मल्हार मीडिया भोपाल।
मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने चुनाव आयोग की विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया (SIR) पर सवाल उठाते हुए इसे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन नहीं, बल्कि सेलेक्टिव इंटेंसिव रिमूवल बताया।
उन्होंने आरोप लगाया कि आयोग चुनिंदा मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाने की योजना पर काम कर रहा है। भोपाल में अपने आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए सिंघार ने कहा कि बिहार में लाखों मतदाताओं को वोटर लिस्ट से हटा दिया गया, जिनमें बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर शामिल थे।
मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही होने जा रहा है। सिंघार ने लोकसभा में 20 जुलाई 2023 को दिए गए एक सरकारी जवाब का हवाला देते हुए बताया कि मध्यप्रदेश के करीब 50 लाख लोग प्रदेश से बाहर काम करते हैं। उन्होंने सवाल उठाया, क्या अब उन्हें सिर्फ वोट देने के लिए एमपी वापस आना पड़ेगा?
क्या बाहर रहने वालों को गैर-निवासी मानकर उनके नाम हटा दिए जाएंगे? सिंघार ने आरोप लगाया कि यह 50 लाख लोगों के नाम काटने की सुनियोजित साजिश है। जब 16 लाख वोटों में गड़बड़ी संभव है, तो 50 लाख नामों को हटाने की क्या गारंटी है?
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि आयोग हर साल स्पेशल समरी रिवीजन (SSR) के तहत नाम जोड़ने और हटाने की प्रक्रिया करता आया है। तो फिर अचानक SIR की जरूरत क्यों महसूस हुई? उन्होंने पूछा। सिंघार ने कहा कि अगर चुनाव आयोग को अपनी ही प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है, तो जनता उस पर विश्वास कैसे करेगी? उन्होंने बताया कि 19 अगस्त की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने वोट चोरी के कई सबूत पेश किए थे, लेकिन अब तक न राज्य निर्वाचन आयोग और न ही भारत निर्वाचन आयोग ने कोई जवाब दिया। उनका कहना था कि बीजेपी ने ही आयोग की ओर से प्रतिक्रिया दी जैसे वह उसका प्रवक्ता हो।
सिंघार ने कहा कि दो महीने के भीतर प्रदेश में 16 लाख वोटर बढ़ गए, और 9 जून 2025 को आयोग ने एक पत्र जारी कर कहा कि अंतिम सूची के बाद जो नाम जोड़े जाएंगे, उनकी जानकारी न वेबसाइट पर डाली जाएगी और न सार्वजनिक की जाएगी। उन्होंने कहा, जब जानकारी ही छिपाई जाएगी, तो पारदर्शिता कहां बचेगी? सिंघार ने दावा किया कि इसी तरह के निर्देश अन्य राज्यों में भी जारी किए गए हैं।
सिंघार ने कहा कि मध्यप्रदेश में 5 करोड़ 65 लाख मतदाता और 65 हजार मतदान केंद्र हैं। सिर्फ एक महीने में इतनी बड़ी संख्या की जांच और दस्तावेज सत्यापन कैसे संभव है? उन्होंने कहा कि आयोग का यह निर्णय अव्यवहारिक और जल्दबाजी भरा है, जो मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।
आदिवासी, दलित और ओबीसी मतदाता निशाने पर
सिंघार ने आरोप लगाया कि भाजपा आदिवासी मतदाताओं को सूची से बाहर करने की रणनीति बना रही है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के पास न इंटरनेट है, न कंप्यूटर। उनके तीन लाख वनाधिकार पट्टे रद्द किए जा चुके हैं यानी 12 से 18 लाख वोट हटाने की तैयारी पहले ही हो चुकी है। सिंघार ने चेतावनी दी कि यह साजिश यहीं नहीं रुकेगी। दलित, अल्पसंख्यक और ओबीसी समुदाय के जो लोग रोज़गार के लिए बाहर गए हैं, उन्हें जब BLO घर पर नहीं पाएगा, तो उनके नाम भी मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे।
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