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ध्यान के बारे में ज्ञान भी होना चाहिए

वीथिका            Jan 30, 2023


 

डॉ. रामावतार शर्मा।

 हम जहां भी एक समूह में बात करते हैं या फिर तथाकथित ज्ञानियों के प्रवचन सुनते हैं तो जो बात सबसे ज्यादा जोर से कही सुनी जाती है वह है कि पुराना समय बहुत अच्छा था और आज का समय बहुत खराब है।

पर फिर उनकी ही प्राचीन कहानियों में डाकू आ जाते हैं, व्यभिचारी, बलात्कारी, निर्दयी धरती पर उत्पात मचाने लगते हैं।

इतना अत्याचार कि उनका विनाश करने ईश्वर, देवता , पैगंबर या मसीहा को जन्म लेना पड़ता है ताकि अधर्म का नाश हो और धर्म की स्थापना हो।

आज के समय को ये लोग सबसे अधिक अधर्म का समय या काला युग कहते हैं पर कोई भी दिव्य अवतार होने की संभावनाओं को नकारते हुए कहा जाता है कि अब न कोई ईश्वर धरती पर उतरेगा और ना ही उसका कोई संदेशवाहक !

 इसका मतलब हुआ कि अब जो कुछ करना है वह मनुष्य को ही करना है। जब मनुष्य को धर्म वापिस स्थापित करने की इतनी बड़ी जिम्मेदारी के साथ में आर्थिक और घरेलू समस्याओं से अकेले जूझना है तो उसे अपनी पूरी ऊर्जा को केंद्रित करना पड़ेगा। मनुष्य की ऊर्जा को केंद्रित कर बड़े निर्णय लेने की क्षमता जिस विधि से विकसित की जा सकती है उसे ध्यान या मेडिटेशन कहा जाता है। आपने किसी चीते द्वारा शिकार करने का वीडियो जरूर देखा होगा। अपने शिकार की तरफ फर्राटा लगाने से पहले वह दत्त चित्त हो कर उसका अध्ययन करता है और फिर तेज हमला। ध्यान यानि मेडिटेशन इसी से मिलती एक अभ्यास की प्रतिक्रिया है।

  जहां तक ध्यान का सवाल है इस क्षैत्र में कोई एक विधि नहीं हो सकती है जो हर व्यक्ति के लिए आदर्श हो। ध्यान कई तरह से किया जा सकता है और इसकी अनेक विधियां होती हैं तथा कई उद्देश्य होते हैं।

ध्यान के मायने होता है जब मन और शरीर एकाग्रचित्त हो कर कार्य करने लगें।

कुछ विधियां ऐसी होती हैं जो मन को किन्ही विशिष्ट संवेदनाओं पर केंद्रित करने का प्रशिक्षण देती हैं जबकि कुछ ऐसी जागृति पैदा करने का प्रयास करती हैं जहां मन सिर्फ वर्तमान पर स्थित रहे, वहां न तो बीता समय होता है और ना ही भविष्य का कोई भय है। जो कुछ है वह वर्तमान क्षण ही है। इसमें कोई पूर्वाग्रह या धारणा नहीं होती बस मात्र साक्षी भाव होता है।

 इस तरह से देखा गया है कि ध्यान के द्वारा चेतन अवस्था विकसित की जा सकती है और प्रतिक्रियावादी स्वभाव पर काबू पाने से मानसिक शांति पाई जा सकती है। 

कुछ लोग मानते हैं कि भावनात्मक रूप से मजबूत होने से ध्यानशील व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य भी बेहतर हो जाता है हालांकि इस पहलू पर अभी तक कोई ठोस शोध नहीं हुआ है।

 बुद्ध द्वारा एक विशिष्ट तरह का ध्यान विकसित किया गया था जिसे पाली भाषा में मेट्टा ध्यान कहा जाता है। मेट्टा का अर्थ होता है करुणा और स्नेह।

