ममता यादव।
ये हैं बाबूलाल भोला। जीवन के 80 बरस पार कर चुके हैं। बुंदेलखंड के लोकवाद्यों में से एक अलगोजा बजाते हैं।
अलगोजा आपको वैसे याद नहीं आएगा लेकिन यदि राई बधाई सुनी हो तो तमाम नगाड़े नगड़ियों ढोल के बीच बांसुरी से मिलती जुलती मीठी ध्वनि गीत के बोलों के साथ चलती है। ये अलगोजा की ही आवाज होती है। जैसा दिखता है।
अलगोजा देखने में दो बांसुरियों के अलगोजा बजाते हैं। अलगोजा बुंदेली लोक संगीत में नगड़िया मृदंग के साथ बजने वाला एक सहायक वाद्ययन्त्र है। बाबूलाल जी से मुलाकात जनवरी 2021 में रवींद्र भवन में लोकरंग के दौरान हुई थी।
सागर के कनेरादेव के श्री बाबूलाल भोला अलगोजा बजाने वाले एक पारंपरिक सर्वश्रेष्ठ कलाकार हैं। उन्होंने अपनी प्रतिभा और अभ्यास से अलगोजा वाद्य को सहायक वाद्य के दायरे से बाहर निकलकर एक स्वतन्त्र लोक वाद्य की प्रतिष्ठा दिलाई।
सन 1984 में उन्होंने मध्यप्रदेश सँस्कृति परिषद के लिये उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के दुर्लभ वाद्य विनोद समारोह में अलगोजा वादन कर इसकी स्वतन्त्र पहचान की पुष्टि की।
बाबूलाल भोला 5 जुलाई 1942 को सागर के कनेरादेव में जन्मे। पिता से अलगोजा वादन के संस्कार विरासत में। विभिन्न राज्यों राई नृत्य बधाई बरेदी शेरा नृत्य अलगोजा की मीठी धुन के बिना अधूरे हैं।
उनके चाचा गुरु उम्मेद पटेल ने उन्हें यह वाद्य बजाना सिखाया।
64 वर्ष से भी ज्यादा समय से बाबूलाल अलगोजा बजा रहे हैं। इसे विलुप्ति से बचाने वे अपने परिवार के बच्चों को भी यह सिखा रहे हैं। अलगोजा की संगत नगड़िया मंजीरा और मृदङ्ग के साथ जमती है।
लोग उन्हें भोलेबाबा के नाम से जानते हैं। वे बताते हैं कि 1974 से वे कला मंडली की श्रीकृष्ण लोककला संस्थान का संचालन कर रहे हैं।
इसके अलावा लोककलाओं पर लेखन भी वे करते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक के गीत उन्होंने लिखे हैं। उन्हें परिभाषित किया है। वर्ष 2019-20 के राज्य स्तरीय शिखर सम्मान से बाबा को अलंकृत किया गया।
ये वो क्षण था जब बुंदेलखंड की माटी के माथे पर सम्मान का तिलक हुआ।
कई अभावों से जूझते हुए भोला बाबा निरन्तर अपनी कला को जीवंत रखना चाहते हैं। अलगोजा के अलावा वे नगड़िया भी बजाते हैं और फागें, दिवारी, बधाई गीत आदि भी गाते हैं।
एक फोटो में पूरी विधाओं की सूची है। जो हमारी पीढ़ी ने तो सुनी भी नहीं। खुद भोला बाबा ने कितना कुछ लिखा हुआ है। तो इसे समय रहते संरक्षित कर लिया जाए यह कोशिश तो हम कर ही सकते हैं। भोला बाबा अलगोजा के अलावा अन्य वाद्ययंत्र भी बजा लेते हैं।
मध्यप्रदेश सरकार लोककलाओं को सहेजने के लिये शिखर सम्मान जैसी परम्परा के माध्यम से प्रोत्साहन बढ़ाने का सराहनिय कार्य कर रही गया।
बाबूलाल भोला जैसे लोग और उनकी कला बुंदेलखंड की धरोहर हैं। इन्हें और इनकी कला को सहेजने के लिये कुछ औऱ प्रयासों की दरकार है। खासकर इनके लिखे गए लोक साहित्य को। उम्मीद है भविष्य में यह पहल भी रंग लाये।
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