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सुख का दाता सबका साथी, छुआछूत में सब पर भारी ..!

खरी-खरी            Nov 24, 2015


sriprakash-dixitश्रीप्रकाश दीक्षित भारतीय संविधान द्वारा 65 बरस पहले खात्मा कर दिए जाने बाद भी छुआछूत की विकृति भारतीय समाज को जकड़े हुए है। नईदुनियां में दो दिन पहले पहले पेज सबसे ऊपर सात कालम में छपी खबर बताती है कि सुख का दाता, सबका साथी अपना मध्यप्रदेश दलितों पर सवर्णों की हुकूमत और दादागिरी से अब भी किस कदर कराह रहा है। नईदुनियां ने ही अपनी दूसरे दिन की खबर में बताया कि मंदिरों में दलितों के घुसने पर तो पाबंदी है लेकिन उनके चढ़ावे से कोई रहेज नहीं। धार जिले के पीथमपुर से 15 किमी दूर सुलावड़ गाँव मे आज भी दलित की शवयात्रा सवर्णों की गली से नहीं गुजर सकती है। इतना ही नहीं दलितों को सबके बीच खुशी जाहिर करने का भी अधिकार भी नहीं है। उनके बेटों की बारात उस रास्ते से नहीं निकल पाएगी जहां सवर्णों के आँगन हैं। dalit-shav-yatra-indian-express यह खबर पढ़ कर मुझे जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि एक साल पहले इंडियन एक्सप्रेस मे पहले पेज पर सबसे ऊपर आठ कालम मे प्रकाशित राष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक मध्यप्रदेश में छुआछूत सबसे ज्यादा प्रचलित है। नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च और अमेरिका की मेरीलैंड यूनिवर्सिटी द्वारा 42 हजार परिवारों पर किए गए सर्वे के अनुसार हर चार मे से एक भारतीय छुआछूत बरतता है। सबसे ज्यादा 53 प्रतिशत मध्यप्रदेश मे, फिर उसके बाद 50 प्रतिशत हिमाचल मे और फिर 48 प्रतिशत छत्तीसगढ़ मे छुआछूत बरती जाती है। इसके बाद राजस्थान,बिहार और उत्तरप्रदेश का नंबर है। उल्लेखनीय यह है कि मुस्लिमों,अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मे भी यह प्रथा प्रचलित है।


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