महासमुंद से किशोरकर।
महासमुन्द - देश में जनप्रतिनिधियों को मिलने वाले वेतन भत्ते एवं पेंशन योजनाओं को तत्काल बंद करने की मांग उठने लगी है।
इसकी आवाज उठाते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता केसरी नंदन सेन ने मीडिया को जारी एक बयान कहा है कि देशभर में सैकड़ों हजारों की संख्या में सांसद, पूर्व सांसद, विधायक एवं पूर्व विधायकों को अरबों रुपए का पेंशन सहित वेतन भत्ता दिया जा रहा है तथा मात्र 5 साल के लिए ही जनप्रतिनिधि चुने जाने के बाद ऐसे राजनीतिक लोग जीवन भर शासकीय कोष के पैसों से ऐसो आराम कर रहे हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता केसरी नंदन सेन ने मीडिया को जारी एक बयान में बताया है कि आम जनता द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत जनप्रतिनिधियों का चुनाव 5 साल के लिए किया जाता है।
नेता भी जन सेवा के नाम पर जनता के पास जाकर वोट मांगते हैं और निर्वाचित होते हैं।
लेकिन जनसेवा की बजाए वह वेतन भत्ते एवं पेंशन का ज्यादा लाभ उठाते हैं जिससे देश पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।
सरकारी खजाने से अरबों रुपए का सिर्फ पूर्व जनप्रतिनिधियों को पेंशन देने में ही खर्च हो रहा है।
लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों को लोकतंत्र की मजबूती के लिए चुना जाता है ना कि आजीवन पीढ़ी दर पीढ़ी पेंशन और वेतन भत्ता पाने के लिए।
इसके बाद भी शासन सत्ता में बैठे लोग अपने वेतन वृद्धि करने के साथ-साथ अपने लाइफ टाइम के तमाम सुविधाओं के लिए व्यवस्था करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं जिसका हम पुरजोर विरोध करते हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता केसरी नंदन सेन ने कहा है कि कई बार जनप्रतिनिधि चुने जाने वाले लोग शासकीय सेवा से निवृत्त होकर जन सेवा के कार्य में आते हैं जो दोहरे पेंशन का लाभ लेते हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता ने बताया है कि सरकारी धनराशि से जनप्रतिनिधियों को मिलने वाले तमाम सुविधाओं को तत्काल बंद किया जाना चाहिए।
इससे देश की जनता का होश खाली हो रहा है तथा इन को दिए जाने वाले वेतन भत्तों की राशि से जन सुविधाओं के विकास पर खर्च किया जाना चाहिए।
श्री सेन ने कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए सरकारी धन के दुरुपयोग को रोकने में यह एक बड़ा और ठोस कदम माना जाएगा।
उन्होंने कहा है कि जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने के बाद पद में रहते तक ही सुविधाएं दी जाएं पद से हटने के बाद विधायक और सांसदों के तमाम सुविधाएं समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
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