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अपनी चिता स्वयं सजाते नेता! आपको हुकूमत करना आता भी है या नहीं?

खरी-खरी            Feb 21, 2016


ved-pratap-vaidikडॉ.वेद प्रताप वैदिक जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जनेवि) के मामले में हमारी सरकार कितनी बचकाना सिद्ध हो रही है? उसके नेताओं ने बात का बतंगड़ बना दिया है। तिल का ताड़ खड़ा कर दिया है। सारे देश के विश्वविद्यालयों में भाजपा-विरोध के झंडे खड़े हो गए हैं। मेरी याद में पिछले 65-70 साल में कोई ऐसा मुद्दा नहीं उठा है, जिसे लेकर देश के इतने विद्यार्थी भड़क उठे हों। जो विद्यार्थी कम्युनिस्ट नहीं हैं, जो अफजल गुरु, कश्मीर की आजादी और पाकिस्तान के विरोधी हैं, वे भी सरकार-विरोधी जुलूसों में शामिल हो रहे हैं। सरकार और भाजपा के लिए इससे अधिक गंभीर बात क्या हो सकती है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (जनेवि) के तीन पदाधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है। दिल्ली की पुलिस और दिल्ली के वकीलों ने कन्हैया के साथ जो बर्ताव किया है, उसमें कौन सी देशभक्ति है, संविधान का कौन सा पालन है, संघ का कौन सा अनुशासन है? कन्हैया के भाषण के दौरान यदि कुछ लड़कों ने घोर आपत्तिजनक नारे लगा दिए तो उससे क्या जनेवि हिल गई, क्या दिल्ली में हिंसा फैल गई, क्या भारत टूट गया? कुछ गुमराह छात्रों ने अपनी भड़ास निकाल ली। आप इस भड़ास से ही भड़क गए? आपको हुकूमत करना आता भी है या नहीं? यदि अदालतें कन्हैया को सजा दे डालें तो यह सजा सौ गुनी होकर मोदी सरकार की बेड़ि़यों में बदल जाएगी। कम्युनिज्म का कुम्हलाया पौधा हरा हो जाएगा। आपके ‘राष्ट्रवाद’ की दाल पतली हो जाएगी। आज हमारे ‘प्रचार मंत्री’ के बाद देश में सबसे ज्यादा प्रचारित नाम कन्हैया का हो गया है। यदि कन्हैया डटा रहे, संकीर्ण दलीय राजनीति में न उलझे और जेल से छूटने के बाद खम ठोक दे तो हमारे सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान नेता भागते नजर आएंगे। यदि संघ, भाजपा और सरकार के नेता यह सोचे हुए हैं कि कलबुर्गी, अखलाक और कन्हैया जैसी घटनाओं से देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो जाएगा और वे इस गाय की पूंछ पकड़कर चुनाव की वैतरणी पार कर लेंगे तो वे बहुत गलतफहमी में हैं। वे अपनी चिता स्वयं सजा रहे हैं। भारत की जनता इतनी मूर्ख नहीं है। वह पूछ रही है कि ‘विकास-पुरुषजी’ आपको हुआ क्या है? आप कौन सी गोलियां खाकर सोए पड़े हैं? आपके पौने दो साल में आपकी जब-जब नींद खुली है, आप विदेशों में जाकर या तो मोर का नाच दिखाते रहे हैं या भारत में बेसिर-पैर के नकली मुद्दों को राष्ट्रीय मुद्दे बनने दे रहे हैं। असली मुद्दों का क्या हुआ? भ्रष्टाचार—उन्मूलन, कालाधन वापसी, रोजगार, गरीबी हटाओं का क्या हुआ? www.vpvaidik.com


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