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कश्मीर फाइल्स:एक बड़े और गंभीर विषय की हल्के तरीके से प्रस्तुति

पेज-थ्री            Mar 11, 2022



ममता यादव।
स्क्रीनप्ले, डायलॉग डिलवरी, स्क्रिप्ट और बेहतर हो सकती थी।
रिसर्च की भी कमी खली।
यही फ़िल्म कोई वेबसिरिज वाला बन्दा डायरेक्ट करता तो जान हलक में अटका देता। कहानी में कसावट की बहुत कमी है।
विषय अच्छा है। एक गम्भीर विषय को बहुत हलके तरीके से पेश कर दिया।
कॉलेज के बच्चे पूरी तरह प्रभावित हैं। सोशल मीडिया से ज्ञान बहुत बटोरा गया।
एकतरफा कन्टेंट।
Rss और मोदीजी खुश हो सकते हैं।
इतनी गम्भीर फ़िल्म में कहीं-कहीं न चाहकर भी हंसी आ जाती है और लगता है पैसा और समय दोनों खराब किये।
थोड़ी दिलेरी संस्थानों औऱ कैरेक्टर के असली नाम बताने में दिखा देते।
कृष्णा जो कश्मीरी पंडित है उसे बिहारी कन्हैया कुमार की तरह पेश कर दिया आखिर में कश्मीर पर स्पीच अच्छी है।
इस कृष्णा नाम के कैरेक्टर में मुझे तो भारत की जनता खासकर मोबाइल के साथ बड़ी हुई युवा पीढ़ी नजर आती है, जिसे जो समझा दिया जाए सुना दिया जाए वही सच मान लेती है, चाहे इधर का हो या उधर का।
नकली सेकुलरिज्म को ठीकठाक बेपर्दा कर दिया है।
बाकी 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के पहले यह फ़िल्म आती तो भाजपा उत्तरप्रदेश में कुछ और सीटें खींच ले जाती।
कश्मीर फ़ाइल देखने जाएं तो दिमाग और आंखें खोलकर जाएं और खुले दिमाग-आंखों से ही बाहर निकलें।
मिथुन जैसे कलाकार इसमें बस खर्च होते नजर आए। दर्शन कुमार का आखिरी सीन और कश्मीर पर स्पीच याद रह जाते हैं।
मीडिया को गालियां देना जनता के साथ बॉलीवुड का भी शगल बन गया है।
दिखाए तो मुसीबत न दिखाए तो मुसीबत।
इस बीच कोई यह नहीं कहता कि जो अखबार में खबर छपने के बाद तुम्हें जानकारी मिली है वह भी तो एक पत्रकार ने ही दी है।
भावुक लोगों को हार्टअटैक आ सकता है या डिप्रेशन में जा सकते हैं।
हमारा नजरिया फिल्मों को देखने का अलग होता है।
देख सकते हैं अगर देखना चाहें तो कश्मीर फाईल
जय हिंद! जय भारत!

 



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