छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
हमेशा चुनावी मोड में रहने वाली भाजपा ने मध्यप्रदेश में अपनी चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं। अन्दरूनी तौर पर सर्वे के काम चल रहे हैं। वहीं भाजपा विधायकों की जनता के बीच छवि को टटोला जा रहा है। विधायकों की रिपोर्ट से भाजपा आलाकमान संतुष्ट नहीं है। इस कारण उन नये चेहरों की तलाश भी शुरू हो गई है जो भाजपा को पुनः सत्ता मे पंहुचाने में सक्षम हों। अगर ऐसा होता है तो चुनिंदा विधायकों को छोड़ अधिकांश के टिकिट कटने की संभावानायें हैं।
एक समय में कांग्रेस के दबदबे वाले बुंदेलखंड में आज भाजपा का राज है। उमाभारती ने कांग्रेस के मिथक को तोड़ने की नीव बुंदेलखंड से ही रखी थी। पिछले वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड की 26 में से 20 सीटो पर भाजपा ने विजय हासिल की थी जबकि कांग्रेस के खाते में मात्र 6 सीटें आई थीं। इस जीत में जातिगत समीकरणो का अहम येागदान रहा था।
भाजपा ने अधिकांश पिछडा वर्ग के प्रत्याशियो पर दांव अजमाया था जबकि कांग्रेस अपने परम्परागत ठाकुर-बाहमण पर भरोसा करती रही। भाजपा ने 26 में से 10 सीटों पर पिछड़ा, बाहमण 3, ठाकुर 3 और जैन समाज से 3 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था। 6 सुरक्षित सीटों में से एक पर भी अहिरवार समाज को टिकिट ना देकर अन्य हरिजनो जैसे खटीक, प्रजापति आदि पर दांव लगाया। भाजपा ने सभी सुरक्षित सीटे जीती। वहीं कांग्रेस ने 6 ठाकुर, 7 बाहमण और 7 पिछडा वर्ग से प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। भाजपा की इस बदलती चाल से मत प्रतिशत भी बढा और विधायकों की संख्या भी 2008 के चुनाव के मुकाबले बढ़ीं।
आंकड़ों को खंगाला जाये तो 2008 के विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड के सागर संभाग की 26 सीटो में भाजपा विधायको की संख्यां 14 थी जबकि कांग्रेस के 8 विधायक थे। उस समय उमाभारती की भाजश भी मैदान में थी जिसके 2 विधायक विजय हुये थे। वहीं सपा से 1 व एक निर्दलीय भी विधानसभा पंहुचे थे। मत प्रतिशत की बात की जाये तो 2008 में भाजपा को 30.17 प्रतिशत मत हासिल हुये थे वही कांग्रेस को 25.69, भाजश को 12.37 एवं बसपा को 14.33 प्रतिशत मत मिले।
उमाभारती के भाजपा में शामिल होने का लाभ भाजपा को पिछले 2013 के चुनाव में मिला। मत प्रतिशत 44.88 प्रतिशत पंहुच गया। कांग्रेस के भी मत प्रतिशत में जबरजस्त उछाल आया। कांग्रेस को 36.38 प्रतिशत मत हासिल हुये। वह भी उन परिस्थितियो मंे जब कांग्रेस की खेमेबाजी के कारण कांग्रेस का विरोध करने वाले कांग्रेसी ही थे। पिछले चुनाव में भाजपा के 6 विधायक 5 हजार के कम अंतरो से जीते थे जिनमें वर्तमान में देा मंत्री भी है। छतरपुर से ललिता यादव 2217, बडामलहरा रेखा यादव 1514, दमोह से जंयत मलैया 4953, हटा से उमादेवी खटीक 2852, सुरखी से पारूल साहू 141 एवं गुन्नौर से महेन्द्र बागरी 1317 मतो के अंतर से ही विजय प्राप्त कर पाये थे। भाजपा ने 2013 के चुनाव में 14 प्रत्याशी नये उतारे थे। जिनमें 11 नये चेहरे जीत कर आये।
यह बात अलग है कि इन 11 में रेखा यादव भाजश से पिछले 2008 के चुनाव विजय हुई थी वही मानवेन्द्रसिंह महाराजपुर से निर्दलीय विधायक थे। इसी तरह पृथ्वीपुर से जिन अमिता नायक को टिकिट दिया उनके पति सुुनील नायक वहां से विधायक थे जिनकी मतदान के दिन ही हत्या कर दी गई थी। भाजपा ने 12 पुराने चेहरो पर दांव लगाया था जिनमें 9 विजय हुये। पिछले चुनाव में पराजित होने वाले भाजपा के दिग्गजो में रामकृष्ण कुसमारिया, बृजेन्द्रसिंह, हरिशंकर खटीक थे जो सभी पिछले कार्यकाल में मंत्री रहे। अगले वर्ष होने वाले चुनाव में भाजपा फिर नये चेहरों पर दांव लगा सकती है।
सर्वे में यह साफ तौर पर निकल कर आया है कि भाजपा के विधायक जनता की उम्मीदो पर खरा उतरने मे नाकाम साबित रहे है। कम मतो के अंतर से जीतने वालों के अगर टिकिट कटते है तो मंत्री ललिता यादव, विधायक रेखा यादव, उमादेवी खटीक, महेन्द्र बागरी के स्थान पर भाजपा किसी नये चेहरे को मैदान में उतार सकती है। बताया जा रहा है कि चुनावी रणनीति में नये चेहरो की तलाश शुरू हो चुकी है।
इसी तरह जो 10 वर्षो से लगातार विधायक हैं और जिनका प्रदर्शन साफगोई ना होकर विवादित रहा है ऐसे विधायको की भी छुटटी होना तय माना जा रहा है। याद करें कि अमित शाह ने अपनी इसी रणनीति को अन्य राज्यो के चुनावो में अपनाया है। यहां तक कि इस फार्मूले को दिल्ली निगम चुनाव में भी अपनाया गया था। हाल ही में अमित शाह ने छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान विधायकों के प्रदर्शन के आधार पर पुनः टिकिट मिलने के मंतव्य का स्पष्ट कर दिया है।अगर ऐसा होता है तो बुदेलखंड के कई विधायको और मंत्रीयो की राजनैतिक पारी पर विराम लग सकता है।
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