संजय रोकड़े।
किन्नरों की जिन्दगी भी आम इंसानों की तरह होती हैंं, इनके पास भी एक दिल होता है, दिमाग होता है, इन्हें भी भूख सताती है, आशियाने की जरूरत इन्हें भी होती है। प्रकृति में नर नारी के अलावा एक अन्य वर्ग भी होता है जो न तो पूरी तरह नर होता है और न नारी। जिसे समाज में लोग हिजड़ा, किन्नर या फिर ट्रांसजेंडर के नाम से जानते हैं। जी हां हिजड़ा जिसके बारे में जानने की उत्सुकता हमेशा से लोगों के जेहन में रहती है। इनके अंदर अलग गुण पाए जाते हैं। इनमें पुरुष और स्त्री दोनों के गुण एक साथ होते हैं। इनका रहन-सहन, पहनावा और काम-धंधा भी नर-नारी दोनों से भिन्न होता है। किन्नर आम इंसान की तरह होने के बावजूद भी हमसे अलग हैं।
किन्नर अगर इस शब्द को पढ़ा जाये तो मुश्किल से एक या दो सेकेंड लगेंगे और अगर समझने की कोशिश की जाये तो 15 बीस मिनट में कोई जानकार यह आसानी से समझा देगा कि किन्नर कौन होते हैं? वही किन्नर जिन्हें हम हिजड़ा, या छक्का कह देते हैं। मगर हम शायद ही इस दर्द को जानते हैं। इसी दर्द को किन्नर अपने सीने में दबाकर आम लोगों के सामने हथेली पीटते हुऐ नाचते हैं, उनका मनोरंजन कराते हैं। उनकी हथेलियां ही उनकी आह हैं और उनका ठुमका ही दर्द। दो वक्त की रोटी के लिये ठुमका लगाते और हथेली पीटते ये लोग किसी दूसरे या तीसरे गृह के नहीं बल्कि हमारे ही समाज का हिस्सा हैं। जिस तरह से हम उनके साथ बर्ताव करते हैं उसे देख कर तो दिल में एक ही सवाल खड़ा होता है कि क्या किन्नर इंसानी समाज का हिस्सा नहीं है? शायद नहीं क्योंकि यह समाज सेे धुतकारे हुए लोग हैं, जिनका एक ही धर्म मान लिया गया है नाचना गाना, हथेली पीटना, या आप चाहें तो कोई और नाम भी दे सकते हैं, जैसा हिजड़ा, छक्का, आदि।
मगर सोचिये अगर आपके घर में कोई बच्चा पैदा हुआ है और आपको पता चले कि वह न तो लडक़ा है न लडक़ी फिर आप पर क्या गुजरेगी ? क्या गुजरेगी आप पर जब उसकी आवाज आपके और बच्चों के आवाज से अलग होगी? क्या गुजरेगी जब आपका वह बच्चा दूसरे बच्चों से अलग दिखेगा? मगर आप यह नहीं कह सकते कि वह तुम्हारा नहीं है क्योंकि वह हिजड़ा है। मगर जिस्म तो उसका भी है, सांस तो वह भी लेता है, खाना तो वह भी खाता है, वोट तो वह भी डालता, कपड़े वह भी पहनता है। फिर वह समाज से अलग कैसे? ऐसे मौकों पर, ऐसे मुद्दों पर समाज के नेता कहां चले जाते हैं ? धार्मिक नेता कहां चले जाते हैं ? हम जो खुद को सभ्य होने का दंभ भरते हैं हम कहां चले जाते हैं ? वे भले ही मनुष्य के रूप में जन्म लेते हैं बावजूद इसके वे अभिशप्त जीवन जीने के लिए मजबूर हैं।
किन्नरों के साथ होने वाले सामाजिक भेदभाव से उनका मनोबल टूटता है। उनके लिए न रोजगार की व्यवस्था है और न ही उनकी खुद की कोई परिवार जैसी इकाई है। सामाजिक भेदभाव की यह स्थिति समाप्त होनी चाहिए। आज का दौर भी ऐसा है कि उनकी आवाज सुनने के लिए किसी के पास वक्त नही है। समय-समय पर दुनिया भर में विभिन्न मंचों पर मानवाधिकार उल्लंघन और मानवाधिकारों की बदतर स्थिति कि तो चर्चा की जाती है, लेकिन कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित और समाज की प्रताड़ना के शिकार किन्नरों की स्थिति पर बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है।
