मल्हार मीडिया डेस्क
यूं तो समाज का सभ्य तबका बलात्कार और बलात्कारियों को सजा देने है पर इस मामले यह समाज दो खेमों में बनता हुआ है जानें कैसे…?
ऐसा लगता है कि बलात्कार से ‘लड़ने’ के मुद्दे पर भारत दो खेमों में बँटा हुआ है.पहले खेमे का सुझाव है कि बलात्कार करने वाले पुरुषों के आपराधिक प्रवृत्तियों पर लगाम लगाई जानी चाहिए. दूसरा खेमा महिलाओं पर अंकुश लगाने का सुझाव देता है, इसमें बहुत से पुरुष शामिल हैं.पहले खेमे के पास बहुत सारे सुझाव हैं, जैसे- कड़े क़ानून, फास्ट ट्रैक अदालतें, बेहतर शिक्षा, पर्याप्त पुलिस व्यवस्था आदि. इनमें कई सुझाव एक दूसरे से जुड़े हैं तो कई विरोधाभासी.लेकिन दूसरे खेमे के पास केवल एक सुझाव है- महिलाओं पर अंकुश और किसी भी प्रकार की कामुकता पर पाबंदी. यह सुझाव कई तरीकों से रखा जाता है.
बलात्कार और महिला उत्पीड़न का विरोध करने वालों समेत बड़ी संख्या में भारतीय दूसरे खेमे की सोच को मानते हैं. यह यह दरअसल महिलाओं, उनके पहनावे, उनके बाहर निकलने जैसी कई बातों पर अंकुश लगाने का सुझाव देता है.ऐसा इसलिए है क्योंकि एक संस्कृति या मुख्यधारा की संस्कृति के तौर पर हम सेक्सुअलिटी के बारें में बातें करने से संकोच करते हैं.हम इसके बारे में खुले या सामान्य तरीक़े से बात नहीं करते हैं. इसके बावजूद या शायद इसी कारण हमारी बातचीत में अश्लील मज़ाक और द्विअर्थी बातें अक्सर आती रहती हैं और फ़िल्मी गीत इस तरह की भाव भंगिमाओं से भरे होते हैं.

ऐसा लगता है कि कुछ ही लोग इस ओर इशारा कर पाते हैं कि बलात्कार रोकने का तरीक़ा यह नहीं है कि महिला सेक्सुअलिटी समेत हर तरह की सेक्सुअलिटी की ओर से आंखें फेर ली जाएं. बल्कि इसका सामना करने का तरीक़ा है कि इसे एक तथ्य के रूप में स्वीकार कर लिय जाए.
भाव यह है कि यह मानना ग़लत है कि महिलाओं के आने जाने और पहनावे पर पाबंदियों से बलात्कार रुक जाएगा.इससे ऐसा लगेगा कि बलात्कार तभी रुकेगा जब इस तरह की पाबंदियों को सउदी अरब में लगी पाबंदियों जैसा कठोर बना दिया जाए.मैंने ‘लगेगा’ कहा, क्योंकि पाबंदियों के इस स्तर पर एक महिला इतने अधिकार खो देती है कि बलात्कार कोई मुद्दा नहीं रह जाता.उदाहरण के तौर पर सउदी अरब में सामूहिक बलात्कार की शिकार एक महिला को इसलिए दंडित किया गया कि उसने इसके बारे में ‘खुलकर’ बोल दिया.इस तरह के मामलों में महिला के पास बलात्कार का मामला दर्ज कराने का बहुत कम या बिल्कुल भी मौका नहीं होता है.
इसके अलावा, पुरुषों को एकतरफ़ा तलाक़ और एक से अधिक पत्नी रखने जैसे अधिकार दिए जाते हैं. इससे बलात्कार जैसी यौन हिंसा और सत्ता नियंत्रित करने का यह बर्बर तरीका भी ज़रूरी नहीं रह जाता.
इस तरह के समाजों में पुरुषों को शायद इसकी ज़रूरत नहीं रह जाती कि वे महिलाओं पर नियंत्रण और दबदबा बनाए रखने, उनके शोषण करने और उन्हें अधीन बनाने के लिए उनका बलात्कार करें.महिलाओं पर प्रतिबंध लगाकर भारत में बलात्कार से निपटने की कोई भी बहस की दिशा, समाज को अनिवार्य रूप से इसी ओर ले जाएगी.यह तथ्य कि सउदी अरब जैसी जगहों के मुक़ाबले, जर्मनी जैसे ‘खुले’ देशों में बलात्कार के मामले अधिक दर्ज होते हैं, भ्रम पैदा करने वाला है.वहां बलात्कार के अधिक मामले दर्ज होते हैं क्योंकि ज़्यादातर महिलाएं साहसी होती हैं. इसके अलावा उन्हें मुक़दमा दर्ज कराने और बलात्कार का विरोध करने के लिए सामाजिक समर्थन भी हासिल होता है.ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अत्याचारी पुरुष क़ानून की आड़ में नहीं छिप सकते.

बलात्कार को कम करने का तरीक़ा यह नहीं है कि महिलाओं पर पाबंदियां लगाई जाएं, बल्कि उन्हें आने जाने और पहने ओढ़ने की पूरी आज़ादी दी जाए.
यह सही है और ऐसा लग सकता है कि यह एक खास किस्म के पुरुषों की ओर से हमले को बढ़ाए, लेकिन ऐसे ही लोगों को नियंत्रित करना और रोकना है, न कि महिलाओं को.स्वाभाविक रूप से, यदि एक महिला का पहनावा या उसका व्यवहार एक खास सांस्कृतिक परिवेश में ‘अप्रिय’ लगे तो यह उसका बलात्कार करने का कोई कारण न है और न हो सकता है.इससे भी ज़्यादा, यह उसके बलात्कार का स्पष्टीकरण देने का कारण भी नहीं हो सकता.
यहां तक कि ‘उसे सुरक्षित’ रखने के लिए, अलग तरह से व्यवहार करने या पहनने ओढ़ने को मज़बूर करने का तर्क भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.जब तक जाहिरा तौर पर कोई अपराध न किया जा रहा हो, पुरुषों की तरह ही महिलाओं का शरीर, उसी पर छोड़ देना चाहिए.
पश्चिमी पहनावा या किसी पुरुष के साथ बाहर निकलना कोई अपराध नहीं है और इस तरह के मामले में फ़ैसला उस महिला पर ही छोड़ देना चाहिए.
एक बार हम अन्य लोगों के शरीर को नियंत्रित करना शुरू कर देते हैं तो हम उसी तरह की मानसिकता को सही ठहराने लगते हैं जो बलात्कार की ओर ले जाता है.आखिरकार, बलात्कार किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर को अधीन करने और उसे नियंत्रित करने का सबसे बर्बर तरीक़ा है.जो पुरुष, महिलाओं को नियंत्रित करने और उन्हें एक खास तरीके से व्यवहार करने के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, वो ऐसे पुरुष बनने से थोड़ी ही दूर हैं, जो महिलाओं का बलात्कार करने के लिए शारीरिक ताक़त का इस्तेमाल करते हैं.
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