राघवेंद्र सिंह।
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी,
सो नृप अबस नरक अधिकारी।
रामचरित्र मानस में गोस्वामी तुलसीदास पहले ही कह गए हैं जिस राज्य में प्रिय प्रजा दुख में हो उसके शासक अवश्य ही नरक के अधिकारी होंगे। हम देश की बात नहीं कर रहे हैं राज्य स्तर पर ही अगर इस बारे में सोचा जाए तो जो लोग शासक हैैं उनके लिए आज तुलसीदासजी किसी दुश्मन से कम नजर नहीं आ रहे होंगे। राष्ट्र में 80 रुपए लीटर पेट्रोल पहुंच गया है। जीएसटी के चलते विकास दर घटने से भविष्य भयावह होने के संकेत मिल रहे हैं। लेकिन इस पर आर्थिक विशेषज्ञ नुक्ताचीनी करेंगे। हम फिर लौटते हैं मध्यप्रदेश पर। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की भोपाल में क्लास के बाद भी संगठन और सरकार से अभी तक जमीनी स्तर पर सकारात्मक संकेत नजर नहीं आ रहे हैं
शाह की प्रदेश यात्रा के बाद प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे मध्यप्रदेश लौटने तो लगे हैं। मगर लौट कर आए सहस्रबुद्धे कुछ असरदार नजर नहीं आ रहे हैं । कोर कमेटी की दो बार बैठक हो चुकी है। न तो जनता के हित में जमीन पर काम दिख पा रहा है और संगठन स्तर पर कार्यकर्ताओं के अच्छे दिन लौट पा रहे हैं। किसानों की आत्महत्या का सिलसिला जारी है। अस्पतालों में न डॉक्टर हैं न दवाएं। स्कूल में बच्चे तो हैं लेकिन पढ़ाने वाले नहीं हैं। नदी, तालाब, बांध सूख रहे हैं। केवल सरदार सरोवर बांध के चक्कर में जरूर गांव डूब रहे हैं। रेत बारिश में भी प्रतिबंध के बाद बाहर निकल रही है और पहाड़ खोदे जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जरूर नई बोतल में पुरानी शराब डालने की कोशिश की है। रेत खनन और पहाड़ खोदने में माफिया के साथ बदनाम हुई सरकार की इज्जत बचाने के लिए विंध्य क्षेत्र के दौरे में मुख्यमंत्री ने जो कहा उसका लब्बोलुआब यह है कि रेत खनन और पहाड़ खोदने का काम अब पंचायत के जरिए होगा। सुनने में पंच-सरपंचों को अच्छा लग सकता है। लेकिन इसमें नया कुछ नहीं है। दिग्विजय सिंह के शासनकाल में कांग्रेस सरकार इस नीति पर काम कर चुकी है। भाजपा 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में जब सरकार में आई तो रेत और पहाड़ खोदने का काम पंचायत राज से छीन लिया गया।
जाहिर है इसमें कुछ खामियां होंगी। वरना पंचायतों को मजबूत करने वाला यह फैसला बदला नहीं जाता। वह गड़बड़ था तभी तो भाजपा सरकारों ने उसे बदला और अगर खामियां बनी हुई हैं तो उस पर दोबारा अमल करने का कोई मतलब नहीं है। कहा जा सकता है कि जो भ्रष्टाचार और माफियागिरी के आरोप सरकार पर लगते थे अब वे पंचायतों की तरफ ट्रांसफर हो जाएंगे। जाहिर है रेत भ्रष्टाचार के मामले में अब पंच-सरपंच भी अपना सिर कढ़ाई में करें उंगलियां तो घी में डाल ही सकते हैं।
हालांकि मुख्यमंत्री की मंशा पंचायत स्तर पर रेत के जरिए रोजगार देने की है। ऐसे में चुनाव तक भ्रष्टाचार की गटर में पंच-सरपंच भी डुबकी लगाते दिखें तो आश्चर्य नहीं होगा। कह सकते हैैं सत्ता और प्रशासन का भले ही विकेंद्रीकरण भाजपा सरकार ने न किया हो। रेत और पहाड़ के जरिए भ्रष्टाचार-माफियागिरी को जरूर पंचायतों तक ले जाने में सफलता मिल सकती है। दरअसल रेत तो सत्ता से मुंह लगे लोग डम्परों में भरकर भारी मुनाफा कमाएंगे ही अब इसमें थोड़ी सी खुरचन पंचायतों को भी मिलने के रास्ते खुलेंगे।
हमने बात शुरू की थी जसु राज प्रिय प्रजा दुखारी...14 साल के भाजपा राज में अन्नदाता लगातार आत्महत्या कर रहा है। ऊपर से इंद्र देव भी नाराज हैं। आधा मध्यप्रदेश सदी के भयंकर सूखे की चपेट में आता दिख रहा है। सरकार और प्रशासन के स्तर पर इससे बचने की तैयारी में बयान और बैठक से आगे बात नहीं बड़ी है। पीने का पानी बारिश में लोगों को प्यासा मारने के लिए खड़ा हो गया है। इस तरफ से राजा और मंत्रिमंडल ने मानो आंखें मूंद रखी हैं। सूबे के चंबल और बुंदेलखंड में पानी अभी से पाताल में पहुंच रहा है। कुएं, बावड़ी, नलकूप और बांध सूखे पड़े हैं। ऐसे में पानी के लिए पीएचई महकमा और स्थानीय निकाय के पास बातें बड़ी-बड़ी हो सकती हैं,मगर कोई एक्शन प्लान नहीं है।
