स्कूलों, जिला पंचायतों से लेकर नगर निकायों, स्वास्थ्य विभाग से लेकर एमपीईबी, पालीटेक्निक से लेकर आईटीआई सहित हर विभाग में हैं, जहां आउटसोर्स, जनभागीदारी, अतिथि, ठेका, अस्थाई, मेहमान जैसे नामों से नौकरी देकर उनका न सिर्फ आर्थिक शोषण किया जा रहा है बल्कि मानसिक एवं शारीरिक प्रताडऩा भी दी जाती है।
इस स्थिति के शिकार लोगों में कालेजों एवं स्कूलों में पढ़ाने वाले, कंप्यूटर चलाने वाले, बिजली की सप्लाई करने, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले जनस्वास्थ्य रक्षक, पोलीटेक्निक एवं आईटीआई में मेहमान एवं अतिथि के नाम से तकनीकि ज्ञान देने वाले, पशुओं के डाक्टर गौसेवक, सरकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार करने वाले, रीडिंग करने एवं बिल बांटने, बच्चों युवाओं को खेल सिखाने वाले क्रीड़ाश्री, लाईब्रेरी चलाने वाले, हिसाब किताब देखने वाले, वाहन चलाने वाले, आफिसों में फोटू कापी करने वाले, पानी पिलाने वाले, राजस्व की वसूली करने वाले, वाहन चलाने वाले जैसे सैकड़ों तरह के कर्मचारी हैं, जिनके साथ मध्यप्रदेश में गुजरे 18 साल से गुलामों से जैसा बर्ताव किया जा रहा है। आंगनबाड़ीकर्मियों, आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं, मध्यान्य भोजन वर्कर जिनमें महिलाएं काम करती हैं, उनके साथ सरकार का बर्ताव दोयम दर्जे का है।
केंद्र में मोदीजी की सरकार बनने के बाद इनमें से लाखों लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है तथा 5-7 लाख लोगों को मिलने वाले मामूली से वेतन में भी कटौती की गई है। मोदी सरकार के बाद 8 साल में उभरकर आई यह तस्वीर भयानक तो है ही भाजपा सरकार की बर्बरता एवं अमानवीयता को सामने लाने वाली है।
मप्र का मीडिया प्रदेश भर में गली मोहल्लों में घूमकर विकास की पड़ताल कर रहा है, जनता के बीच मुद्दे ढूंढ रहा है, उनकी राय ले रहा है, चौपाल लगाकर बहसें करा रहा है, इस पूरी प्रक्रिया में जब भी जनता के किसी हिस्से से रोजगार का सवाल आता है, नौकरियों में स्थायित्व का मुद्दा उठता है, छंटनी की बात कोई कहता है, उसे राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति की चीख पुकार से दबा दिया जाता है, बहस से बाहर कर दिया जाता, नतीजा जनता, खासकर युवाओं की ओर से उठाए गए सवाल बहस का हिस्सा नहीं बन सके, किसी भी चैनल ने इन सवालों पर बहस नहीं कराई, किसी भी अखबार ने पहले पेज पर पीड़ित कर्मियों को स्थान नहीं दिया, जबकि पिछले कुछ सालों में सरकारी विभागों से 3 लाख से अधिक उच्च शिक्षित युवाओं की छंटनी कोई छोटा-मोटी घटना नहीं है, लेकिन अफसोश मीडिया ने अपने ही युवाओं की तरफ से किनारा कर लिया है।
रविवार 1 मई को मप्र के पीड़ित कर्मचारी अपने अपने स्तर पर आक्रोश दिवस मनाकर सरकार से सवाल करेंगे कि आखिर हमारे साथ अन्याय क्यों?
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