ध्रुव शुक्ल।
पूर्वज कथाकार प्रेमचंद की याद गांधी जी के साथ आती है। ग्रामवासिनी भारत माता की व्यथा का भार उठाती उनकी कहानियों के पात्रों के जीवन को संवारने के लिए ही तो बापू ने आज़ादी की कल्पना की थी।
प्रेमचंद की कथाओं की पगडण्डियों पर होरी किसान और ईदगाह जाते हामिद के साथ चलते गांधी जी के कदमों की आहट सुनायी देती है।
हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए अपने आपसे
ये सवाल क्यों नहीं पूछ रहे --
१. काम-धंधों में लगी हमारी जाति व्यवस्था, जो अपने हस्तकौशल और हुनरमंदगी की मिसाल थी, वह कैसे अभावग्रस्त होकर मात्र वोटरों की असहाय बस्तियों के बाड़ों में क़ैद होकर रह गयी?
२. 'पूस की रात' में कड़कड़ाती ठण्ड में ठिठुरते हल्कू किसान का क्या हुआ?
३. अछूत गंगी 'ठाकुर के कुआं' से जोखू के लिए पानी ला पायी कि नहीं?
४. चारे को तरसते 'हीरा-मोती' बैलों का क्या हुआ?
५. 'गोदान' के होरी का क्या हुआ?
६. 'सद्गति' के लिए ग़रीब दुखिया को जीने का मुहूर्त मिला कि नहीं?
७. 'कफ़न' के पैसे से शराब पीते घीसू-माधव का क्या हुआ?
८. 'ईदगाह' के हामिद का क्या हुआ?
९. 'पंच परमेश्वर' जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की पंचायत का क्या हुआ?
१०. हम 'भारत माता ग्रामवासिनी' का गीत गाते रहे पर उसके आंचल में बंधती चली गयी पीड़ाओं को हरने के उपाय का क्या हुआ?
31 जुलाई को भारत के गाॅंवों के दुख का कथा-इतिहास रचने वाले कथाकार प्रेमचंद की जयंती थी। कोई तो सोचे कि इन प्रश्नों का उत्तर क्या होगा?
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