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बिन परमिट के नेशनल कैसा ? कपार पर परमिट साट लीजिये

खरी-खरी            Mar 11, 2016


ravish-kumar-ndtvरवीश कुमार। ऑल इंडिया नेशनल परमिट । इससे पहले कि आप एंटी नेशनल करार दे दिये जाएँ मेरी बात मानिये आप ट्रक बन जाइये । कपार पर परमिट साट लीजिये । फिर मज़े से हर नाके पर मौजूद राष्ट्र के प्रतीक वर्दी धारी रक्षकों ( पुलिस औपनिवेशिक शब्द है ) को कुछ देते जाइये । वर्ना रिश्वत न देने के अपराध में वो आपको पकड़ लेगा और थाने में बंद कर सारा माल ले भागेगा । सेना की आलोचना बंद हो गई है तो क्यों न पुलिस की आलोचना भी बंद हो । आखिर आलोचना बंद करवाने का पहला काम पुलिस ही तो करती है । इसलिए पुलिस के सम्मान में आलोचनाओं पर रोक लगनी चाहिए । हमारी आज़ादी की पहली सीमा जहाँ ख़त्म होती है वहाँ सबसे पहले पुलिस चौकी ही तो मिलती है । सूबेदार से पहले थानेदार ही तो आता है जो एक रात के हाजत में ज़ार ज़ार कर देता है । तार तार कर देता है । आप अपना नेशनल परमिट पहनकर चलें । लक अपने आप ठीक हो जाएगा । ज़माना ख़राब है । रास्ते में लोग एंटी नेशनल कहें तो परेशान न हो । एंटी सोशल लोगों को आपने भी कम नहीं सताया है । उनकी कितनी बेइज़्ज़ती की है । अब उनका समय आया है कि वे आपको एंटी नेशनल कहकर बदला लें । एंटी सोशल भी तो इसी देश के हैं । क्या आपने कभी उन्हें सम्मान दिया ? नेभर । पहली बार एंटी सोशल को नेशनल का दर्जा मिल रहा है । उनका विरोध करने वाला ही एंटी नेशनल है । मैं एंटी सोशल समर्थक हूँ । आखिर कब तक समाज में गालियों को बदनाम किया जाएगा । बर्दाश्त की भी हद होती है । धन्य हो सोशल मीडिया का कि लोग गालियाँ दे ही नहीं रहे लिख भी रहे हैं । भला हो श्रुति व स्मृति परंपरा का जिसने गालियों को सहेज कर रखा नहीं त 21 वीं सदी में लोग पूछ रहे होते कि यार प्राचीन भारत में लोग कैसे गाली देते होंगे । कुछ याद है । गालियाँ ज़माने तक नारीवादी, बामपंथी, कांग्रेसी गालियों को लिखने नहीं दे रहे थे । ट्वीटर फेसबुक ने गालियों को सम्मानित किया है । बड़ी संख्या में गालियाँ दी जा रही हैं । गालियों के विशेषज्ञों की एक खूबी होती है । वे दूर से ही एंटी नेशनल पहचान लेते हैं । ये गाली वाचक न होते तो आज कोई भी जम्बूद्वीप को कुछ भी बोल जाता । गाली वाचक ही राष्ट्रवाचक सर्वनाम की संज्ञा हैं । इनके विशेषण की विशेषता आपको आपाधापी में आपादान कारक में नहीं मिलेगी । इसलिए जो लोग एंटी नेशनल हो सकते हैं उनसे उम्मीद की जाती है कि वे भारत के बारे में बात न करें। मुझे लगता है कि ये ठीक भी है । इतने सारे देश हैं दुनिया में । उनके बारे में बात करें । उस पर कोई रोक नहीं है । उगांडा है, कोसोवो है, सीरिया भी है । भारत के बारे में बात करने से भारत की बदनामी हो सकती है । पाकिस्तान को गाली देने से किसने रोका है । पाकिस्तान को गाली देना नेशनल काम है और पाकिस्तान जाकर चाय पी आना एंटी नेशनल नहीं है । क्रिकेट मैच धर्मशाला में हो गोशाला में क्या फ़र्क पड़ता है । टी ट्वेंटी कब शुरू हुआ और कब ख़त्म कहाँ पता चलता है । ब्रिटेन में भी यह बात पहुँचानी होगी । वहाँ बहुत से भारतीय ब्रिटिश सरकार के पैसे से उसकी औपनिवेशिक नीतियों और ज़ुल्मों सितम पर रिसर्च कर