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पंचायत निगम चुनाव और सरकार की मंशा

राज्य            Apr 03, 2022


शैलेष शर्मा।

खबर आ रही है कि मध्यप्रदेश सरकार पंचायत और नगर निगम चुनाव विधानसभा चुनाव के बाद करवाने की सोच रही है।

इसका कारण इन चुनावों में जातिगत आरक्षण और पद रोटेशन की प्रक्रिया संबधी मामलों का अदालतों में दी गई चुनौती है,कुछ लोग इस मामले को सरकार के राजनैतिक निहितार्थ छिपे हुए मंसूबे बता रहे हैं।

जो भी है ये स्थितियां एक अवसर प्रदान कर रही हैं जब सरकार चाहे तो पंचायत/नगर निगम के चुनाव आगामी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ करवा कर समस्त देश के समक्ष एक आदर्श स्थापित करे जिसमें समस्त चुनाव एक साथ करवा कर इसके राजनैतिक/प्रशासनिक/सामाजिक प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है।

इस परिस्थितियों के फलस्वरूप सरकारी पैसों की बचत और सरकारी अमले की बार—बार चुनाव में झोंकने से बचाया जा सकता है।

इस अवसर का सबसे बड़ा लाभ ये होगा कि इन चुनावों को अलग अलग समय पर करवाये जाने के कारण बार—बार लगने वाली आचार संहिता से बचा जा सकेगा जिसके कारण बार—बार चुनावी आचार संहिता लगने से शासन/प्रशासन को जनहित में लिए जा सकने वाली बाधाओं से बचकर निर्णय त्वरित गति से जल्दी लिए जा सकते हैं।

अगर इसके असर सार्थक रहे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक देश एक चुनाव की कल्पना को मूर्त रूप दिया सकेगा।

ये अवसर एक और अध्ययन में सहायता कर पायेगा जिसमे तीन वर्ष तक निर्वाचित नगर सरकार और ग्राम सरकारन होने के कारण इसके राजनैतिक/प्रशासनिक क्या असर रहे?

क्या इस अवधि में नगर और ग्रामीण क्षेत्र में विकास की योजनाओं में कोई बाधा आई?

या विकास का पहिया अधिक तेजी से चला? क्या भोपाल में मुख्यालय कोटे से भोपाल की समस्त 19 जोन में विकास के कार्य बिना किसी भेदभाव/बिना किसी राजनैतिक पक्षपात के हुआ? या अधिकारियों ने इस दौरान मनमाने निर्णय लिए गए?

इससे यह भी आकलन किया जा सकेगा कि पिछले तीन वर्षों में नगर और ग्रामीण सरकार की अनुपस्थिति में प्रशासकीय अमला विकास कार्यो के क्रियान्वयन कितना ईमानदार/निष्पक्ष रहा?

 


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