किन्नरों की एक अलग दुनिया होती है। बिरादरी में शामिल करने के पूर्व उनका शुद्धिकरण किया जाता है। इसके उपरांत उसे सम्मानपूर्वक ऊंचे मंच पर बिठाकर उसकी जननेन्द्रिय काट दी जाती है और उसे हमेशा के लिए साड़ी, गहने व चूडियां पहनाकर नया नाम देकर बिरादरी में शामिल कर लिया जाता है। आम लोग इनके पारिवारिक जीवन के बारे में भी जानने को बेहद इच्छुक रहते हैं। काफी कम लोग ये जानते हैं कि किन्नरों का समाज भी आम परिवारों की तरह ही होता है। इनमें सबसे ऊपर गुरु होते हैं, जो घर के बुजुर्ग होते हैं। घर को ‘घराना’ कहा जाता है। गुरु के नीचे काम करने वाले सभी चेले घराने की बहुएं कहलाती हैं। हालांकि, घराने के अंदर भाई, बहन, बुआ, चाची, नानी, दादा, दादी आदि सभी का अपना स्थान है।
जो किन्नर पुरुष की तरह रहता है, उसे भाई कहा जाता है। ऐसे ही महिला प्रवृति के किन्नरों को बहन का ओहदा दिया जाता है। किन्नर की संतान भी होती है। ये उनका लालन-पालन बड़े अच्छे ढंग से करते हैं। जहां तक एक से बच्चे को बिरादरी में सम्मिलित करने की बात है तो बनी प्रथा के अनुसार बालिग होने पर ही रीति संस्कार द्वारा किसी को बिरादरी में शामिल किया जाता है। रीति संस्कार से एक दिन पूर्व नाच गाना होता है तथा सभी का खाना एक ही चूल्हे पर बनता है। अगले दिन जिसे किन्नर बनना होता है, उसे नहला-धुलाकर अगरबत्ती और इत्र की सुगंध के साथ तिलक किया जाता है।
किन्नर बनने की प्रक्रिया बहुत ही दर्दभरी होती है। इन्हें बेहोश कर बाकी घर के किन्नर मिलकर उसके पेनिस और टेस्टिकल हटाने का काम करते हैं। इस काम को अंजाम देने के बाद ये लोग मानते हैं कि अब वो निवरान या यूं कहें कि नया जन्म ले चुका है। इसके बाद से ये औरतों जैसा जीवन जीते हैं। यानी के पहनावा, चाल-ढाल, मेकअप आदि सब औरतों जैसा।
किन्नरों की दुनिया का एक खौफनाक सच यह भी है कि यह वर्ग ऐसे लड़कों की तलाश में रहता है जो खूबसूरत हो, जिसकी चाल-ढाल थोड़ी कोमल हो और जो ऊंचा उठने के ख्वाब देखता हो। यह समुदाय उससे नजदीकी बढ़ाता है और फिर समय आते ही उसे बधिया कर दिया जाता है। बधिया, यानी उसके शरीर के हिस्से के उस अंग को काट देना, जिसके बाद वह कभी लड़का नहीं रहता। आपको शायद पता न हो कि किन्नरों का जननांग जन्म से लेकर मृत्युपरांत एक जैसा ही रहता है। यूं कहें कि इनके जननांग कभी विकसित नहीं होते।
मगर किन्नर बनते कैसे हैं? इनका जन्म कैसे होता है? अगर आप इनकी जिंदगी की असलियत जान लें तो शायद न किसी को हंसी आए और न ही उनसे घबराहट हो। देशभर के तमाम किन्नरों में से 90 फीसदी ऐसे होते हैं जिन्हें बनाया जाता है। समय के साथ किन्नर बिरादरी में वो लोग भी शामिल होते चले गए जो जनाना भाव रखते हैं। अभी तक इनकी अजीविका का साधन निर्धारित नहीं है। ये पुराने समय में राजा-महाराजाओं के यहां नाचना-गाना करके अपनी जीविका चलाते थे। इतिहास में हिजड़ों का जिक्र काफी पुराने समय से मिलते आया है। महाभारत में जहां हिजड़े को शिखंडी के रूप में दर्शाया गया है, वहीं मुगलों और नवाबों के हरम में रानियों की देख-रेख व उनकी रक्षा के लिए हिजड़े रखे जाते थे।
