ब्रिटिश हूकूमत ने सैय्यद अहमद को इसलिए दी थी सर की उपाधि

वीथिका            Aug 01, 2022


श्रीकांत सक्सेना।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के आरंभ में बहुत से अंग्रेजों की परिवार समेत बड़े पैमाने पर हत्याएं हुईं।

कुछ देसी राजाओं और प्रमुख हिंदुस्तानियों ने भागते फिर रहे अंग्रेजों को सुरक्षित शरण भी दी। उन्हीं में से एक थे सर सैय्यद अहमद।

उन्होंने एक किताब लिखी थी द काज़ आफ इंडियन म्यूटनी (The Cause of Indian Mutiny) भारतीय लोग इसे आमतौर स्वतंत्रता संग्राम कहते हैं। म्यूटनी यानि विद्रोह नहीं।

सैय्यद अहमद की ख़िदमात के बदले में अंग्रेजों ने उन्हें दो जून 1869 को The Order of The Star of India की उपाधि दी।

बाद में उन्हें ख़ान बहादुर की उपाधि भी दी और 1888 में उन्हें Knight Commander of the Star of India की उपाधि भी दे दी।

सैयद अहमद, सर सैय्यद अहमद हो गए। 15 अक्टूबर 1869 को,सर सैय्यद अहमद ख़ान ने अलीगढ़ साइंटिफिक सोसाइटी के नाम लंदन से एक ख़त भेजा।

1857 के ग़दर के बावजूद।इस ख़त के बाद अंग्रेज़ों को भी हिंदुस्तानियों के बारे अपनी राय बदलनी पड़ी।उन दिनों हिंदुस्तान के बहुत से पढ़े लिखे लोगों के ज़ेहन पर भी अंग्रेज़ियत किस हद तक तारी थी इसका अंदाज़ा सर सैय्यद के इस ख़त से लगाया जा सकता है,जिसमें वे कहते हैं-“हम जो हिंदुस्तान में अंग्रेजों को बदअख़लाक़ी का मुल्ज़िम ठहराकर,ये कहते हैं कि अंग्रेज़,हिंदुस्तानियों को बिल्कुल जानवर और हक़ीर(निंदनीय) समझते हैं,ये हमारी ग़लती है। वे हमें ऐसा समझते ही नहीं हैं,बल्कि हम ऐसे ही हैं।

मैं बिला मुबालग़ा निहायत सच्चे दिल से कहता हूँ कि ऊँचे हिंदुस्तानियों से लेकर निचले दर्ज़े के हिंदुस्तानियों तक,अमीर से ग़रीब तक,पढ़े लिखों से लेकर अनपढ़ों तक,अंग्रेज़ों की शिक्षा और संस्कार और विनम्रता व शिष्टाचार की तुलना में हमारी स्थिति वैसी ही है जैसे निहायत योग्य और ख़ूबसूरत आदमी के सामने निहायत मैला कुचैला जानवर..”

वैसे जब यह चिट्ठी लिखी गई,उसी दौर के हिंदुस्तानी शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की गणना,भारत ही नहीं बल्कि विश्व के सबसे बेहतरीन शायरों में की जाती थी।

उनका ज़िक्र कार्ल मार्क्स समेत तमाम यूरोपीय विद्वानों में सम्मान सहित होता था। ग़ालिब ही नहीं बल्कि ऐसे हिंदुस्तानियों की एक लंबी सूची है जिनकी प्रतिभा का लोहा उस वक़्त का यूरोप भी मानता था।

बहरहाल इसके बाद अंग्रेजों ने सैय्यद अहमद खां को 'सर' की उपाधि से सम्मानित करके उनके अहसास-ए-कमतरी को कुछ कम करने की कोशिश ज़रूर की।

सर सैय्यद ने मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा के प्रसार की भरपूर कोशिश की। उन्होंने क्वीन विक्टोरिया के सम्मान में गाज़ीपुर में विक्टोरिया स्कूल भी खोला।

वे ज़िन्दगी भर अंग्रेजों के प्रति वफादारी के लिए मुसलामानों का आह्वान करते रहे। इतिहास में उन्हें टू नेशन थ्योरी यानि द्विराष्ट्र सिद्धांत का पिता कहा गया।

उनके इस विचार को उनके बाद की पीढ़ी के लोगों ने अमलीजामा पहनाया, जिसमें इक़बाल और जिन्ना ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और पाकिस्तान की स्थापना हो सकी।

भारत सरकार ने सर सैय्यद अहमद के सम्मान में दो बार विशेष डाक टिकट जारी किए। पहली बार 1973 में और दूसरी बार 1998 में।

अंततः पाकिस्तान को भी शायद शर्मिंदगी का अहसास हुआ और सर सैय्यद अहमद की याद में वहां भी एक डाक टिकट जारी किया गया। आधुनिक भारत के इतिहास में इस महत्वपूर्ण चरित्र को सदैव याद रखा जाएगा।

 



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