राकेश दुबे।
और मध्यप्रदेश में चुनाव हो गया अगले पांच साल मुख्यमंत्री किसका होगा और कौन होगा ? इसके अनुमान लगने लगे हैं भाजपा शिवराज की वापसी बता रही है तो कांग्रेस १४० सीट जीतने का दावा भले ही कर रही है पर उसका नेता कौन होगा यह तय नहीं है।
मध्यप्रदेश में किसका राज रहेगा- शिवराज का या कांग्रेसी “पंच प्रभुओं” में से किसी एक का इसका पक्का फैसला ११ दिसम्बर को होगा। तब तक ख्याली घोड़े दौड़ाने की सबको छूट है और घोड़े दौड़ने लगे हैं।
वैसे पूरे राज्य में लोगों में मतदान के प्रति खासा उत्साह देखने को मिला। हालांकि सुबह मतदान की रफ्तार धीमी थी, लेकिन दोपहर होते होते लोगों में जोश आया| कई जगहों से ईवीएम और वीवीपैट मशीनें खराब होने की शिकायतें आईं| चुनाव आयोग के मुताबिक मध्यप्रदेश में रिकॉर्ड ७५ प्रतिशत मतदान हुआ है। यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है। २०१३ के विधानसभा चुनाव में ७२.१३ फीसदी मतदान हुआ था, इस बार आंकड़ा ७५ पार है।
इस वृद्धि का बाद विश्लेषण शुरू हो गया है कि इसका फायदा किसे मिलेगा? भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं। भाजपा ने राज्य के तमाम अखबारों में विज्ञापन देकर ९० प्रतिशत मतदान करने की अपील की थी।
कांग्रेस की ओर से समुदाय विशेष के यह जानबूझ कर किया गया ताकि कमलनाथ के उस बयान की लोगों को याद दिलाई जा सके जिसमें उन्होंने कहा था कि लोगों से ९० प्रतिशत मतदान करने का एक विवादास्पद वीडियो भी जारी किया गया था।
वैसे मध्य प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं होता है और इस बार भी कुछ एक सीटों को छोड़ यह इस बार भी कहीं दिखा नहीं है।
इस बार अधिक मतदान वैसा नहीं हुआ है जैसा अधिक मतदान २००३ में देखने को मिला था जो १९९८ की तुलना में सात प्रतिशत से भी अधिक था और दस साल की दिग्विजय सिंह सरकार को भाजपा ने तीन-चौथाई बहुमत पाकर उखाड़ फेंका था। कांग्रेस के प्रयास भी वैसे नहीं रहे। कांग्रेस अधिक मतदान की सत्ता विरोधी लहर पैदा नहीं कर सकी।
इस बार बढे का अनुपात राज्य में मतदाताओं की बढ़ती संख्या के हिसाब से ही रहा। जिसने सिक्के को खड़ा कर दिया है। उसका रुख भाजपा की तरफ झुकता दिखता है, सच बात यह है इस बार मतदाता खुल कर किसी के पक्ष में आया ही नहीं। यह प्रदेश के मतदाता के परिपक्व होने के संकेत है।
सम्पूर्ण आंकड़े पिछली बार की तुलना में चार से छह प्रतिशत तक अधिक मतदान की ओर ही संकेत करेंगे। इसी के आधार पर भाजपा का दावा है कि यह सरकार विरोधी मतदान नहीं है।
सही भी है २००३ में जहां दिग्विजय बेहद अलोकप्रिय थे,वहीं शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। दूसरी और कांग्रेस का अनुमान है कि ज्यादा मतदान का आंकड़ा राज्य में भाजपा विरोधी लहर बता रही है जो शिवराज सरकार को कुर्सी से उतार देगी।
११ दिसम्बर बहुत दूर नहीं है। ई वी एम् से निकला परिणाम जनादेश होगा जिसे सबको स्वीकारना होगा, इन्हें भी और उन्हें भी।
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