नन्हे हाथों से शह—मात की करामात

वीथिका            Aug 02, 2015


वाराणसी से अवनिन्द्र कुमार सिंह बुढ़ापे में मन लगाने के लिए शतरंज की गोटें बिछा कर बैठे अपने दादा महेंद्र नाथ श्रीवास्तव की बाजी को खेल-खेल में उलट-पुलट कर देने वाली नन्ही सी गुड़िया महज तीन वर्ष की उम्र में शतरंज की इसी बिसात पर मोहरों की किलेबंदी करने लगेगी यह किसी ने सोचा न था मगर चमत्कार आँखों के सामने था। पांच साल पूरे होते—होते वैष्णवी जब शतरंज के बड़े-बड़े बाजीगरों को मुकाबलों में पानी पिलाने लगी तो शहर में उसकी कारसाजी का शोर मच गया। आज शतरंज की यही नन्हीं शहजादी वैष्णवी प्रकाश के नाम से इनडोर गेम शतरंज की दुनिया में प्रदेश की नहीं बल्कि देश की सबसे कम उम्र् हस्ताक्षर है। सात वर्ष के आयुवर्ग की यह होनहार स्टेट चैंपियन अब अपने प्रशिक्षक संजय सिन्हा के मार्गदर्शन में अपने हुनर को और निखार रही है। प्रदेश का सर्वजेता ख़िताब अपने नाम करने के बाद कदम दर कदम राष्ट्रीय सिरमौर की ओर बढ़ रही हैं। नेट पर दर्ज सूचनाएं समूची काशी के लिए गौरव का विषय हैं जो यह बताती है कि वैष्णवी ने अपनी प्रतिभा के दबदबे के दम पर इस नाजुक सी उम्र में ही अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग में अपनी जगह बना ली है। देश में पांचवीं, एशिया में दसवीं, विश्व में सोलहवीं रैंकिंग के साथ वैष्णवी बड़ी तेजी के साथ अपनी श्रेणी सुधार रही है। उत्साह से लबरेज उनके कोच संजय को पूरा भरोषा है कि बहुत जल्द ही उनकी शागिर्द शतरंज के अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज का एक उभरता सितारा होगी। आगे चलकर डाक्टर बनने का सुनहरा सपना पाल रही चुलबुली वैष्णवी और उनकी मासूमियत अभी जीत के मायनों तक से अनजान है। कहती है- मुझे तो बस चेस खेलना अच्छा लगता है इसलिए खेलती हूं। यह जरूर है कि मेरे खेल पर जब लोग तालियां बजाते हैं तो मन में एक घबराहट सी होती है। कप और शील्ड मम्मी-पापा सँभालते है। सच्ची! बोलू तो मुझे इनके मायने ही नही मालूम। यह भी उल्लेखनीय है कि बिना किसी की मदद के ही वैष्णवी ने अपनी दिनचर्या का एक बेहद संतुलित टाइम टेबुल बना रखा है जिसमें पढाई, शतरंज के अभ्यास से लेकर कार्टून फिल्में देखने यहाँ तक कि शैतानियों तक की पूरी-पूरी गुंजाइश रखी गयी है। नगर के अन्नपूर्णा नगर निवासी वैष्णवी के बैंक मैनेजर पिता अतुल प्रकाश और माँ शालिनी बताती है कि जिस उम्र में बच्चे रंग-बिरंगे खिलौनों की चाह जताते है उस उम्र में वैष्णवी अपने दादा जी के साथ शतरंज के हांथी-घोड़े-वजीर और बादशाह के मोहरों से दिल लगा बैठी। हमने उसकी प्रतिभा को पनपने का पूरा अवसर दिया। अपनी आकांक्षा उस पर लादने की कोई कोशिश नहीं की। vaishnavi-chesh-player-02 वैष्णवी की प्रतिभा का एक पक्ष नैसर्गिक खूबी के रूप में उभर कर सामने आया। जिसे बड़े ही करीने से निखारा दक्ष शतरंज प्रशिक्षक संजय सिन्हा ने। श्री प्रकाश बताते हैं - वैष्णवी की उपलब्धियों का सिलसिला शुरू हुआ सन् 2012 से इलाहाबाद में आयोजित राज्य स्तरीय शतरंज चैम्पियनशिप से जिसमे उसने अपने आयुवर्ग में उपजेता का तमगा हासिल किया। दो साल बाद 2015 में ही नोएडा में आयोजित स्टेट चैंपियनशिप में उसने अपने आयुवर्ग के साथ ही अंडर नाइन वर्ग में जोरदार प्रदर्शन करते हुए दोहरा ख़िताब जीता और राष्ट्रीय उपाधि के लिए अपनी दमदार दावेदारी पेश कर दी। वैष्णवी के कोच बताते हैं कि अगस्त महीने में 17 से 22 के बीच चेन्नई में आयोजित नेशनल की तैयारियों में जुटी वैष्णवी पूरे फार्म में है और राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उलटफेर के मूड में भी। अलबत्ता इस बेहद ही आत्मीय मुलाकात में हम एक बार भी यह नही पतिया पाए कि कभी मनपसंद नमकीन के लिए मचलती। कभी मम्मी-पापा को पेंचीदे सवालों में उलझाती तो कभी उचक कर अपने दादा की गोद में इतराती यह नन्ही सी गुड़िया मुकाबले की बिसात पर कैसे इतनी गंभीरता ओढ़ पाती होगी। कैसे अपने शातिराना इशारे से बड़ी-बड़ी बाजियों का रुख मोड़ पाती होगी। हमारी इस जिज्ञासा को खुद समाधान देती है शतरंज की शरारती मुद्रा को खूंटी पर टांग अचानक ही बड़ी-बूढ़ियों सी गंभीर हो गयी वैष्णवी बताती है कि उसे एक मिनट भी चुप रहना नहीं भाता। गंभीर तो बस वह दो ही मौकों पर होती है। या तो अपने प्रिय विषय गणित के सूत्र साधते हुए या फिर शतरंज की बिसात पर मोहरों का चक्रव्यूह भेदते हुए। उपलब्धियों की चमक से बेपरवाह वैष्णवी घर से लेकर अपने स्कूल सनबीम लहरतारा के परिसर तक सिर्फ और सिर्फ एक मासूम सी बिटिया है, सजग विद्यार्थी है, खुशमिजाज सहेली है। शायद उसकी यह सहजता और सरलता ही उसे बनाती है अनूठी और अलबेली है।


इस खबर को शेयर करें


Comments