डॉ राकेश पाठक।
देश के अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए हलचल तेज़ हो गयी है। दोनों तरफ से दलित उम्मीदवार मैदान में हैं सो मामला दिलचस्प हो गया है।
योग्यता के बहाने "अन्तरात्मा की आवाज़" पर मतदान करने के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं। वैसे तो राजनीति में "अंतरात्मा" नाम की चिड़िया विलुप्त ही मानी जाती है। (सिर्फ राजनीति को कोसना ठीक नहीं बाकी भी कहीं नही मिलती अंतरात्मा) लेकिन बात निकली है तो आइए जानते हैं कि ये "अंतरात्मा की आवाज़" का चक्कर क्या है ? आखिर ये आवाज़ सबसे पहले कब, क्यों ,किसने लगाई थी ? इस चुनाव में ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला फिर भी ये जान लेना समीचीन होगा कि तब क्या क्या हुआ था।
बात सन 1969 की है। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ज़ाकिर हुसैन का अचानक इंतकाल हो गया। उपराष्ट्रपति वराह गिरि वेंकट गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाये गए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहतीं थीं कि गिरि ही राष्ट्रपति बनें। उस दौर में कांग्रेस पार्टी में एक सिंडीकेट बन गया था जो इंदिरा को "गूंगी गुड़िया" मानकर पटखनी देने की फिराक में था। सिंडीकेट कामराज,एस के पाटिल,अतुल्य घोष सरीखे खांटी कांग्रेसी दिग्गज थे जो इंदिरा गांधी कको आने इशारों पर चलाना चाहते थे लेकिन इंदिरा अपनी स्वतन्त्र छवि बना रहीं थीं।
पार्टी अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा, कामराज, मोरारजी देसाई सहित तमाम दिग्गज इस फेर में थे कि इस चुनाव में इंदिरा को धूल चटा दी जाए। पार्टी ने इंदिरा की मर्ज़ी के खिलाफ नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार घोषित कर दिया।
इंदिरा ने लगायी 'अंतरात्मा' की आवाज़
इंदिरा गांधी ने दुस्साहसिक कदम उठाया और वी वी गिरि को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद की लड़ाई में उतार दिया। इसी मौके पर इंदिरा गांधी ने वो ऐतिहासिक अपील की जो आजतक याद की जा रही है। इंदिरा ने अपील की "कांग्रसजन अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर मतदान करें।" इंदिरा गांधी ने तब सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से (गैर कांग्रेसी भी) सीधे संपर्क किया।
16 अगस्त को राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान हुआ और 20 अगस्त 1969 को मतों की गिनती हुई। अंततः इंदिरा गांधी के प्रत्याशी वी वी गिरि चुनाव जीत कर राष्ट्रपति बने और कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी हार गए। रेड्डी लोकसभा अध्यक्ष और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष तक रह चुके थे और सिंडिकेट के दम लगाने पर भी खेत रहे।
गिरि राष्ट्रपति बनने से पहले केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के राज्यपाल रहे थे। श्रम मंत्री के रूप में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा था। आज भी मजदूरों के हक़ की कई बातों का श्रेय गिरि को ही जाता है। वे आयरलैंड में कानून की पढ़ाई करने गए थे और तब के महान क्रांतिकारियों से संर्पक में रहे थे। देश लौट कर गांधी जी के साथ स्वतंत्रतता आंदोलन में कूद गए।
कांग्रेस का पहला विभाजन
इस चुनाव का दूरगामी असर हुआ। पहला तो यह कि इंदिरा गांधी "गूंगी गुडिया" की छवि से न केवल मुक्त हो गईं बल्कि सिंडीकेट के दिग्गजों को धूल चटाकर निर्द्वंद नेता बन गईं। दूसरा यह कि कांग्रेस पार्टी विभाजन के कगार पर पहुंच गई।राष्ट्रपति चुनाव के बाद नवंबर 1969 में पार्टी दो फाड़ हो गयी। अपने गठन के लगभग 84 साल बाद कांग्रेस पार्टी पहली बार बाकायदा विभाजित हुई।
जनता काल में राष्ट्रपति बने रेड्डी
संन 1969 में हारने वाले नीलम संजीव रेड्डी के भाग्य में राष्ट्रपति बनना लिखा ही था। आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और तब नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति बने।
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