हर संस्कृति और सभ्यता में किन्नरों का एक अहम रोल होता है। वे कुछ विशेष काम करते हैं, जैसे हरम या जनानखाने की रखवाली करना किन्नरों की खास जिम्मेदारी होती थी। हरम यानी वो जगह जहां शाही घराने की महिलाएं रहतीं थीं। पौराणिक काल के काफी बाद महाभारत काल में भी अपने अज्ञातवास में अर्जुन का वृहन्नला रूप धरना भी यही साबित करता है कि उभयलेंगिकों के लिए समाज में पर्याप्त स्थान था। महाभारत का ही शिखंडी जो नारी रूप में पैदा हुआ लेकिन एक पुरुष के रूप में पला और बढ़ा। परंतु आज सामाजिक विभेद के कारण ये समाज अपने पक्ष से भटक रहा है। इस समुदाय में आज भी गुरू शिष्य जैसी प्राचीन परम्परा यथावत बनी हुई है। किन्नर समुदाय के सदस्य स्वयं को मंगल मुखी मानते हैं क्योंकि वे सिर्फ मांगलिक कार्यो में ही हिस्सा लेते हैं मातम में नहीं। इस वर्ग की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि मरने के बाद मातम नहीं मानते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि मरने के बाद इस नर्क रूपी जीवन से छुटकारा मिल जाता है। इसीलिए मरने के बाद सब खुशी मानते है। ये लोग स्वंय के पैसो से कई दान कार्य भी करवाते हैं ताकि पुन: उन्हें इस रूप में पैदा ना होना पड़े।
पुराने समय से ही मान्यता है कि हिजड़ों की दुआ या बद्दुआ अवश्य लगती है। कुछ लोग कहते हैं कि इनको दुखी कर देने से ये श्राप दे देते हैं, जिससे इंसान के जीवन में दुखों का पहाड़ टूट पडता है। लेकिन लोग यह जानने का प्रयास नही करते हैं कि ऐसा क्यों होता है? किन्नर की दुआएं किसी भी व्यक्ति के बुरे समय को दूर कर सकती हैं माना जाता है कि इन्हें भगवान श्रीराम से वनवास के बाद वरदान प्राप्त है। एक धारणा ये भी है कि इनसे एक सिक्का लेकर पर्स में रखने से धन की कमी भी दूर हो जाती है। भारत में बसने वाले किन्नर विभिन्न सामाजिक उत्सवों में लोगों को लुभाने के लिए नाचते-गाते हैं और पैसे मांगकर अपना गुजर-बसर करते हैं। आम इंसानों से भिन्न किन्नर के तौर-तरीके, रहन-सहन भी अलग होते हैं। घरों में बच्चा होने के दौरान ये जरुर आते हैं। न्यौछावर लेकर बच्चे और परिवार के लोगों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। लोग इनके द्वारा मांगे गए पैसों को देने से इनकार भी नहीं करते हैं। वे जितनी मांग करते हैं उतनी रकम चुपचाप दे देते हैं।
किन्नरों से जुड़े कई अपवाद हैं, ये ऐसा क्यों करते हैं और किसलिए करते हैं। इनसे जुड़ी कई बातों को हम यहां जानने की कोशिश करते हैं। सबसे पहले तो हम यह जानते हैं कि आखिर क्यों लोग किन्नरों की बद्दुआ लेना नहीं चाहते हैं। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे बचपन से लेकर बड़े होने तक दुखी ही रहते हैं। ऐसे में दुखी दिल की दुआ और बद्दुआ लगना स्वाभाविक है। किन्नरों के जन्म की परंपरा सदियों से चलती आ रही है। लेकिन आज तक यह पता नहीं लगाया जा सका है कि आखिरकार किन्नरों का जन्म क्यों होता है?