 इस ध्यान में जीवन को ध्यान द्वारा स्नेह और करूणा पर आधारित करना होता है यहां तक कि निज शत्रु एवं तनाव के स्त्रोत तक से दुर्भावना को समाप्त करना होता है। ध्यान की एक दूसरी विधि में पांवों से प्रारंभ कर पूरे शरीर की मांशपेशियों को ढीला छोड़ कर शरीर को तनाव रहित करना होता है।

इस विधि से पूरा ध्यान शरीर पर केंद्रित किया जाता है ताकि मानसिक तनाव और शारीरिक पीड़ा को कम किया जा सके। अनिंद्रा में भी इस विधि से राहत मिल सकती है।

 सचेतन ध्यान या माइंडफुल मेडिटेशन विधि में चेतना को विकसित करने और वर्तमान पर स्थित होने का अभ्यास किया जाता है जहां बीता समय या आने वाला काल महत्वहीन हो जाता है।

जो है सो वर्तमान है इसलिए जीवन भय और पूर्वाग्रहों से मुक्त हो जाता है। एक अन्य विधि में पूरा ध्यान श्वसन क्रिया पर केंद्र कर सांस के आने जाने पर चेतना को केंद्रित किया जाता है जिसके फलस्वरूप एकाग्रता में वृद्धि होती है और बैचनी कम होती है। कुछ ध्यान क्रियाएं मंत्र आधारित भी होती हैं जिनमें किसी शब्द का बार-बार उच्चारण किया जाता है ताकि व्यक्ति सब तनाव और घबराहट भूल कर मंत्रोचार में खो जाए। कई शोध इंगित करते हैं कि इस विधि से दीर्घकालीन प्रभाव बहुत कम लोगों में ही पड़ते हैं।

ध्यान की एक बहुप्रचारित विधि पारलौकिक या इंद्रियतीत विधि है जिसे अधिकतर लोग ट्रांस्सेडेंटल मेडिटेशन के नाम से जानते हैं। यह मंत्र आधारित भी हो सकती है पर ज्यादातर अभ्यासों में स्थिर चित्त आसन में बैठ कर धीमी गति से स्वास लेते हुए वर्तमान के पार सिर्फ अपने अस्तित्व यानि जीव पर केंद्रित होने का प्रयास करना होता है।

कुछ चालाक लोगों में इस विधि द्वारा हवा में उठ जाने के नाम पर धन कमा कर ध्यानविहीन और विलासिता का जीवन भी बिताया है क्योंकि आडंबरयुक्त वेशभूषा, चांदी का सिंहासन, चेले चपाटों की भीड़ और मूर्ख बनने को आतुर कितने ही लोग इन आडंबरकारियों का बड़ा सहारा होते हैं।

बहुत सारे लोग पूरी उम्र श्रम की बजाय चमत्कारों से जीवन सफल बनाने में लगे रहते हैं पर इंद्रियतीत ध्यान में ऐसा कुछ नहीं है।

यह तो ध्यान की एक विधि मात्र है।

 एक तरह से देखें तो ध्यान से जो संभावित हानि हो सकती है वह चमत्कार की उम्मीद और अहंकार का जन्म है।

कुछ लोग यह मान कर घमंड में डूब जाते हैं कि वे ध्यानी लोग हैं इसलिए सामान्य लोगों से उच्च हैं या फिर ध्यान करने से उनके तनाव तुरंत समाप्त हो जाने चाहिए।

यह एक खतरनाक स्थिति है जो तनाव को कम करने की बजाय बढ़ा देती है।

ध्यान का उद्देश्य है एकाग्रता को बढ़ाना ताकि आप जीवन के कार्य बेहतर और सुरक्षित रूप से कर सकें। आप जब कार चला रहें हैं तो आप ड्राइविंग पर केंद्रित रहें, भोजन के समय भोजन पर और स्नान के समय स्नान का आनंद लें।

ध्यान मन की एकाग्रता को बढ़ाने की विधि है ताकि आप हवा में न उड़ें। पृथ्वी पर कोई चमत्कार नहीं कर सकता। सफलता की कुंजी एकाग्रता के साथ प्रयास करना है और ध्यान आपकी एकाग्रता को विकसित करने का एक प्रशिक्षण है।    

सम्पर्क सूत्र: [email protected]

 

 



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