संदीप नाईक
झाबुआ में कैलाश विजयवर्गीय ने भाजपा को जीत (:P) दिलाई.......और व्यापमं में शिवराज के बाद मुख्यमंत्री ना बन पाने का बदला लिया।
याद है जब कांग्रेस हारी थी झाबुआ में तो दिग्विजय ने कहा था कि "जब कांग्रेस झाबुआ में हार गयी है तो मैंने हार मान ली है और वे भोपाल से चले गए थे।"
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विजयवर्गीय ने कहा था भाजपा हारी तो झाबुआ का विकास रुकवा देंगे।[/caption]
अब माननीय शिवराज जी को क्या कहना है वैसे देवास में मिला सामंतवादी तोहफा उन्हें खुश कर सकता है, क्योकि गायत्री पवार निर्दलीय भी चुनाव लड़ती तो गुलाम मानसिकता के चलते जीत जाती, और देवास सीट तो भाजपा को थाली में रखे लड्डू की तरह मिली है और बगैर किसी प्रयास के पर झाबुआ में जहां सारे मंत्री और अफसरशाही ने जोर लगा दिया था वहाँ क्या हुआ मितरो ?
राजेन्द्र कासवा को अभी भी छुपाकर रखो और शरण दो संघ की भाजपा की ताकि आने वाले समय में झाबुआ के पड़ोसी जिलों और समूचे मालवा में शिवराज जी का झांकी निकल सकें।
हालांकि ना देवास से फर्क पड़ेगा ना झाबुआ से, लोकसभा में मोदी जी का एक हाथ जरुर कट गया है, बिहार के बाद मप्र में राजनीती की चाल देखिये कि मोदी का जादू खत्म हो रहा है। याद रखिये देवास चुनाव में भाजपा की जीत कोई मायने नहीं रखती - जिस तरह से जय प्रकाश शास्त्री ने गायत्री पवार को मात्र तीस हजार से जीतने दिया वह आने वाले समय की पदचाप है कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। कांग्रेस ने भी जीतकर क्या कर लिया होता साठ साल का इतिहास हमारे सामने है ही पर देवास को अपनी उपलब्धि बताना चुनाव की रणनीती वालों और सियासी पैरोकारों की निहायत ही मूर्खता भरी मानसिकता होगी।
ये चुनाव मप्र में बदलाव की बयार है और अब शिवराज जी को और उनकी भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी को सावधान हो जाना चाहिए कि क्या करना है और क्या किये जाने की जरुरत है। क़ानून व्यवस्था से लेकर मुआवजा, आत्महत्या, कुपोषण, महिला हिंसा और अपराध, सूखा, राहत और बाकी दीगर मुद्दों पर बचे हुए समय में ध्यान नहीं दिया तो अबकि बार ......कौनसी सरकार ?
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