हेमंत कुमार झा।
नेहरू-गांधी खानदान दशकों तक ब्राह्मणवाद के राजनीतिक वर्चस्व का शिखर प्रतीक रहा है। 90 के दशक में भाजपा इस जमीन पर उसके लिये चुनौती बन कर उभरी और सवर्णों को अपने पाले में ला कर एक बड़ी राजनीतिक शक्ति बन गई। राजीव गांधी के असमय निधन और उत्तर भारत में नरसिंह राव के राजनीतिक प्रयोगों ने इस प्रक्रिया में खासा योगदान दिया।
मंदिर और मंडल के शोर में भ्रमित कांग्रेस अपनी पतनगाथा लिखती रही और भाजपा ब्राह्मणवाद के राजनीतिक वर्चस्व का प्रतीक बनती गई। उसने बिहार में लालू और यूपी में मुलायम के बरक्स अपने को खड़ा कर कांग्रेस को हाशिये पर डाल दिया। यह इतना बड़ा परिवर्त्तन था कि आज कांग्रेस लालू और मुलायम के पीछे दोयम दर्जे की शक्ति बन कर खड़ी है और अस्तित्व के लिये जूझ रही है।
आज भाजपा शिखर पर है, ब्राह्मणवादी शक्तियां उसके साथ हैं, उसके घोषित, अघोषित राजनीतिक, सांस्कृतिक उद्देश्य हैं, जो अपने मौलिक संदर्भों में कुछ अधिक विकृत, कुछ अधिक प्रतिगामी हैं। हिदुत्व के संरक्षक की उसकी छवि उसे ऐसा बल देती है जिसकी काट फिलहाल कांग्रेस के पास नहीं।
राहुल गांधी के जनेऊधारी होने का कांग्रेस का दावा अपनी उसी खोयी जमीन को पाने की व्यग्र कोशिश है जो उसे एक बार फिर सवर्णों के दिल में जगह दिलवा सकती है। लेकिन, यह इतना आसान नहीं।
कांग्रेस की मुश्किल यह है कि नेहरू की समन्वयवादी राजनीति की वैचारिक पृष्ठभूमि में वह न तो उग्र हिंदुत्व का झंडा थाम सकती है, न उग्र पिछड़ावाद को पोषण दे सकती है। वैसे भी, पिछड़े कभी कांग्रेस का वोटबैंक नहीं रहे।
मुसलमानों और दलितों, जो कभी कांग्रेस का वोटबैंक रहे थे, का छिटकना उसके लिये बहुत भारी पड़ा। लेकिन, सवर्णों का साथ छोड़ना उसके हाशिये पर जाने का सबसे बड़ा कारण रहा।
मोदी-शाह की राजनीतिक कलाबाजियां और जेटली की हाहाकारी आर्थिक नीतियों ने देश में निराशा का एक नया माहौल पैदा किया है। सवर्णों का एक बड़ा हिस्सा भी इससे प्रभावित है और मोहभंग की स्थिति से गुजर रहा है। लेकिन, जनेऊ दिखला कर राहुल गांधी इस मोहभंग को कैश कर पाएंगे, इसमें संदेह है। संदेह इसलिये, कि नाटक करने में, वाजिब मुद्दों से लोगों का ध्यान भटका कर भ्रमित करने में वे मोदी का मुकाबला नहीं कर सकते।
राहुल गांधी का और कांग्रेस का जनेऊ प्रेम इस देश के उन करोड़ों युवाओं के जीवन और सपनों के साथ खिलवाड़ है, जो वर्तमान सरकार की आर्थिक, सांस्कृतिक नीतियों से इत्तेफाक नहीं रखते।
आप मोदी को उन्हीं की पिच पर एलबीडब्ल्यू नहीं कर सकते। जनेऊ के प्रति आस्था को नई जमीन देना और इस उस मंदिर के चक्कर लगाना मोदी की ही पिच पर, उन्हीं के दर्शकों के सामने, उन्हीं के तय किये नियमों के अनुसार मैच खेलना है।
लेखक मगध विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।
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