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अखिलेश बने राष्ट्रीय अध्यक्ष,मुलायम मार्गदर्शक

राजनीति            Jan 01, 2017


मल्हार मीडिया ब्यूरो।
उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शक्ति प्रदर्शन के बाद सत्ताधारी समाजवादी कुनबे में घमासान अब भी जारी है। लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क मेें समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधियों के राष्ट्रीय अधिवेशन में रामगोपाल यादव ने नेताजी मुलायम सिंह यादव को पार्टी का मार्गदर्शक और उनकी जगह अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित किया। इसके साथ ही उन्होंने शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद तथा अमर सिंह को पार्टी से हटाने का भी प्रस्ताव भी पार्टी कार्यकर्ताओं के ध्वनि मत से पास किया।


वहीं अखिलेश खेमे द्वारा बनाए गए नए प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम अपने समर्थकों के साथ समाजवादी पार्टी के कार्यालय पर पहुंचकर उसपर कब्जा कर लिया है। रविवार को लखनऊ में अधिवेशन के दौरान रामगोपाल यादव ने शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया था। पार्टी कार्यालय के बाहर भारी संख्या में पुलिस की तैनाती कर दी गई है।


रामगोपाल की इस घोषणा के बाद मुलायम सिंह यादव ने रविवार के अधिवेशन को असंवैधानिक करार देते हुए इसमें लिए फैसले को रद्द कर दिया। मुलायम ने अब लखनऊ के उसी जनेश्वर मिश्र पार्क में 5 जनवरी को पार्टी अधिवेशन बुलाया है। इसके साथ ही उन्होंने रामगोपाल यादव को छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है। साथ ही अधिवेशन में शामिल होने पर पार्टी महासचिव और राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल और सपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरनमय नंदा को भी पार्टी से निकाल दिया है।

वहीं अखिलेश यादव ने इस राष्ट्रीय अधिवेशन में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, 'नेताजी ने मुझे मुख्यमंत्री बनाया था और इन लोगों ने मेरे खिलाफ साजिश करके न केवल पार्टी को नुकसान पहुंचाने का काम किया, वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष जी के सामने भी संकट पैदा किया। नेताजी के खिलाफ साजिश हो तो मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं ऐसे लोगों के खिलाफ बोलूं। लोगों ने अपने घर से टाइपराइटर लाकर मेरे खिलाफ चिट्ठियां छपवाईं।'

इसके साथ ही उन्होंने कहा, मैं नेताजी का जितना सम्मान पहले करता था, आगे राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर उससे कहीं ज्यादा सम्मान करूंगा। नेताजी का जो स्थान है, वह सबसे बड़ा है। मैं नेताजी का बेटा हूं और रहूंगा, यह रिश्ता कोई खत्म नहीं कर सकता। परिवार के लोगों को बचाने के लिए जो करना होगा, वह करूंगा।'


पार्टी कार्यकर्ताओं को अधिवेशन में शामिल होने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा, कुछ लोग ऐसे हैं, जो चाहते हैं कि सपा की सरकार नहीं बने। पार्टी बचाने की मेरी जिम्मेदारी है और वह मैं करता रहूंगा। मैंने अपने सभी नेताओं को जिम्मेदारी दी है कि एक बार और सपा की सरकार बने। सरकार जब बनेगी और बहुमत आएगा तो सबसे ज्यादा नेताजी को खुशी होगी।'

इससे पहले सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह ने इस अधिवेशन को असंवैधानिक करार देते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं से इसमें शामिल नहीं होने को कहा था। हालांकि उनकी यह अपील लगभग अनसुनी ही कर दी गई और अधिवेशन में पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ दिखी। इस बीच सूत्रों के मुताबिक, शिवपाल ने रविवार की सुबह मुलायम सिंह से मुलाकात कर इस्तीफे की भी पेशकश की।


अखिलेश खेमे के नेता रामगोपाल यादव की बुलाई इस बैठक को ही पार्टी में झगड़े की नई जड़ माना जा रहा था, जिसकी वजह से पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह ने सीएम अखिलेश और रामगोपाल को पार्टी के छह साल के निष्कासित कर दिया था। हालांकि इसके बाद सियासी शह-मात के खेल में 200 से ज्यादा विधायकों के समर्थन से मुख्यमंत्री अखिलेश अपने पिता व सपा प्रमुख पर भारी पड़े।


