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शनि के नाम पर पाखंड,भारतीय संविधान के मुताबिक यह जुर्म है।

खरी-खरी            Feb 13, 2016


डॉ.वेद प्रताप वैदिक महाराष्ट्र में शिंगणापुर के शनि मंदिर को अब शनि लग गया है। भूमाता ब्रिगेड की 400 महिलाओं को यदि सरकार बलपूर्वक नहीं रोकतीं तो वे इस मंदिर पर चढ़ी शनि की दशा उतार देतीं। संयोग की बात है कि पिछले 400 वर्षों से इस मंदिर में किसी औरत को घुसने नहीं दिया जाता है। माना यह जाता है कि यदि वे मूर्ति के पास चली गईं तो शनि महाराज की कोप-दृष्टि उन्हें भस्म कर देगी। इससे बड़ा पाखंड क्या हो सकता है? क्या शनि महाराज बिना माँ के ही पैदा हो गए थे? क्या उनकी जननी औरत नहीं थी? शनि ने अपनी कोप-दृष्टि से गर्भ में ही अपनी माँ को खत्म क्यों नहीं कर दिया? मंदिर में जो बैठे हैं, वे शनि महाराज नहीं, उनकी पत्थर की मूर्ति है। कोई पत्थर की मूर्ति, जो अपना मुंह भी खुद साफ़ नहीं कर सकती, उसकी कोई कोपदृष्टि या कृपादृष्टि कैसे हो सकती है? किसी बेजान पत्थर को भक्तलोग ही भगवान बनाते हैं और इस अपने बनाए भगवान को वे पूजते हैं। ऐसा भगवान भला किसी से भेद-भाव क्यों करेगा? उसके लिए तो सभी उसकी संतान हैं। क्या औरत और क्या मर्द, क्या ब्राह्मण और क्या शूद्र, क्या हिंदू और क्या मुसलमान और क्या गोरा और क्या काला? यदि कोई फर्क कहीं हैं तो वह भी मनुष्य का बनाया हुआ है। भारतीय संविधान के मुताबिक यह जुर्म है। यदि जात, मज़हब, रंग के आधार पर किया गया भेदभाव जुर्म है तो यह और भी बड़ा जुर्म है कि आप मंदिर में आदमियों को तो आने देते हैं लेकिन औरतों को नहीं! देश के सभी मर्दों को चाहिए कि वे ऐसे मंदिरों का बहिष्कार करें। यदि वे ऐसा करेंगे तो पुरोहित अकेले ही घंटा बजाते रह जाएंगे। इन औरतों को चाहिए कि मंदिर जानेवाले उनके पुरुष यदि उनका साथ न दें तो वे उनसे कह दें कि आप हमें मंदिर में नहीं घुसने देंगे तो हम आपको घर में नहीं घुसने देंगी। शिंगणापुर जैसे मंदिर देश में सैकड़ों हैं जिनमें छुआछूत, भेदभाव, ऊंच-नीच, यौन-शोषण और वित्तीय स्वैराचार जोरों पर हैं। हिंदुत्व के नाम पर हम इन सब धूत्तर्ताओं को बर्दाश्त करते रहते हैं। आर्यसमाज, सर्वोदय, संघ जैसी राष्ट्रवादी संस्थाएं आजकल नेताओं की पिछलग्गू बनी हुई हैं। उनकी तेजस्विता गायब हो गई है। वे खुद आगे होकर इन आंदोलनों का नेतृत्व क्यों नहीं करतीं? ये काम राजनीतिक दलों और सरकारों के बस के नहीं हैं। उनसे मदद जरुर ली जा सकती है लेकिन इन धार्मिक और सामाजिक पाखंडों के विरुद्ध यदि कोई प्रभावशाली शंखनाद कर सकता है तो वे हमारे साधु-संत और ये समाज-सुधारक संस्थाएं ही कर सकती हैं। वीपी वैदिक डॉटकाम से


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