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भारत माता से मोह नहीं, शिवसेना पर छुपकर हमला!

खरी-खरी            Apr 09, 2016


hemant-pal हेमंत पाल। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस भारत माता के मुद्दे खूब बोले। अमूमन वे ऐसा बोलते नहीं हैं! फड़नवीस ने कहा कि 'भारत माता की जय न बोलने वालों को इस देश में रहने का अध‍िकार नहीं है।' महाराष्ट्र विधानसभा में हंगामे के बाद फड़नवीस ने ये भी कहा कि मुख्यमंत्री पद रहे न रहे, पर भारत माता की जय तो बोलना ही पड़ेगा। अगर भारत माता की जय नहीं बोलेंगे, तो क्या पाकिस्तान की जय या चीन की जय कहेंगे? इससे पहले आरएसएस के सरकार्यवाहक भैयाजी जोशी ने बयान कहा था कि वास्तव में ‘वंदे मातरम’ ही राष्ट्रगान है और भगवा झंडे को राष्ट्रीय ध्वज कहना भी गलत नहीं होगा। बाद में संघ ने इस बयान पर लीपा-पोती भी की थी। फड़नवीस मूलतः नागपुर के हैं, इसलिए संघ के ज्यादा करीब हैं। इसलिए उनके खून में भी ललामी से भगवापन कुछ ज्यादा ही होगा। लेकिन, वे भाजपा के पढ़े-लिखे और समझदार नेताओं में गिने जाते हैं। फिर भी उन्होंने हिन्दुत्व भरा ये बयान क्यों दिया? दरअसल, ये सहज बात नहीं है। वैसी भी नहीं, जैसा समझा जा रहा है। फड़नवीस ने अतिउत्साह में या हिन्दुत्व को ध्यान में रखकर भी ये पत्ता नहीं फैंका। ये सब सोची-समझी रणनीति का ही एक हिस्सा है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो ये गठबंधन में अपनी ही सहयोगी पार्टी शिवसेना को ठिकाने लगाने की एक चाल है। भाजपा खुद को शिवसेना से ज्यादा घोर हिंदूवादी साबित करके उसे हाशिये पर लाना चाहती है! फड़नवीस का ये बयान उसी कोशिश का हिस्सा माना जा सकता है। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना सरकार में साझेदार हैं। फिर भी दोनों पार्टियों के रिश्तों में तनाव बना हुआ है। ये कई बार दिखता भी है। हाल ही में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जो इशारा किया, उससे भी लगा कि दोनों के रिश्ते तनाव की हद तक खींचे हुए हैं। उद्धव ठाकरे ने पिछले विधानसभा चुनाव में हारे शिवसेना उम्मीदवारों की बैठक की। उसमें उद्धव ने कहा है कि भाजपा पूरी तरह शिवसेना को खत्म करने की कोशिश में है। इस बैठक में शिवसेना का पूरा निशाना भाजपा थी। बैठक में उद्धव ने भाजपा की आलोचना की और स्पष्ट किया कि अगले चुनाव में शिवसेना अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। उन्होंने कार्यकर्ताओं से अभी से काम पर लग जाने की अपील की। उद्धव ने मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के भारत माता वाले बयान का तो जिक्र नहीं किया। पर, अब शिवसेना को भी ये समझ आ गया है कि इस तरह का बयान उन्हें हाशिए पर ला सकता है। जिस अति हिन्दुत्व के दम पर शिवसेना की पहचान बनी थी, उसे अब तक भाजपा चुनौती नहीं दे सकी थी। ये पहली बार हुआ कि भाजपा के किसी मुख्यमंत्री ने अल्पसंख्यक वोटरों की परवाह न करते हुए इस तरह की बयानबाजी की। इस बयान से निश्चित रूप से भाजपा को दो तरह के फायदे हो सकते हैं। एक तो उन्हें शिवसेना के हाथ से दरकते हिन्दू वोटरों का साथ मिलेगा। दूसरा, शिवसेना को तोड़ने मदद मिलेगी। यही कारण है कि महाराष्ट्र में भाजपा के मुख्यमंत्री को शिवसेना की भाषा बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा। ये भी नहीं कहा जा सकता कि फड़नवीस का ये बयान स्वतः स्फूर्त हो। संभव है कि इस तरह के बयान से पहले कोई रणनीति बनाई गई हो, ताकि विपक्ष हमलों के साथ-साथ शिवसेना के रुख को समझा जा सके। भाजपा ने काफी लम्बे समय से शिवसेना को उसके दायरे में लाने की तैयारियां शुरू कर दी थी। पिछले साल भी भाजपा ने कहा था कि वो शिवसेना के बयानों को नजरअंदाज करेगी। पार्टी की रणनीति है कि गठबंधन चलाने के लिए फिलहाल यही सबसे सही नीति होगी। भाजपा ने तय कर लिया था कि शिवसेना की और से होने वाले किसी भी हमले और बयानबाजी को नजरअंदाज किया जाएगा। शिवसेना के मुताबिक भाजपा के मंत्री शिवसेना नेताओं को अपमानित करने का काम करते रहते हैं। अहम फैसलों में शिवसेना की राय तक लेने की जरूरत नहीं समझी जाती। करीब 6 महीने से दोनों पार्टियों के बीच युद्ध विराम के हालात थे। लेकिन, ये तूफ़ान से पहले की ही शांति कही जा सकती है, बाद की नहीं। असली और नकली हिंदूवादियों की जंग तो अब होगी। (लेखक 'सुबह सवेरे' के राजनीतिक संपादक हैं)


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