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1983, 84,85 बैच के अफसरों को पछाड़कर ऋषि शुक्ला बने सीबीआई निदेशक

राष्ट्रीय            Feb 02, 2019


मल्हार मीडिया ब्यूरो नई दिल्ली।
सीबीआई के निदेशक पद पर ऋषि कुमार शुक्ला की नियुक्ति हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने उन्हें देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी का मुखिया बनाने का फैसला किया।

रेस में शामिल 1983, 1984 और 1985 बैच के करीब 80 आईपीएस अफसरों के बीच शुक्ला ने बाजी मारकर सबको चौंका दिया। वजह कि अन्य अफसरों की तुलना में उनका नाम चर्चा में नहीं था।

शुक्ला का चयन करने वाली सेलेक्ट कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई और नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल रहे।

यह वही आईपीएस ऋषि कुमार शुक्ला हैं, जिन्हें अभी पांच दिन पहले ही मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने डीजीपी पद से हटा दिया था। यूं तो कांग्रेस की सरकार बनते के बाद ही उनकी विदाई की अटकलें लगने लगीं थीं, मगर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बीते 29 जनवरी को उन्हें डीजीपी पद से हटाकर जहां दोबारा पुलिस हाउसिंग बोर्ड में भेज दिया, वहीं उनकी जगह वीके सिंह को मध्य प्रदेश का नया डीजीपी बनाया था।

शिवराज सरकार में डीजीपी बनने से पहले भी वह मप्र पुलिस हाउसिंड कार्पोरेशन के चेयरमैन रहे। नई सरकार बनने के बाद सियासी गलियारे में चर्चा रही कि कमलनाथ और डीजीपी शुक्ला के बीच पट नहीं रही थी। दूसरी प्रमुख बात थी कि शुक्ला को शिवराज सिंह चौहान का बेहद करीबी आईपीएस अफसर माना जाता है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं के निशाने पर वह काफी पहले से थे।


हालांकि डीजीपी पद से शुक्ला की विदाई के पीछे कांग्रेस आइटी सेल से जुड़े एक युवक की गिरफ्तारी को भी वजह बताया जाता है। बीते 24 जनवरी को दिल्ली पुलिस ने मध्य प्रदेश पहुंचकर अभिषेक मिश्रा नामक युवक को गिरफ्तार कर लिया था। जिसके बाद कांग्रेस नेता भड़क उठे थे। खुद गृहमंत्री बाला बच्चन ने इस पर हंगामा खड़ा करते हुए कहा था कि बगैर मध्य प्रदेश पुलिस को सूचित किए कैसे दिल्ली की पुलिस यहां आकर किसी को गिरफ्तार कर सकती है।

सूत्र बताते हैं कि उस वक्त सीएम कमलनाथ इस बात पर नाराज हुए थे कि सूबे में दिल्ली पुलिस घुस रही है और कैसे मध्य प्रदेश पुलिस को रंचमात्र भनक भी नहीं लग रही। एमपी पुलिस के इंटेलीजेंस पर भी सवाल खड़े हुए थे।

सूत्रों की मानें तो इस घटना के बाद से कमलनाथ ने शुक्ला को हटाने का पूरा मन बना लिया। अभिषेक की गिरफ्तारी के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने दिल्ली पुलिस को पत्र लिखकर गिरफ्तारी के तरीके को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन बताते हुए नाराजगी जताई थी।

1983 बैच के आईपीएस ऋषि कुमार शुक्ला मूलतः ग्वालियर स्थित लाला बाजार के रहने वाले हैं। काडर भी गृह प्रदेश का ही उन्हें 1983 में मिला था। सबसे चौंकाने वाली बात विधानसभा चुनाव के दौरान सामने आई थी, जब वह स्वास्थ्य कारणों से करीब डेढ़ महीने की लंबी छुट्टी पर चले गए थे।

चुनाव के समय इतनी लंबी छुट्टी को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं थीं। उनके इस फैसले से हलकान हुए चुनाव आयोग को उनकी जगह 1984 बैच के आईपीएस वीके सिंह को कार्यवाहक डीजीपी बनाना पड़ा था। विधानसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस की सरकार बनी और सत्ता की बागडोर कमलनाथ के हाथों आई तो शुक्ला के डीजीपी पद से हटने की अटकलें लगने लगीं। पांच दिन पहले 29 जनवरी को कमलनाथ सरकार ने ऋषि शुक्ला को डीजीपी पद से हटाकर हाउसिंग बोर्ड का मुखिया बना दिया।

डीजीपी जैसे पद से हटाकर हाउसिंग बोर्ड का अध्यक्ष बनाने का मतलब है सरकार की ओर से साइडलाइन किया जाना। उन्हें हटाए जाने के पीछे सरकार के सूत्रों ने कानून-व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त रखने का हवाला दिया था।

अगर मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार न बनती तो ऋषि कुमार शुक्ला के नाम एक रिकॉर्ड जुड़ता। यह रिकॉर्ड चार साल तक डीजीपी रहने का बनता। दरअसल, शुक्ला अगस्त 2020 में रिटायर होने वाले हैं। शिवराज सिंह चौहान सरकार ने उन्हें 18 जून 2016 को डीजीपी बनाया था। इस प्रकार वह चार साल तक डीजीपी पद पर रह सकते थे।

हालांकि सूबे में निजाम के बदलने पर उन्हें पद से हटना पड़ा. सीबीआई में उनकी नियुक्ति दो साल के लिए हुई है। मध्य प्रदेश में वह यह डीजीपी सुरेंद्र सिंह के रिटायरमेंट के बाद पुलिस महानिदेशक बने थे। बताया जाता है कि बीजेपी की सरकार में वह इतने भरोसेमंद हैं कि डीजीपी बनने से पहले भी वह कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर शिवराज सिंह चौहान के सलाहकार की भूमिका निभाते थे।


सीबीआई का डायरेक्टर बनने की रेस में 1983, 1984 और 1985 बैच के कई प्रमुख आईपीएस अफसरों का नाम चल रहा था। 1983 बैच के अफसरों की बात करें तो गृह मंत्रालय में विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा) रीना मित्रा, उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओ.पी. सिंह , सीआरपीएफ के महानिदेशक राजीव राय भटनागर का नाम प्रमुख था।

वहीं 1984 बैच के कुछ प्रमुख नामों में एनआईए प्रमुख मोदी, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के महानिदेशक सुदीप लखटकिया, पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के प्रमुख ए.पी. माहेश्वरी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलोजी एंड फॉरेंसिक साइंस के निदेशक एस. जावीद अहमद, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के महानिदेशक रजनीकांत मिश्रा और भारत-तिब्ब्त सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के प्रमुख एस.एस. देसवाल शामिल रहे।

वहीं 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी और मुंबई पुलिस आयुक्त सुबोध कुमार जायसवाल का नाम भी उछल रहा था।

 


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