मल्हार मीडिया ब्यूरो अनूपपुर।
मध्यप्रदेश के अनूपुर जिला स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में छात्रों तथा शिक्षकों ने मिलकर रोस्टर पद्धति और आर्थिक आधार पर आरक्षण के विरोध में मार्च निकाला।
ज्ञातव्य है कि विश्वविद्यालय में इसके पहले भी दो बार प्रशासन के खिलाफ जाकर मार्च निकाला गया था।
5 मार्च को एसटी-एससी एवं ओबीसी शिक्षकों एवं छात्रों के द्वारा विश्वविद्यालय की संचालित कक्षाओं को जबरन बंद करा प्रशासन के कार्यों में अवरुद्ध कर आंदोलन किया गया। विश्वविद्यालय के 2 दर्जन से ज्यादा शिक्षकों ने आंदोलन में अपनी भागीदारी निभाई
सूत्रों की मानें तो विश्वविद्यालय में काफी समय से आपसी तनाव का माहौल चल रहा है। शिक्षकों ने छात्र-छात्राओं के बीच तनाव बनाने के लिए अहम रोल अदा किया है, शिक्षकों ने हर बार आंदोलन की अगुवाई कर छात्र-छात्राओं को संविधान, सरकार और प्रशासन के विरुद्ध भड़का कर आंदोलन करने के लिए विवश किया।
परिणाम स्वरूप विश्वविद्यालय के कार्यप्रणाली और शैक्षिक प्रणाली दोनों पर काफी असर हुआ है। शिक्षकों द्वारा अपने कार्यालयीन समय में आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
साथ ही विश्वविद्यालय से कार्य न करने पर भी उस दिन की हाजरी लगा पैसे लिए जा रहे हैं ऐसे में विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक प्रोफेसर अनिल कुमार, प्रोफेसर गायकवाड पी भार्गव, डां. दिनेश सिंह, डां. संतोष कुमार सोनकर, भास्कर वर्मा, डां. हरीश मीणा नागवंशी, डां. प्रवीण कुमार ऐसे दो दर्जन प्राध्यापकों के द्वारा विश्वविद्यालय में हुए आंदोलन की अगुवाई की जा रही है पिछले दो आंदोलनों के नेतृत्व में अनिल कुमार का बड़ा हाथ माना जा रहा है।
जो कि आर्थिक आधार पर आरक्षण रोस्टर विरोध में पिछले कई महीनों से विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली के विपरीत कार्य कर रहे हैं।
विश्वविद्यालय में प्राध्यापकों के द्वारा बार-बार आंदोलन में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन तथा कर्मचारी नियम का उल्लंघन किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट एवं भारत सरकार के विरोध में हुए आंदोलनों में शिक्षकों द्वारा किन आदेशों का पालन किया जा रहा है यह तो आंदोलनों में शामिल होने वाले शिक्षक के प्राध्यापक ही बता सकते हैं।
भारत सरकार के सीसीएस रूलर का उल्लंघन कर अध्यापक आंदोलन किया। विश्वविद्यालय में 1 माह के भीतर यह तीसरा बड़ा आंदोलन था जब-जब यह आंदोलन विश्वविद्यालय में हुआ विश्वविद्यालय के कुलपति परिसर में उपलब्ध नहीं थे।
आखिर प्राध्यापकों के द्वारा कार्य अवधि में कार्य छोड़ आंदोलन में भाग लेने पर कार्यवाही न होना विश्वविद्यालय प्रशासन की मिलीभगत तथा कुलपति के संरक्षण का जीता जागता उदाहरण है।
समय पर कार्यवाही न होने के कारण आंदोलन धीरे-धीरे उग्र होता जा रहा है। पहले और दूसरे विरोध के बाद 5 मार्च को हुए आंदोलन में हिंदी विभाग में परीक्षा दे रहे पीएचडी के स्कॉलर अश्विन कुमार सिंह को आंदोलन में शामिल छात्रों द्वारा परीक्षा देते समय ही मारपीट की गई।
वहीं अश्विन द्वारा अमरकंटक थाने में की हुई शिकायत के मुताबिक आंदोलन की आड़ में जान से मारने की कोशिश की गई।
ऐसे मामलों में अगर कुलपति द्वारा तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती है तो यह भविष्य में संकट का विषय जरूर बनेगा
विश्वविद्यालय में इस समय अराजकता का माहौल इस हद तक है कि विश्व विद्यालय की छात्राएं एवं महिला प्राध्यापक पूरी तरह डरी एवं सहमी हुई हैं।
आंदोलन के दौरान हुए मारपीट से सामान छात्रों पर गहरा प्रभाव पड़ा है, विश्वविद्यालय में अराजकता फैलाने वाले मारपीट करने वालों को मिलने वाले संरक्षण से अन्य छात्र-छात्राओं पर डर का माहौल है।
आदेशों का अपमान तथा अवहेलना
सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए आदेश तथा भारत सरकार के आर्थिक आधार पर आरक्षण के विरोध में आदेशों के उल्लंघन तथा अपमान का दौर पिछले 1 महीनों से विश्वविद्यालय में लगातार जारी है।
विगत दिनों हुए आंदोलनों में 64 शिक्षकों ने विरोध मार्च में भाग लिया था तथा 5 मार्च को हुए आंदोलन में भी लगभग 2 दर्जन से ज्यादा प्राध्यापकों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय आदेश के विरोध में जाकर आंदोलन कर आदेशों की अवहेलना तथा अपमान किया है।
प्रशासनिक समय पर अपने कार्य को छोड़ सरकार के आदेशों की अवहेलना पर विश्वविद्यालय तथा भारत सरकार क्या कार्रवाई करती है यह तो बड़ा प्रश्न चिन्ह है। ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालय की कुलपति का परिसर में ना होना सोची समझी रणनीति की ओर इशारा कर रहा है, ऐसे में आंदोलनकारियों पर कार्यवाही ना होने पर संरक्षण पर सवालिया निशान तो खड़े होगें।
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