किन्नरों के जन्म को लेकर अनेक मान्यताएं है। एक मान्यता यह है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है। दूसरी मान्यता यह है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है। इसके साथ ही इनके जन्म को लेकर ज्योतिष शास्त्र और पुराणों में भी अलग-अलग विचार मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो बच्चे के जन्म के वक्त उनकी कुंडली के अनुसार अगर आठवें घर में शुक्र और शनि विराजमान हो और जिन्हें गुरु और चंद्र नहीं देखता है तो व्यक्ति नपुंसक हो जाता है और उसका जन्म किन्नरों में होता है। क्योंकि कुंडली के अनुसार शुक्र और शनि के आठवें घर में विराजमान होने से सेक्स में प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। वहीं ज्योतिष शास्त्र की अगर मानें तो इससे भी बचाव का एक तरीका है। जिसमें इस परिस्थिति के समय अगर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि अगर व्यक्तियों पर पड़ती है तो बच्चा नपुंसक नहीं पैदा होता।
तो किन्नरों के पैदा होने पर ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि चंद्रमा, मंगल, सूर्य और लग्न से गर्भधारण होता है। जिसमें वीर्य की अधिकता होने के कारण लडक़ा और रक्त की अधिकता होने के कारण लडक़ी का जन्म होता है। लेकिन जब गर्भधारण के दौरान रक्त और विर्य दोनों की मात्रा एक समान होती है तो बच्चा हिजड़ा पैदा होता है। वहीं किन्नरों के जन्म लेने का एक और कारण माना जाता है। जिसमें कई ग्रहों को इसका कारण बताया गया है। शास्त्रों की अगर मानें तो किन्नरों की पैदाइश अपने पूर्व जन्म के गुनाहों की वजह से होती है। पुराणों की बात करें तो किन्नरों के होने की बात पौराणिक कथाओं में भी है। पौराणिक कथाओं की अगर मानें तो अर्जुन कि भी गिनती कई महीनों तक हिजड़ो में की जाती थी। मुगल शासन की बात करें तो उस वक्त भी किन्नरों का राज दरबार लगाया जाता था।
किन्नर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में एक कौतूहल का विषय है। ये भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल जैसे देशों में महिला वेशभूषा धारण कर जीवन बिताते हैं। शांति के लिए आमतौर पर ये एक साथ व टोलियों में रहते हैं। जबकि विश्व के अन्य देशों में हिजड़े सामान्य लोगों की तरह अपना संपूर्ण जीवन बिता देते है। बच्चों को गोद लेकर अपना वंश भी चलाते हैं। भारत में किन्नरों की संख्या निरंतर घट रही है, मगर फिर भी हिजड़े को संतान मिल ही जाती है। बंगलौर में हर साल पूरे दक्षिण भारत के किन्नर अपना सालाना उत्सव मनाने के लिए जमा होते हैं। बंगलौर में दो हजार किन्नर रहते हैं। तमिलनाडु में किन्नरों के विकास के लिए सरकार द्वारा एक बोर्ड का भी गठन किया गया है। वास्तव में इनकी बातों में एक पीड़ा है जिसके अहसास से हमारा समाज कोसों दूर है। देश की आजादी को 67 साल बीत गए हैं, लेकिन आज भी हमारे समाज का यह तबका अपनी आजादी व अधिकारों के लिए संघर्षरत है।
देश में हर साल किन्नरों की संख्या में 40-50 हजार की वृद्धि होती है। अब देश में मौजूद 50 लाख से भी ज्यादा किन्नरों को तीसरे दर्जे में शामिल कर लिया गया है। अपने इस हक के लिए किन्नर बिरादरी वर्षों से लड़ाई लड़ रही थी। 1871 से पहले तक भारत में किन्नरों को ट्रांसजेंडर का अधिकार मिला हुआ था, मगर 1871 में अंग्रेजों ने किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स यानी जरायमपेशा जनजाति की श्रेणी में डाल दिया था। बाद में आजाद हिंदुस्तान का जब नया संविधान बना तो 1951 में किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स से निकाल दिया। मगर उन्हें उनका हक तब भी नहीं मिला था। यह एक विडंबना है कि सामाजिक विधिक संदर्भ में व्यक्ति की परिभाषा में केवल पुरूष व स्त्री को ही शामिल किया जाता रहा है। आज किन्नर जैसा कोई देश नहीं है लेकिन किन्नर देश में रहते जरूर हैं।
