Breaking News

हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है...

वीथिका            Dec 22, 2015


संजय जोशी "सजग " हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है, बोलना तो अच्छी बात है जो नहीं बोलता वह सुमडे की श्रेणी में माना जाता है और जो जरूरत से ज्यादा बोलता है उसे वाचाल कहते है ,पर उलूल जुलूल बोलता है उसे क्या कहेंगे? हमारी मित्र मंडली में इस पर विचार ही कर रहे थे कि बांकेलाल जी आ धमके और कहने लगे कि क्या सोच में डूबे हुए हो हमें भी बताइये हमने उन्हें पूछा कि क्या आप बता सकते हैं कि जो उल—जुलूल बोलता है उसे क्या कहेंगे? वे कहने लगे कि उसे बक-बक करने के कारण बकरचंद कहेंगे ,जो बिना परिणाम की चिंता के बकता हो। बांकेलाल जी बताने लगे कि देश में ऐसे बकरचंद थोक में पाये जाते हैं एक गलत बयान की कीमत वो ही जान सकता है जिसके बेतुके बोल से बॉक्स आफिस खाली डब्बा लगने लगे या चुनाव में वोटिंग मशीन भी डब्बा लगने लगे। जिसने ऐसे झटके को झेला हो एक बयान नायक से खलनायक ,मंत्री से संत्री बना देता है ,लेकिन फिर भी कुछ का दिल है कि मानता ही नहीं और बिना सोचे समझे बयान देकर ब्रेकिंग न्यूज़ तो बन जाते है और परिणाम जब शून्य होता है तो अर्श से फर्श तक सफर एक झटके में ही तय कर लेते हैं और फिर खिसियानी बिल्ली की तरह खम्बा नोंचने लायक भी नहीं बचते हैं और अपनी जमी जमाई इमेज को एक बेतुके बोल को समर्पित कर देते हैं। वे आगे कहने लगे कि पुरानी पीढ़ी के लोग हमेशा कहा करते थे कि बोलो तो तोलमोल के बोलो और मीठा बोलो पर अब तो न तोल बचा न मोल बचा जो मन में आये बक दो विचारों को व्यक्त करने का मौलिक अधिकार जो मिला हुआ है। इस देश में दुर्गति का मुख्य कारण अधिकार ही है क्योकि अधिकार की आड़ में कर्तव्यों से मुख मोड़ लेते हैं कर्तव्यों का बखान करने वाले बिरले ही मिलेंगे और अधिकार के बकरचंदों की कमी नही है। इस अधिकार ने लोगों को कामचोर बना दिया है ये देश के विकास में गतिरोधक का काम करते है। बकरचंदों के कारण देश में दूसरे मुद्दे नगण्य हो जाते हैं और देश में एक तरह की विचारक्रांति सी आ जाती है और लोग सब कुछ छोड़कर उसी में लग जाते है। बकरचंदों ने हर क्षेत्र में अपना कब्जा जमा लिया है जो काम करना चाहता है उसे भी बयानों में उलझाकर अपना उल्लू सीधा करने की कवायत करते रहते हैं उन्हें न देश और न समाज की चिंता है उनका काम है बोलो और दूसरों को भी बोलने के लिए मजबूर करो। दिलवाले भी गलत बयानी कर अपने चाहने वालों के दिल एक झटके में तोड़ देते हैं। एक गाने के बोल आज के संदर्भ में कितने सार्थक लगते हैं एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल ,जग में रह जायेंगे ,प्यारे तेरे बोल। बेतुके बोल पर टैक्स का प्रावधान जरूरी है l वे कहने लगे कि उल—जुलूल बोलना कुछ को ईश्वर प्रदत है तो कुछ क्रिया की प्रतिक्रिया में योगदान देना अपना कर्तव्य समझते हैं और कुछ प्रमुख समस्याओ से ध्यान हटाकर देश में एक नई बहस छेड़कर मजे लेने का काम करते है। और गर्व से कहते हैं हम तो बोलेंगे।


इस खबर को शेयर करें


Comments