पंकज शुक्ला।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार को बने दो माह हो चुके हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ अपने लक्ष्य के अनुसार तेजी से काम कर रहे हैं। मंत्रियों ने भी अपनी लय पकड़ ली है। मगर, सबसे अधिक बदलाव ब्यूरोक्रेसी के वर्क कल्चर में दिखाई दे रहा है।
सब चलता है की तर्ज पर काम करने वाले अफसरों के व्यवहार में बदलाव आया है। उन्हें मुख्यमंत्री की सख्त निगाहों का सामना करने के लिए अपनी कार्यशैली में प्रोफेशनल एटीट्यूड विकसित करना पड़ रहा है। कोई अधिकारी स्वयंभू नहीं है और कोई संदिग्ध नहीं है।
मप्र की अफसरशाही बीते 13 सालों से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ काम करने की आदी थी। चौहान सरल व्यक्तित्व के कारण अकसर लचीला रूख अपना जाते थे। सहज विश्वास करने के कारण उनके आसपास एक घेरा बन गया था।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के प्रशासन और राजनीति का अंदाज दिल्ली पैटर्न का है। उनके आसपास भी अपने विश्वस्त अमले का घेरा है। उनसे भी मिलना आसान नहीं है। उन्होंने भी मंत्रियों, विधायकों, अफसरों से मिलने का समय तय कर दिया है मगर इस कार्यप्रणाली से अफसर या मंत्री ‘रिलेक्सड’ नहीं रह सकते।
मुख्यमंत्री सुबह 9 से रात 10 बजे तक मंत्रालय में बैठने के आदी हैं और आवश्यकता पड़ने पर वे किसी भी मंत्री या अफसर को तलब कर लेते हैं। अफसरों को भी पूरी तैयारी के साथ आना होता है।
एक दो बैठकों में तो प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी ने अपने विभाग की जानकारी जहां खत्म की, मुख्यमंत्री ने अपनी बात वहां से शुरू कर दी।
यही कारण है कि मंत्रालय में अफसर मुख्यमंत्री के सदैव अपडेट रहने, समय की पाबंदी, बिन्दुवार और संक्षिप्त बात करने के अंदाज की प्रशंसा करते पाए जाते हैं।
अफसरों में इस बात का संतोष है कि यदि काम न होने पर खिंचाई संभव है तो अच्छी योजना पर तुरंत अमल का भरोसा भी है। नाथ ने अधिकारियों को काम तो दिया मगर उनके ऊपर चेक पोस्ट भी रखे।
मसलन, मुख्य सचिव एसआर मोहंती पूरे तंत्र का नेतृत्व कर रहे हैं और उनके पास अपने अंदाज में काम करने के लिए पूरा अवसर है लेकिन वे चाहें तो भी ‘एकमेव’ नहीं हो सकते।
मुख्यमंत्री ने तीन पूर्व मुख्य सचिवों को शामिल करते हुए एक समिति बना दी है जो हर प्रशासनिक निर्णय का आकलन करती हैं। यानि एक बॉस के ऊपर दूसरा बॉस है जो हर बात पर नजर रखे है।
दूसरा, अफसरों को तुरंत निर्णय लेने का मुख्यमंत्री का स्वभाव भी रहा है। नाथ जितना कम बोलते हैं उतना कम और सटीक सुनना पंसद करते हैं। जो विचार पसंद आया वह तुरंत अमल होता।
जिन अफसरों ने नाथ के स्वभाव को जाने बगैर कांग्रेस खबरियों की बात मान चापलूसी भरे निर्णय कर लिए थे, उन निर्णयों को बदला जरूर गया मगर अफसर को नहीं। उन्हें हिदायत जरूर मिली कि अगली बार बे-काम के निर्णय हुए तो ‘सजा’ मिलेगी। ऐसा है, ब्यूरोक्रेसी की नजर में मुख्यमंत्री कमलनाथ के दो माह का कामकाज।
हालांकि, ब्यूरोक्रेसी के बारे में कहा जाता है कि वह हमेशा सरकार की होती है। होना भी चाहिए क्योंकि सही टीम वही है जो मुखिया की मंशा के अनुसार काम करे।
टीम को भी फिलहाल यही इत्मीनान है कि उनका आकलन काम से हो रहा है।
आखिर, कमलनाथ सरकार को अपने काम के आधार पर ही लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट मांगने हैं।
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