रेत की बात करें तो बुंदेलखंड से मालगाड़ी की बोगियों में राज्य के बाहर रेत की सप्लाई की खबरें आई थीं लेकिन क्या पानी भी रेत की बोगियों से बुंदेलखंड और चंबल की प्यास बुझाएगा? सरकार आशावादी है इसलिए उसे चलाने वालों को उम्मीद है कि 24 सितंबर तक मानसून विशेषज्ञों के मुताबिक बारिश होगी। लेकिन विदा होती बारिश इतनी भी नहीं होगी कि खेतों की प्यास बुझा दे और बांधों को लबालब कर दे। लेकिन सावन के अंधों को कोई क्या समझाए? यहां तो बाढ़ पर्यटन और सूखा महोत्सव मनाने वाले मंत्री भी मिल जाएंगे और अफसर भी। उनके लिए तो हर आपदा एक लॉटरी खुलने की तरह होती है और अब तो अमिताभ बच्चन का कौन बनेगा करोड़पति वाले फार्मूले भी बाजार में आ गए हैं।
हर काम इवेंट का है। उज्जैन महाकुंभ हो या नर्मदा यात्रा या नर्मदा किनारे सात करोड़ से अधिक पेड़ लगाने का। अब वो लगे हों या नहीं इससे किसी को ज्यादा मतलब नहीं है क्योंकि हर काम एक इवेंट है। प्रदेश की सरकार और भाजपा का संगठन इस मामले में अगर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उतरे तो सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम से ही हार सकता है।
जानकार तो यह भी कहते हैं कि वह हारेगा भी तो अपने लीडर की इज्जत बचाने के लिए। वरना यहां इतने बड़े खिलाड़ी हैं कि पीएम के इवेंट मैनेजमेंट को भी मात दे दें। अलग बात है कि सरकार से पूछा जा रहा है कि नर्मदा किनारे जो पेड़ लगाए थे उनकी गिनती कराओ। अब भला ये कोई बात हुई। एक तो पेड़ लगाओ फिर उन्हें गिनवाओ भी। राजनैतिक पंडित कहते हैं कि ये पेड़ भले ही नजर न आएं लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले जब इनका भुगतान होगा तो फसल वोट के रूप में जरूर मिलेगी। पेड़ सूखे तो वोट के फल तो आएंगे।
मध्यप्रदेश कांग्रेस के राजा भी अपनी कार्यकर्ता रूपी प्रजा को दुख ही दुख दे रहे हैं। एक राजा जरूर नर्मदा यात्रा पर निकल रहे हैं। मां नर्मदा की कृपा हुई तो राजा और कांग्रेस दोनों के भाग्य बदल सकते हैं। लेकिन अभी तो कांग्रेस के कार्यकर्ता नेताओं के इंतजार में हैं। सवा साल बाद चुनाव होना है। प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश के बाद हमने पिछले कालम में दीपक बाबरिया की नियुक्ति का जिक्र किया था।
अब कांग्रेसी हलकों में नए अध्यक्ष का इंतजार बेसब्री से हो रहा है। पार्टी नया अध्यक्ष नहीं बनाए तो कम से कम वर्तमान अध्यक्ष अरुण यादव को निर्देश दे दे कि अगला चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में होगा। ऐसे में ऊहापोह की स्थिति खत्म होगी और अरुण यादव भी ब्लॉक स्तर तक संपर्क अभियान शुरू कर सकते हैं। नया अध्यक्ष बनने की स्थिति में उसके पास पूरे राज्य का चुनाव पूर्व दो बार न सही एक अवसर तो मिलना चाहिए।
वह कार्यकर्ताओं से संपर्क कर उन्हें सक्रिय करे। साथ ही किसान, युवाओं से जुड़े मुद्दे पर एक दो बड़े आंदोलन कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके। इससे जनता को लगेगा कि भाजपा के अलावा उनकी चिंता करने वाला एक और दल भी है। दूसरी तरफ भाजपा भी कांग्रेस के मुकाबले सक्रिय होकर अपनी घोषणाओं पर अमल भी करेगी। अभी तो यह हाल हैैं कि अंत्योदय समितियों में करीब एक लाख कार्यकर्ताओं को काम देने का फैसला तो हुआ लेकिन नियुक्तियां नहीं हुईं। कांग्रेस सक्रिय होगी तो भाजपा कार्यकर्ताओं के दिन फिर सकते हैैं।
सोशल मीडिया पर यह लाइन बहुत चल रही है कि ‘नोटबंदी, जीएसटी, घटता उत्पादन, बढ़ती महंगाई सपनों के सौदागर को जन्मदिन की बधाई!
लेखक IND24 समाचार चैनल के समूह संपादक हैं।
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