संजीव जैन।
“जब चोर घात लगाए बैठा हो तब मालिक का अधिक सतर्क होना लाजिमी है”... लेकिन मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस इस कटु सत्य को भूल चुकी है।
सत्ता के 116(बहुमत का आंकड़ा) वे माले तक पहुंचने के लिए उसे 7 निर्दलीय और गैर दलीय विधायकों का समर्थन लेकर खड़ा होना पड़ा है।
इसके बावजूद पहले मुख्यमंत्री बनाने और बाद में मंत्री बनाने के फेर में जो अंदरूनी कसरत सामने आई वह जनता के लिए एक अजूबा है, फिर भी खींचतान के बाद मंत्रिमंडल ने आकार ले ही लिया लेकिन इसके बाद अब कांग्रेस के खेमे में जो उथल-पुथल मची है वह जनता के लिए बेहद अप्रिय स्थिति है।
सभी दिग्गज नेता अपने समर्थक मंत्रियों को खास महकमे दिलाने के लिए सिर फुटबॉल कर रहे है।
जनता यह अपेक्षा कर रही थी कि नई सरकार उसके दुख दर्द को समझेगी और जो समस्याएं पिछली सरकार सुलझा नहीं सकी थी उसको शीघ्र अतिशीघ्र सुलझाने का प्रयास होगा। लेकिन यहां तो मामला ही उल्टा है।
कांग्रेस अपनी ही भीतरी समस्याओं को सुलझाने में नाकाम साबित हो रही है,जन समस्याओं को सुलझाने की बारी कब आएगी ?
शायद कांग्रेस यह भूल रही है कि आने वाले कुछ दिनों में ही उसे एक बार पुनः लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरना है और यह खींचतान और गुटबाजी कांग्रेस के लिए बेहद घातक साबित हो सकती है।
इसके अलावा सत्ता से महज 7 सीटों की दूरी पर अटकी भाजपा भी सरकार को अस्थिर करने और अपनी पार्टी की सरकार बनाने का कोई मौका हाथ से नहीं छोड़ेगी।
फिलहाल तो जनता मूकदर्शक की भूमिका में है और सिर्फ यही उम्मीद लगा रही है कि अपनी समस्याओं से निपट कर कांग्रेस सरकार उनकी समस्याओं पर भी गौर करेगी, अन्यथा तीन चार महीने बाद जनता स्वयं ही कांग्रेस को उनकी आपसी समस्या से निजात दिला देगी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रदेश की हलचल समाचार पत्र के संपादक हैं।
Comments