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शहादत और बोफोर्स दलाली रोकना है तो ऐसा करें कि जंग न हो

खरी-खरी            Dec 30, 2015


sriprakash-dixitश्रीप्रकाश दीक्षित अचानक पाकिस्तान पहुँचने से मोदीजी को जो शोहरत मिली उससे बिहार चुनाव के बाद गिरा उनका ग्राफ थोड़ा ऊपर उठ गया है। पर ऐसा तो अटलजी के लाहौर दौरे और अन्य प्रधानमंत्रियों दौरे के वक्त भी हुआ था फिर भी दोनों गरीब मुल्क अपनी रिआया का पेट काट कर एक दूसरे से जंग, परमाणु बम बनाने और हथियारों की खरीद-फरोख्त मे लगे रहते हैं। दोनों तरफ की फौज के लोग शहीद होते हैं और सत्तारूढ़ पार्टियां बोफोर्स जैसी दलाली खाकर महंगे चुनाव लड़ कर मस्त रहती हैं। इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए की मोदीजी का लाहौर पड़ाव उनकी और पाकिस्तान मे जनाब शरीफ की छवि चमकाने का शोशा भर बन कर ना रह जाए। गरीबी और जहालत से लड़ने के लिए जरूरी है कि दोनों देशों के बीच जंग ना लड़ने की संधि हो ताकि बॉर्डर पर मारकाट खत्म हो और हथियारों की खरीद-फरोख्त की आड़ मे बोफोर्स जैसी दलाली खाने का राजनीतिज्ञो को मौका ना मिले । बोफोर्स तो एक कांड है जो पता नहीं किसकी गलती से सामने आ गया। पता नहीं कितने बोफोर्स गोपनीयता के नाम पर फाइलों मे सिसक रहे होंगे..? उधर घरेलू मोर्चे पर भी मुल्क मे कमोबेश ऐसे ही हालात हैं..! तभी तो पिछले सप्ताह बीएसएफ के विमान हादसे मे मारे गए दस जवानों के अंतिम संस्कार में पहुंचे गृह मंत्री राजनाथसिंह को एक शहीद की बेटी के इस सवाल ने निरुत्तर कर दिया की हर बार सिपाही का परिवार ही क्यों रोता है ?घरेलू मोर्चे पर कश्मीर का आतंकवाद, नक्सली हिंसा, बोड़ो खून खराबा या फिर उत्तर-पूर्व की हिंसा, मारा स्टेट पुलिस और केंद्रीय बलों का निर्दोष जवान ही जाता है। सत्तारूढ़ पार्टी के नेता और आला अफसर घरेलू हिंसा से निपटने के लिए नाइटविजन लेंप,शक्तिशाली वायरलेस सेट, सुरंग निरोधी वाहने और ना जाने क्या-क्या खरीद कर फलते-फूलते रहते हैं। कुछ साल पहले ऐसा पहली बार हुआ जब छत्तीसगढ़ मे नक्सली हमले में विद्याचरण शुक्ल जैसे कई कद्दावर नेता मारे गए थे। सरकारों के पास चुनाव लड़ने, संसद में नाटक-नौटंकी करने और आपसी झगड़ों से निपटने के बाद समय ही कहाँ बचता है जो नक्सली हिंसा और आतंकवाद का कोई समाधान ढूंढ सकें..?


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