स्मृति आदित्य
और फैसला हो गया कि वह 'बच्चा' है उसे गिरफ्त में नहीं रखा जा सकता। इतना बच्चा कि वह नहीं जानता कि अपराध क्या होता है, कैसे होता है, उस रात क्या हुआ था उसे कुछ नहीं पता... गलती से हो गया था या गलती से हो गया होगा। म गर सच खामोश नहीं हो सकता। कुछ और कहता है, चीखता है हमारे कानों में कि वह उतना बच्चा भी नहीं था जितना उसे कानून मान रहा है।
मानसिक तौर पर पर वह जानता था कि बलात्कार क्या होता है, कैसे किया जाता है, शराब क्या होती है उसे पी कर क्या किया जाता है? वह हर घिनौनी हरकत को अंजाम देना जानता था। उसी ने सबसे ज्यादा नीचता और बर्बरता की थी। जिसने सबसे ज्यादा निर्ममता और निकृष्टता की थी इस देश का कानून उसे ही सुधारना चाहता है, उसका समाज में योगदान चाहता है, चाहता है वह मुख्य धारा से जुड़े।
क्या इस देश के कानून की इस देश की बेटी के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? उस मां के लिए इस देश के कानून में कुछ नहीं लिखा? अगर नहीं लिखा है तो क्या लिखा भी नहीं जा सकता, बदला भी नहीं जा सकता?
इसी देश में एक गंदा और गलत काम करने वाला कानून की आड़ लेकर खुला घुम सकता है और इसी देश में जिसके साथ गलत हुआ है वह बेबस है, असहाय है। अगर आज दामिनी जिंदा होती तो क्या सोचती अपने देश के बारे में, अपने देश के कानून के बारे में....
स्मृति आदित्य के फेसबुक वॉल से
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