रहे हैं । ब्रिटेन की जनता के टैक्स से उसके राष्ट्र- राज्य की आलोचना करने वालों को स्कालरशिप क्यों मिलें? इससे भारत में ब्रिटेन की बदनामी हो सकती है । इसलिए जरूरी है कि भारत सरकार उन्हें यहाँ की जनता के टैक्स से स्कालरशिप दे । अच्छा नहीं लगता है कि कैंब्रीज आक्सफोर्ड और सोआस में हमारे छात्र ब्रिटेन के पैसे पर पढ़कर ब्रिटेन की आलोचना करें । हमें दूसरे देश को धोखा देकर अपने देश की कथा नहीं बाँचनी है । वसुधैव कुटुंबकम के नाम पर हम पूरी दुनिया में कुटुंब बनकर रहने लगे हैं । हमारे यहाँ तो कम ही कुटुंब आए । इसलिए हमारा नेशनल दायित्व बनता है कि हम जिसके यहाँ जाकर खा रहे हैं उसकी आलोचना अपनी किताब में न करें । क्लास में तो बिल्कुल न करें । ब्रिटेन को उन सभी भारतीय प्रोफ़ेसरों पर एंटी नेशनल का केस चलाना चाहिए जिन्होंने उसके पैसे, उसकी लाइब्रेरी, कालेज और तो और हॉस्टल का इस्तमाल कर भारत का गुणगान किया है और ब्रिटिश साम्राज्यवाद पर प्रहार किया है । ब्रिटिश साम्राज्यवाद ब्रिटिश राष्ट्रवाद का हिस्सा था जिसके लिए उसके सैनिकों ने जान दी । उनकी क़ब्रें कोलकाता, मेरठ और झाँसी में हैं । ब्रिटेन को दो काम करना चाहिए । पहले इसकी जाँच होनी चाहिए । जाँच होने से लगता है कि काम शुरू हो गया है ।साँच को आँच नहीं ये गलत मुहावरा है । जाँच बिना साँच नहीं होना चाहिए । ब्रिटेन को भारत सरकार से बात कर उन प्रोफ़ेसरों और शोध छात्रों को बुलवा कर ब्रिटेन की जेलों में बंद कर देना चाहिए । अपने उन विश्वविद्यालयों को बंद कर देना चाहिए जहाँ उसके खिलाफ अध्ययन हो रहे हैं और उसके शहीदों के साथ अपमान हो रहा है । ब्रिटेन के शहीद भारत के गद्दार हैं । यहाँ मैं साफ कर देना चाहता हूँ । एंटी नेशनल भी कभी नेशनल था । इस नाम से कोई सीरीयल नहीं बनेगा । नेशनल भी कभी एंटी नेशनल था इस नाम से बनेगा । कम से कम इस कहानी में सकारात्मकता है । बदलाव है । इससे नेशन के नेशनल को ऊर्जा मिलेगी । बात बात में मुक़दमे हो रहे हैं । विरोधी की धनहानि हो इसके लिए मानहानि कर रहे हैं । एफ आई आर दर्ज कराने का सेल बन गया है । अब हो सकता है कि कभी भी जेल जाने की नौबत आ सकती है । मेरा एक आइडिया है । अग्रिम ज़मानत मत लीजिये । एंटीसिपेटरी बेल की तरह एंटीसिपेटरी जेल का प्रावधान होना चाहिए । ताकि आप में से संभावित एंटी नेशनल अपनी गर्मी छुट्टियों में या ‘जेल लीव’ लेकर जेल काट आएं । बाद में इसी में से अपनी सजा कटवाते रहे और मजे में घूमते रहें । आज मुझे खुशी है कि तर्कों की ऐसी तैसी हो रही है । इन तर्कों ने मूर्खों का जीना मुहाल कर रखा था । आखिर विद्वता से पहले मूर्खता ही तो थी । जो पहले आया उसे कब हक मिलेगा । जो मूर्खता से टकराएगा वो चूर चूर हो जाएगा । विद्वता नहीं अभिशाप है, मूर्खों का सौतेला बाप है । ऐसे नारे लगेंगे तभी देश में शिक्षा आएगी । अब से कोई भारत बंद का आयोजन नहीं करेगा । बीजेपी हो या कांग्रेस । जो भी भारत बंद करेगा वो भारत की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात सैनिक का अपमान करेगा । क्या सैनिक को भारत बंद की इजाज़त है ? ज़ाहिर है जो भी भारत बंद करेगा वो ऑटोमेटिक रूप से एंटीनेशनल हो जाएगा । कस्बा से साभार


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