इसके बाद सुलह की कोशिशों शुरू हुई और मुख्यमंत्री अखिलेश और रामगोपाल यादव का सपा से निष्कासन वापस ले लिया गया। वहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने शनिवार को मीडिया से बातचीत में बताया था कि अब चुनावों के लिए मुलायम सिंह और अखिलेश यादव मिलकर उम्मीदवारों की लिस्ट बनाएंगे। हालांकि इसके साथ ही उन्होंने साथ ही बताया था कि रामगोपाल यादव ने अपना राष्ट्रीय अधिवेशन रद्द कर दिया है।

हालांकि उनकी यह बात तुरंत ही गलत साबित हुई, जब रामगोपाल यादव ने साफ किया कि यह अधिवेशन पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक ही होगा। बस इसका स्थान लॉ कॉलेज से बदलकर कर जनेश्वर मिश्र पार्क कर दिया गया है। यह पार्क आकार में काफी बड़ा है और सीएम अखिलेश ने सारे पार्टी कार्यकर्ताओं को इसमें शामिल होने का कहा था। ऐसे में यहां किसी बड़े ऐलान की संभाववनाओं के मद्देनजर सारी निगाहें इस पर टिकी थीं।

सपा में दो-फाड़ के बीच शनिवार को पिता-पुत्र की अलग-अलग बुलाई बैठक को एक तरह के शक्ति परिक्षण के तौर पर देखा जा रहा था, जिसमें अखिलेश ने साबित कर दिया कि पार्टी पर अब उनकी ही पकड़ है। अखिलेश की बैठक में जहां 220 एमएलए व एमएससी शामिल हुए, तो वहीं मुलायम के बुलाए बैठक के लिए पार्टी दफ्तर पहुंचने वालों में महज 18 मंत्री और विधायक, तो करीब 60 से ज्यादा प्रत्याशी ही शामिल थे। बता दें कि यूपी विधानसभा में सपा के पास कुल 229 विधायक और 100 सदस्यीय विधानपरिषद में सपा के 67 सदस्य हैं।


इस तरह सपा में जारी वर्चस्व की इस लड़ाई में पिता मुलायम अपने बेटे अखिलेश के सामने कमजोर साबित हुए। सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने पार्टी दफ्तर में शनिवार 10.30 बजे संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई थी, लेकिन वह मीटिंग शुरू ही नहीं हो सकी। मुलायम सिंह जिस पार्टी को अपनी और सिर्फ अपनी पार्टी कह रहे थे, वह भी उनसे मुंह मोड़ती दिखी और पार्टी दफ्तर के आगे सन्नाटा सा ही पसरा रहा। पार्टी दफ्तर में सुरक्षा अधिकारियों को 402 लोगों की लिस्ट दी गई थी, लेकिन 12 बजे तक बमुश्किल 100 लोग ही यहां पंहुचे। उसमें भी संगठन के लोग ज्यादा थे, विधायक और प्रत्याशी कम। यहां देखने वाली बात यह भी रही कि मुलायम द्वारा घोषित 395 प्रत्याशियों में से एक चौथाई भी मुलायम का साथ नहीं दिखे। वहीं अब तक जो विधायक और प्रत्याशी पार्टी दफ्तर पंहुचे भी थे, उनमें से ज्यादातर मुलायम सिंह को ही नसीहत देते दिखे। मुलायम कैंप के ऐसे ही एक विधायक बाबू खान का कहना है कि मुलायम सिंह ने भूल कर दी।


इस शक्ति में मुलायम खेमे की हार के साथ ही पिता-पुत्र के बीच पार्टी में सुलह की कोशिशें शुरू हुईं और अखिलेश यादव अपने पिता से मिलने उनसे घर पहुंचे। पिता-पुत्र की इस मुलाकात में वरिष्ठ सपा नेता आजम खान की अहम भूमिका मानी जा रही है। उन्होंने ही पहले पिता मुलायम और फिर अखिलेश से मुलाकात कर बीचबचाव की कोशिश की। अखिलेश जिस गाड़ी से मुलायम सिंह के घर पहुंचे, उसमें भी अखिलेश के साथ आजम खान और अबु आजमी मौजूद थे।


अखिलेश ने यहां पिता के सामने सुलह के लिए अमर सिंह को पार्टी से निकालने की शर्त रखी और 12 सितंबर से पहले के हालात बहाल करने की मांग की। दरअसल तभी से अखिलेश की चाचा शिवपाल के बीच खुली रस्साकशी शुरू हुई थी। अखिलेश यादव की इन शर्तों के बाद मुलायम सिंह ने अपने भाई एवं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को फोन कर अपने घर बुलाया और फिर थोड़ी देर बातचीत चलने के बाद बैठक खत्म हो गई।

राष्ट्री



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