ममता यादव।
चुनावी क्षेत्रों में घूमते-घूमते, जनता से बात करते-करते दिग्विजय सरकार के आखिरी साल याद आते हैं।
जैसे जनता तब कहती थी बस अब भाजपा को जिताना है वैसे अब कहती है परिवर्तन चाहिए। परिवर्तन के कारण अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग हैं।
गांव में जाईये तो किसान, बेरोजगारी, सड़क, पानी, कुटीर के पैसों में घालमेल व्यापारी से बात करिये तो नोटबन्दी और जीएसटी। छोटे व्यापारी एक तरह से पिस गए हैं।
दरअसल मूल मुद्दों पर विकास शहरों तक ही रह गया और कहीं विधायकों ने काम नहीं किया। काम किया भी तो उसमें भृष्टाचार ज्यादा किया।
इसके अलावा स्थानीय लोगों से जुड़ाव जमीनी मुद्दों से जुड़ाव और उनकी सुनना किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में जाता है। तब बिजली, सड़क,पानी पूरे प्रदेश में मूल मुद्दे थे अब ये गांव और पिछड़े इलाकों के मुद्दे हैं।
मेरा आंकलन कहता है भक्त इसमें बुरा मानें तो मान जाएं अगर केंद्र में मोदी सरकार न होती तो मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार की हालत इतनी खराब न होती। केंद्र की नीतियां शिवराज सरकार पर भारी पड़ गईं और पड़ रही हैं।
हालांकि कांग्रेस के पक्ष में माहौल जा रहा है लेकिन कांग्रेस को अगर असल में डरना चाहिए तो भितरघातियों से। ये हम नहीं कह रहे जनता कह रही है। आखिर में गौर करिये मीडिया से भी नाराजगी सामने आ ही जाती है।
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