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उन दिनों की बात: दूरदर्शन का क्लासिक दौर

वीथिका            Feb 18, 2022



सुमित बेगरा।
आज 200 -250 चैनलों की चकाचौंध से भरा बुद्धू बक्सा सचमुच एक बहुत लम्बा रास्ता तय करके आया है। इस रास्ते के गलियारों में हमने भी अपने बचपन के कुछ सुनहरे पल बिताये है आज की इस रेलमपेल में आईये गलियारों की सैर कर आयें।

बात शुरू करते हैं दूरदर्शन की "सारे जहाँ से अच्छा" वाली उस धुन की जिसके साथ दूरदर्शन का घूमता हुआ लोगो अपना आकार ग्रहण करता था और बढते है रविवार प्रातः आने वाली रंगोली की ओर हम भाई बहन छुट्टी के दिन जल्दी केवल रंगोली के लिए ही उठते थे इस बीच माँ का गरमा गरम नास्ता भी तैयार हो जाता था फिर शुरू होता था।

मनोरंजन का दौर जिसके लिए हम पूरा सप्ताह इंतज़ार करते थे दूरदर्शन समय—समय पर बच्चों से जुड़े अद्भुत कार्यक्रमों का प्रसारण करता रहता था जिनमे से प्रमुख थे डक टेल्स (अंकल स्क्रूज याद आये ) टेल स्पिन (बलू और किड याद है ) गुच्छे (यह अंग्रेजी के महान बाल साहित्यकारों की प्रसिद्द रचनाओ का हिंदी रूपांतरण था ) द्रगन का बेटा तारो , पोटली बाबा की (आया- आया झेनु वाले झुन्नू का बाबा...कुछ ऐसे ही बोल थे न ) जंगल बुक (जंगल जंगल बात चली है पता चला है अरे चड्डी पहन के फूल खिला है...कुछ याद आया),सिग्मा(इसे भारतीय स्टार ट्रेक कह सकते है ) स्टोन बॉय, गायब आया (गायब आया -३ किसी को हँसाने आया किसी को रुलाने आया गायब आया-2 ......)

एक ऐसा समय भी था जब रामायण और महाभारत के प्रसारण के समय सड़कें सुनसान हो जाती थी यही रविवार सायं आने वाली फिल्मो के समय भी होता था रामायण और महाभारत के बाद इनकी जगह ली चंद्रकांता (नीचे अम्बर उपर धरती बीच में दिल के अफ़साने अफ्सानो में दर्द है कितना प्यार के दुश्मन यह न जाने यही बोल थे ना जो इसके शुरू होने पर आते थे ) सॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान, ग्रेट मराठा और अकबर द ग्रेट जैसे कार्यक्रमो ने भारत एक खोज भी उस समय आता था

सप्ताह के अन्य दिन भी दोपहर में काफ़ी मजेदार कार्यक्रम आते थे जैसे हम लोग, शांति, सर्कस,दूसरा केवल,जूनून (यह बड़े लोगो को ही ज़्यादा पसंद थे) दोपहर के हमारे पसंदीदा कार्यक्रम थे देख भाई देख (इस रंग बदलती दुनिया में क्या तेरा है क्या मेर है देख भाई देख..ऐसा ही कुछ) तरंग छुट्टी- छुट्टी बैगन राजा (जीयो जीयो जीयो मेरे बैगन राजा) दिन में और भी कई प्रोग्राम आते थे जैसे करमचंद और फटीचर (इनकी कुछ धुंधली सी याद है)।

रात्रि के समय के कालजयी कार्यक्रमो की फेहरिस्त तो काफ़ी लंबी है पर इनमे अधिकतर बड़े लोगो को ही पसंद के थे जैसे नुक्कड़, संसार, गुल गुलशन गुलफाम , फरमान, उड़ान(इसकी नायिका का नाम कल्याणी था जो एक पुलिस अफसर थी मेरी बहन जो उस वक़्त ठीक से नहीं बोल पाती थी कहती " मम्मी मैं भी बरे होकर कड.य़ाडी बनूँगी ),

हेलो ज़िन्दगी( जगजीत सिंह जी का गुनगुनता गीत याद है ना. हेलो ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नूर है मगर इसमें जलने का दस्तूर है... ), नीम का पेड़ (बुधई याद है ..) और मिट्टी के रंग पर हमे पसंद आने वाले कार्यक्रम थे व्योमकेश बक्षी ,तहकीकात ,मालगुडी डेज और रिपोर्टर साथ ही उल्टा-पुल्टा और फ्लॉप शो जैसे कार्यक्रम भी काफी मजेदार थे।

दूरदर्शन की यादो की बात हो और पुराने विज्ञापनों को छोड़ दिया जाये तो बात अधूरी रह जाएगी जैसे कॉम्प्लान का आइ ऍम अ कॉम्प्लान बॉय वाला एड या बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर हमारा बजाज वाला या अजंता घडियों का विज्ञापन।

जिसमें बूढी दादी ओर्केस्ट्रा का संचालन करती थी , कैडबरी का कुछ स्वाद है ज़िन्दगी में ,बजाज बल्ब का जब में छोटा बच्चा था , लिज्जत पापड़ ,गोल्ड स्पोट और सबकी पसंद निरमा ऐसे कई जिंगल्स अनायस ही कभी कभी हॊठॊ पर आ जाते हैं।

और अंत में याद करते हैं दूरदर्शन के क्लासिक्स को जिनमें शामिल है मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा ,बजे सरगम हर दिशा से गूंजे बन कर देश राग और सूरज एक चंदा एक तारे अनेक....और सबसे आखिर में "रुकावट के लिए खेद है" अब इन यादो के पत्तों को समेटते हुए बस इतना ही कह सकता हूँ
वो लम्हे वो पल ,बीते थे जो कल
यादो के बाग में खिले है गुलाब से
चन्दन से शीतल,हिरनों से चंचल
वो लम्हे वो पल ,बीते थे जो कल

 


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