किन्नरों का अस्तित्व दुनिया के हर देश में है। समाज में उनकी पहचान भी है फिर भी उन्हें आम इंसानों की तरह नहीं समझा जाता, उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता, उन्हें सरकार कोई आरक्षण नहीं देती, व्यवसायी वर्ग उन्हें नौकरी नहीं देता और तो और गाने बजाने और नाचने के अलावा कोई उनसे दोस्ती नहीं करता, उनसे बात नहीं करता क्योंकि वो समाज में हेय दृष्टि से देखे जाते हैं मानो वो कोई परग्रही हों आखिर क्यों किन्नर एक अजूबा है? इनके आधे अधूरेपन की वजह से भले ही समाज इन्हें अपना अंग मानने से इंकार करता रहे, मगर वास्तविकता यही है कि ये समाज के अंग हैं। अंधे, कोढ़ी और अपंग लोगों की तरह किन्नर भी लाचार हैं। जबकि किन्नेरों को तिरस्कार व उपेक्षा की नहीं, बल्कि प्यार और सम्मान देने की जरूरत है। क्यों उन्हें इस तरह सामाजिक तिरस्कार झेलना पड़ता है? क्यों समाज उनके प्रति लचीला रुख नहीं अपनाता? आवश्यकता है एक पहल की ताकी इन्हें भी समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। सवाल बहुत से हैं लेकिन उत्तर नहीं।
किन्नरों से जुड़े भ्रम और उनकी सच्चाई
आम समाज से अलग माने जाने वाले किन्नरों के बारे में कई धारणाएं और भ्रम आम लोगों के बीच देखने को मिलते हैं। किन्नर समुदाय समाज से अलग ही रहता है और इसी कारण आम लोगों में उनके जीवन और रहन-सहन को जानने की जिज्ञासा बनी रहती है। किन्नरों का वर्णन ग्रंथों में भी मिलता है। लेकिन उनकी असलियत या फिर कहें उनके पीछे तथ्य क्या हैं, कम ही लोग इस बारे में कुछ बता पाते हैं। यहां जानिए किन्नर समुदाय से जुड़ी कुछ खास बातें। हमें इनसे जुड़े भ्रम और सच्चाई के बारे में भी जानना जरूरी है।
भ्रम:आम लोगों के बीच किन्नरों को लेकर सबसे बड़ी धारणा यही होती है कि उनकी शारीरिक बनावट पुरुष जैसी होता है या फिर स्त्री?
सच्चाई:अक्सर किन्नरों की शारीरिक बनावट पुरुष जैसी होती है। पूरी तरह किन्नर का रूप लेने के लिए ब्रेस्ट सर्जरी कराई जाती है, ताकि उनके समाज से लेकर आम लोगों के बीच भी उन्हें किन्नर के तौर पर देखा जाए। पुरुषों की तरह शरीर पर आने वाले बालों को हटाने के साथ-साथ बन-ठनकर रहना किन्नरों की इच्छा होती है।
भ्रम:किन्नर की दुआ और बद्दुआ दोनों ही लगती हैं।
सच्चाई:किन्नर समुदाय के लोगों का कहना है कि किन्नर भगवान में असीम विश्वास रखते हैं। हम मानते हैं कि हमारा सीधा संपर्क भगवान से होता है। बचपन से लेकर बड़े होने तक वे दुख ही झेलते हैं। ऐसे में दुखिया दिल से निकली दुआ या बद्दुआ लगना स्वाभाविक है।
भ्रम:एक यह भी सवाल आम लोगों के जहन में रहता है कि कैसे किन्नर जान जाते हैं कि छोटा सा बच्चा बड़ा होकर किन्नर बन जाएगा। दरअसल, आम लोगों में यह अफवाह सुनने को मिलती है कि बच्चा किन्नर होने पर घर में आए किन्नर उन्हें ले जाते हैं।
सच्चाई:किन्नरों को पता लग जाता है कि किसी घर में किन्नर बच्चे का जन्म हुआ है। लड़के के जन्म पर वे पता लगा लेते हैं, लेकिन लडक़ी के बारे में अक्सर नहीं जान पाते। बच्चा किन्नर पैदा होता है, तो किन्नर उसे घर से ले जाते हैं और मां-बाप को समझाते हैं कि यह बच्चा आपके लिए नहीं है। लड़की को बड़ा होकर ही पता चलता है कि वह असल में लड़की है या किन्नर। शुरुआती दौर में उसे लड़का बनने की इच्छा होती है। वैसे सेक्स से जुड़ी मानसिकता और रवैये से ही इस बारे में पता लग सकता है।
क्या है किन्नरों की लंबी उम्र का राज
