Breaking News

इंतजार में आ की मात्रा, दरअसल यह ज्यादातर लिखने वालों के मन की बात है

वीथिका            Nov 12, 2022


नवीन रंगियाल।

मैं चाहता हूं की ज्यादातर लोग मेरी किताब पढ़ें. कविताएं और गद्य उन तक पहुंचे. लेकिन बहुत अजीब सा ख्याल या सनक रही है की मेरे घरवाले मुझे न पढ़े.

हालांकि उन्हें अब तक पता भी नहीं था की मैं लिखता भी हूं. इस प्राइवेसी की वजह से मुझे घर में लिखने की सहूलियत और स्पेस भी मिले.

 जब रिव्यूज के लिए और एमेजॉन से खरीदी हुईं किताबें घर पर आती हैं तो उन्हें लगता है की मैं पत्रकार हूं इसलिए पढ़ता हूं. लेकिन कविता, फिक्शन आदि लिखता हूं यह उन्हें नहीं पता था. उन्होंने अब तक मेरी कोई कविता या गद्य नहीं पढ़ा.

 यकीन मानिए इस बात की मुझे बहुत खुशी है. अपने प्रति यह उदासीनता मुझे भाती है - और यह शिकायत भी नहीं.

आज जब मेरी पहली किताब 'इंतजार में आ की मात्रा' का बंडल घर पहुंचा तो एक जैसी एक ही रंग और एक ही शीर्षक की इतनी सारी किताबों को देखकर घरवालों का माथा ठनक गया. कहा, अब डब्बे भरकर किताबें मंगाने लगा? मैंने कहा, ये मेरी किताब है.

उन्होंने नाम और शीर्षक देखे, उसके बाद कुछ नहीं था, चारों तरफ और सबकुछ एक शून्य सा था. एक ठंडी सी खामोशी. न सवाल, न कोई जवाब. यह भी अच्छा लगा, वरना दुनिया फिजूल के सवालों से भरी पड़ी है.

फिर सुबह मां को मैंने अपनी किताब पढ़ते हुए देखा. एक अजीब सी आत्मग्लानी से भर उठा. अपनों के सामने खुलकर बिखर जाने का भय. लेकिन ऐसा डर क्यों होना चाहिए?

पता नहीं क्यों मैं नहीं चाहता हूं की घर वाले मेरा लिखा हुआ पढ़े.

मेरे भीतर की कविता का वो नर्म हिस्सा उन्हें पता चले, या मैं एक औसत आदमी से ज्यादा किस तरह से सोचता हूं, महसूस करता हूं और अभिव्यक्त हो सकता हूं यह सब उन्हें पता चलें.

मैं नहीं चाहता-- मैंने कभी नहीं चाहा की मेरे बहुत नजदीकी लोगों को यह पता चले की मैं एक रूमानी ज़िंदगी भी जीता हूं, फिक्शन से भरी एक ऐसी ज़िंदगी जिसके बारे में मैं सबसे ज्यादा लिखता हूं, लेकिन उसी को उनके सामने उजागर करने से सबसे ज्यादा डरता हूं.

यह बात भी नहीं है की मेरी प्रेम कविताओं और रूमानियत से भरे संसार से उनके सामने मेरे प्रसंग उजागर हो जाएंगे, क्योंकि जब उनके बारे में जवाब देना होगा तो मैं अपने उस रूमानी संसार और उसकी वजह से उपजे लेखन को जस्टिफाई करने का साहस भी रखता हूं.

साल 2006 के आसपास कुछ छुटपुट लिखने के साथ लेखन की शुरुआत हुई थी, मतलब करीब 16 साल पहले, लेकिन मेरे स्कूल कॉलेज के मित्रों को मेरे लिखने के बारे में भी ठीक से पिछले चार साल से पता चला है.

जब मैं थोड़ा सा महत्वकांक्षी हो गया, एक ग्रीड, एक टेम्पटेशन मेरे भीतर जाग उठा, तब जाकर मेरी पहली किताब आई. इस बात की पुष्टि मेरे वो मित्र कर सकते हैं, जो फेसबुक पर जुड़े हुए हैं.

क्या मैं अपने सबसे मुलायम हिस्से को उजागर करने से डरता हूं, या अपने सबसे सख्त चहरे को खो देने से डरता हूं,--- या मैं दो आदमी हूं --- या दो से भी ज्यादा?

अगर मैं दो आदमी भी हूं तो उनमें से मैं कौनसा वाला हूं?

(यहां किताब की शुभकामनाएं मत दीजिएगा.)

#औघटघाट

 

 



इस खबर को शेयर करें


Comments