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लोकतंत्र के राजा अखिलेश हों या शिवराज, सब हैं एक थैली के ...!

खरी-खरी            Dec 24, 2015


sriprakash-dixitश्रीप्रकाश दीक्षित पिछला सप्ताह उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में बीता जो अपना ननिहाल है। इत्तेफाक से इसी दौरान सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का शहर आना हुआ। उनके ढाई घंटे के प्रवास के लिए शहर के उन मार्गों को चमाचम किया जाने लगा जहां से लोकतंत्र के राजा की सवारी को गुजरना था। एयरपोर्ट से लेकर गोरखपुर विश्वविद्यालय तक की सड़क की लिपाई-पुताई की गई और दोनों तरफ रोजाना लगने वाले असंख्य ठेले-खोमचे इस दिन गायब कर दिए गए थे। अतिक्रमणों को दो दिन पहले ही उखाड़ फेंका गया था और अगले दो दिन तक थाने वाले बिना नागा चेक करते रहे कि कहीं फिर से तो कब्जा नहीं कर लिया गया। अब उस शाही स्टेज के बारे मे जो गोरखपुर विश्वविद्यालय परिसर मे लाखों रुपये बहा कर सजाया गया था। स्टेज पर लाखों रुपये के देश-विदेशी फूल लगाए गए थे,जिनमें आर्केट,रिगा, जेसिना,जलवेरा,ग्लाइडिसर और पोटोम प्लस आदि शामिल हैं। यह ब्योरा हम नहीं दे रहे हैं, बल्कि यूपी के दबदबे वाले दैनिक जागरण प्रकाशन के हिन्दी दैनिक आईनैक्सट [क्या रुतबे वाला अंगरेजी नाम चुना है आम हिंदीभाषी तो अखबार खोलने में ही डर जाए!] मे पढ़ने को मिला। bhaskar-clip-kolar-road अब अपने मध्यप्रदेश का किस्सा सुनिए..! मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान नगर निगम चुनाव के दौरान कोलार रोड के दशहरा मैदान पर सभा करने पधारे। कोलार के मुख्य मार्ग से दशहरा मैदान तक का फासला आधा किलोमीटर भी नहीं होगा। नगर निगम के दरबारी अफसरों को लगा होगा कि यहाँ से गुजरते वक्त कहीं मुख्यमंत्री की कार का पहिया गड़ढे मे आने से लगने वाले जर्क से उनकी कमर ना लचक जाए। फिर क्या थे इन मुस्तैद अफसरों ने सभा के एक दिन पहले रातोंरात इस सड़क का डामरीकरण कर दिया। यह अलग बात है कि अगले ही दिन इस डामरीकरण के पर्खच्चे उड़ गए। दैनिक भास्कर ने रातोंरात सड़क बनने और अगले दिन उखड़ जाने की खबर फोटो के साथ चटखारे लेकर छापी। तो यह हैं अपने लोकतंत्र के राजाओं के हाल.! ऐसा नहीं है कि यह तमाशा अभी शुरू हुआ है। मैं जब जिलों मे जनसम्पर्क अधिकारी हुआ करता था तब भी मुख्यमंत्री के आगमन पर कमोबेश ऐसा ही ड्रामा अफसरों द्वारा किया जाता था। ऐसा हो नहीं सकता कि मुख्यमंत्रियों को इस फूहड़ नाटक की जानकारी ना होती हो। फिर भी ऐसे दरबारी अफसरों पर कोई कार्रवाई ना होना और इन तमाशों पर रोक ना लगना बताता है कि इसमे उनकी भी मौन सहमति होती है..?


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