दक्षिण कोरिया में किन्नरों के ऊपर किए गए एक शोध से पता चला है कि किन्नर सामान्य लोगों की तुलना में ज्यादा दिनों तक जीवित रहते हैं। शोधकर्ताओं ने कोरियाई प्रायद्वीप में सैंकड़ों सालों से रहने वाले किन्नरों के जीवन से जुड़े घरेलू दस्तावेजों का अध्ययन किया। इस अध्ययन से ये नतीजा निकला कि बधियाकरण के कारण किन्नर ज्यादा दिनों तक जिंदा रहते है। शोध के अनुसार दूसरे लोगों की तुलना में किन्नर लगभग 20 साल अधिक जीवित रहते है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पुरूषों का हार्मोन उनकी उम्र को कम कर देता है। शोधकर्ताओं के अनुसार अगर बचपन की शुरुआत में ही बालकों के अंडकोष को काट दिया जाए तो उससे उनका विकास बाधित होता है और वे बालक कभी भी पूरी तरह से पुरुष नहीं बन पाते। इस शोध से जुड़े एक वैज्ञानिक डॉक्टर शीयोल कू ली का कहना था कि- कोरिया में रहने वाले किन्नरों के बारे में शोध से पता चला कि उनमें महिलाओं जैसे कुछ लक्षण पाए जाते थे जैसे उन्हें मूंछें नहीं होतीं थीं, उनके नितम्ब और छाती बहुत बड़े होते थे और उनकी आवाज काफी भारी होती थी। वैज्ञानिकों ने चोसुन वंश के शासन के दौरान शाही दरबार में काम करने वाले किन्नरों के बारे में उपलब्ध दस्तावेजों का अध्ययन किया तो पता चला कि उस समय कुल 81 किन्नर शाही दरबार में काम करते थे। उन किन्नरों का जन्म सन 1556 से लेकर सन 1861 के बीच हुआ था। इन किन्नरों की औसत आयु 70 वर्ष थी और उनमें से तीन तो 100 साल से भी ज्यादा दिनों तक जिंदा रहे थे।
किन्नरों की तुलना में कुलीन घरानों के पुरुषों की औसत उम्र 50 से थोड़ी ज्यादा थी जबकि शाही घरानों के पुरुषों की औसत उम्र तो केवल 45 वर्ष थी। सभी समाज में किन्नरों की उम्र पुरुषों से ज्यादा पाई गई है। हालांकि उस समय की महिलाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है जिससे उनकी तुलना किन्नरों से की जा सके। आम समाज में मान्यता ये है कि लगभग सभी वर्ग में महिलाओं की उम्र पुरूषों के मुकाबले ज्यादा होती है लेकिन अभी तक इसका कोई स्पष्ट कारण पता नहीं चल सका है। एक राय यह है कि ऐसा पुरूषों में पाए जाने वाले हार्मोन टेस्टोस्टरोन के कारण होता है। करंट बायोलॉजी नाम की पत्रिका में प्रकाशित शोध के शोधकर्तताओं के अनुसार ये पक्के तौर पर तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन ऐसे काफी प्रमाण मिले हैं जिनके आधार पर ये कहा जा सकता है कि पुरूषों के शरीर में पाया जाना वाला हार्मोन टेस्टास्टरोन उनकी उम्र को कम कर देता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार हार्मोन में पाए जाने वाले रसायन से प्रतिरक्षा तंत्र और ह्रदय को नुकसान पहुंचता है। लेकिन बधियाकरण से टेस्टास्टरोन की प्रक्रिया के बाद शरीर में ये हार्मोन पैदा ही नहीं होता जिससे ना सिर्फ उनके शरीर में होने वाला नुकसान कम हो जाता है बल्कि किन्नरों की उम्र भी लंबी हो जाती है। ब्रिटेन में बुढ़ापे पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरिया में किया गया ये शोध बहुत रोचक है लेकिन किन्नरों की लंबी आयु की एक वजह उनके जीवन यापन का तरीका भी हो सकता है। लैन्कैस्टर विश्वविद्यालय के डॉक्टर डेविड क्लैन्सी का कहना है कि शोध के नतीजे कुछ सुझाव जरूर देते हैं लेकिन निश्चित तौर पर ये नतीजे निर्णायक नहीं हैं।
ऐसे होता है किन्नरों का अंतिम संस्कार
