खण्डवा से संजय चौबे।
मध्यप्रदेश की हाईप्रोफाइल लोकसभा सीटों में शुमार खण्डवा कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमारसिंह चौहान के लिए करो या मरो की अग्निपरीक्षा वाला साबित हो रहा है।
अपनी-अपनी पार्टी के दोनों दिग्गजों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बने सियासी महासंग्राम में जो जीता वो सिकंदर और जो हारा वह घर। इस सीट का चुनावी नतीजा यादव व चौहान की राजनैतिक यात्रा की दिशा व दशा भी तय करेगा इसमें राजनीति के जानकारों की दो राय नहीं है।
कांग्रेस और भाजपा में अपनी-अपनी पार्टी के लिए निमाड़ की नैया बने यादव और चौहान दोनों मतदाताओ के साथ-साथ अपनो की कसौटी पर कसे जा रहे हैं। कार्यकर्ताओं और टिकट के दावेदारों की सीधी नाराजगी ने दोनों के होश उड़ा दिए हैं। भितरघात की आशंका ने यादव व चौहान के पसीने छुड़ा दिए हैं।
दोनों दिग्गजों की संसदीय क्षेत्र में चुनाव पूर्व की लंबी निष्क्रियता और कार्यकर्ताओं से संवादहीनता का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। दोनों को अपनी निष्क्रियता के लिए लगातार सफाई देनी पड़ रही है।
कांग्रेस के बागी और बुरहानपुर के निर्दलीय विधायक सुरेंद्रसिंह ठाकुर ने अरुण यादव के खिलाफ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट न मिलने पर खुला मौर्चा संभाल लिया था जो लोकसभा चुनाव में एक बार फिर पत्नी जय श्री सुरेंद्र सिंह ठाकुर के लिए टिकट मांगने के साथ सड़क पर आ गया।
सुरेंद्रसिंह ठाकुर ने बाकायदा अरुण यादव का विरोध करते हुए पत्नी जयश्री ठाकुर का निर्दलीय की हैसियत से नामांकन दाखिल करा कर यादव की मुश्किलें बढ़ा दी। शुरुआती डैमेज कंट्रोल होते ही मामला दिल्ली पहुंच गया इसके बाद मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को मौर्चा संभालना पड़ा। उनसे चर्चा के बाद प्रभारी मंत्री तुलसीराम सिलावट ने आखिरकार सुरेंद्र सिंह ठाकुर को मना लिया और नामांकन पत्र वापसी के अंतिम दिन जयश्री ठाकुर ने अपना नाम वापस ले लिया।
इस हाईवोल्टेज ड्रामे के बाद सुरेंद्रसिंह के यू टर्न से अरुण यादव को फौरी राहत जरूर मिल गई है लेकिन इस मामले में अरुण यादव गुट के मौन से यह संकेत माने जा रहे हैं कि सब कुछ ठीक नही है।
उधर बुरहानपुर की दिग्गज भाजपा नेत्री अर्चना चिटनीस की लोकसभा क्षेत्र में सक्रियता से नंदकुमारसिंह चौहान की राह आसान नही मानी जा रही है। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के लिए चिटनीस समर्थक नंदकुमारसिंह चौहान को कटघरे में खड़े करते रहे हैं।
कांग्रेस ने जिस तरह से सुरेंद्र सिंह ठाकुर को मनाया उस तरह का डैमेज कंट्रोल चिटनीस के मामले में दिखाई नही दिया है। इस मामले में फिलहाल चिटनीस और नंदकुमारसिंह चौहान दोनों गुट खुलकर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।
प्रदेश अध्यक्ष रहते यादव और चौहान ने खण्डवा संसदीय क्षेत्र को हाईप्रोफाइल बना दिया। इसके चलते कार्यकर्ताओं की उम्मीदें आसमान छूने लगी मगर दोनों पार्टियों में गुटबाजी भी खुलकर सामने आ गई।
इस अवधि में अरुण यादव और नंदकुमारसिंह चौहान ने अपने-अपने पट्ठो को विभिन्न पदों से नवाजा जरूर मगर ये पट्ठे अपनी जमीन नही बना सके इसका खामियाजा चुनाव में अरुण यादव व नंदकुमारसिंह चौहान दोनों को भुगतना पड़ रहा है।
इस मामले में अरुण यादव को तो खरगोन और कसरावद से बड़ी संख्या में अपने समर्थकों को खण्डवा संसदीय क्षेत्र में तैनात करना पड़ा है।
अरुण के छोटे भाई और प्रदेश सरकार के कृषि मंत्री सचिन यादव के सीधे नेतृत्व में यह टीम महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल रही है। इसके चलते स्थानीय नेता अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं । ग्रामीण क्षेत्र के कांग्रेस नेता इसके विरोध में मुखर है लेकिन शहरी नेता मौन रह कर वेट एंड वाच की रणनीति पर अमल कर रहे हैं।
चुनावी समर में अरुण यादव और नंदकुमारसिंह चौहान तीसरी बार आमने-सामने हैं। दोनों एक-एक बार चुनाव जीत चुके हैं इस लिहाज से इस बार दोनों के बीच निर्णायक मुकाबला माना जा रहा है।
नंदकुमारसिंह चौहान सातवी बार चुनावी रण में होने से अरुण यादव से ज्यादा अनुभवी माने जा रहे हैं जबकि अरुण यादव की ताकत उनका मैनेजमेंट बताई जा रही है वैसे वे चौथी बार लोकसभा के चुनावी समर में उतरे हैं।
खरगोन से वे भाजपा के दिग्गज कृष्णमुरारी मोघे को चुनावी शिकस्त देकर सबके चौका चुके हैं। इसी तरह खरगौन से खण्डवा आ कर वे नंदकुमारसिंह चौहान का विजयी रथ भी रोक चुके हैं ।
खण्डवा लोकसभा क्षेत्र में मौसमी पारा 46 डिग्री के आसपास मंडरा रहा है। इसके साथ सियासी पारा रोज नई ऊंचाई तय कर रहा है। क्षेत्र में भीषण गर्मी और विवाह समारोहों के चलते मतदान को लेकर सियासी दलों की मुश्किलें बढ़ गई है।
इसको लेकर दोनों दलों का फोकस बूथ मैनेजमेंट पर हो गया है। भीषण गर्मी और विवाहों में मतदाताओं के व्यस्त रहने से चुनावी गणित गड़बड़ाने का खतरा खड़ा हो गया है इससे कांग्रेस व भाजपा की मुश्किलें बढ़ गई है।
दोनों दल कार्यकर्ताओ को लगातार बूथ लेवल का प्रशिक्षण देकर अपनी नैया पार लगाने की जुगत में लगे हुए हैं। इस सीट पर यह तय माना जा रहा है कि जो जीत वो सिकंदर और जो हारा वह घर। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि खण्डवा संसदीय सीट से कौन होगा सिकंदर और कौन जाएगा घर, फिलहाल मुकाबला कांटे का है और ऊँट की करवट पर सभी की पैनी निगाह लगी हुई है।
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