बात करें इनके रीति-रिवाज और संस्कारों के बारे में तो शायद ये बात बहुत कम लोग ही जानेते होंगे कि जब किन्नरों की मौत होती है तो किन्नरों का अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है?उनकी शव यात्रा को किस तरह से निकाला जाता है? किन्नर की मौत के बाद अंतिम संस्कार बहुत ही गुप्त तरीके से किया जाता है। किन्नरों की शव यात्रा दिन के वक्त नहीं बल्कि रात के वक्त निकाली जाती है। जब भी किसी किन्नर की मौत होती है तो उसे समुदाय के बाहर किसी गैर किन्नर को नहीं दिखाया जाता। इसके पीछे किन्नरों की ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से मरने वाला अगले जन्म में भी किन्नर ही पैदा होगा। किन्नरों के समुदाय में शव को अग्नि नहीं देते बल्कि उसे दफनाते हैं। शव यात्रा को उठाने से पहले शव को जूते-चप्पलों से पीटा जाता है। समुदाय में किसी भी किन्नर की मौत के बाद पूरा समुदाय एक हफ्ते तक भूखा रहता है। किन्नर समुदाय भी इस तरह की रस्मों से इंकार नहीं करता है। किन्नर समाज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि किसी भी किन्नर की मौत के बाद ये लोग मातम नहीं मनाते हैं। इनकी मान्यता है कि मरने के बाद उस किन्नर को इस नर्क रूपी जीवन से छुटकारा मिल जाता है। इसलिए मरने के बाद ये लोग खुशी मनाते हैं। इतना ही नहीं ये लोग खुद के पैसों से दान कार्य भी करवाते हैं, ताकि फिर से उन्हे इस रुप में पैदा न होना पड़े।
किन्नर की पहचान
अब बात करते हैं हिजडों कि पहचान के बारे में कैसे पता लगता है कि ये हिजडा है। चिकित्सकों की मानें तो पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी हिजड़ा होती हैं। शिशु के जन्म के समय लडक़े के जननांग देखकर यह पता लगाया जाता है कि वह कहीं हिजड़ा तो नहीं, लेकिन लड़कियों से दस बारह वर्ष की आयु में जब तक उनमें मासिक धर्म न शुरू हो सामान्यत: इससे पहले पता लगा पाना संभव नहीं होता है। अधिकांश महिला हिजड़ों का इस समाज में रहकर भी पता नहीं चल पाता है, उनकी शादियां भी हो जाती हैं भले ही उनके बच्चे न हों। ऐसी लड़कियां जिनके आंतरिक जननांग न होने के कारण उनमें मासिक धर्म न हो, उनके स्तन विकसित न हों तथा उनमें स्त्री के लक्षण के बजाय पुरुष लक्षण जैसे दाढ़ी, मूंछ या आवाज का भारी होना पाए जाएं, वह महिला हिजड़ा कहलाती है। राजस्थान मारवाड़, पंजाब व हरियाणा में हिजड़े बच्चे पैदा होने की संख्या दूसरे प्रदेशों की तुलना में काफी अधिक है। प्रकृति के इस क्रूर मजाक के कारण ही हिजड़ों का पूरा जीवन सभी पारिवारिक सुखों से वंचित रह जाता है, न उनकी शादी ही होती है और न ही उनका वंश चलाने वाले बच्चे। जीवनभर खुशी की तलाश में वे अगर कोई जश्न मनाते हैं तो वह इस नारकीय जीवन से छुटकारा पाने के लिए ही मनाते हैं।
एक दिन के लिए होती है शादी
किन्नरों के संबंध में जानकारी मिली है कि कुछ किन्नर जन्मजात होते हैं और कुछ ऐसे होते हैं जो पहले पुरुष थे लेकिन बाद में वो किन्नर बन जाते हैं। किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार शादी करते हैं। हालांकि यह शादी सिर्फ एक दिन के लिए होती है। अगले दिन अरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है। गौरतलब है कि देश में हर साल किन्नरों की संख्या में तकरीब 40 से 50 हजार की संख्या में बढ़ोतरी होती है। देशभर में 90 फीसदी ऐसे किन्नर होते हैं, जो जन्मजात किन्नर नहीं होते बल्कि उन्हें किन्नर बनाया जाता है। इसके अलावा वक्त के साथ इनकी बिरादरी में वो लोग भी शामिल होते चले गए, जो जनाना भाव रखते हैं। देश में मौजूद 50 लाख से भी ज्यादा किन्नरों को तीसरे दर्जे में शामिल कर लिया गया है। लेकिन आज भी इनका समुदाय समाज के दायरे से दूर अपनी एक अलग जिंदगी बिता रहे हैं और अपने अलग तरह के रीति-रिवाजों और संस्कारों का पालन कर रहे हैं।
लेखक से संपर्क:09827277518
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