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हम बेखबर हैं या बेफिक्र इस बगल की छुरी से...?

खरी-खरी            Jan 03, 2016


चकरघिन्नी दो दिन से जारी (ना)पाक हरकत। 18 जवान शहीद (10 सेना के, 8 एनएसजी के)। बगल में छूरी दबाए रखने वाले पाक ने अपनी औकात उस वक़्त दिखाई है, जब हमारे देश के मुखिया पूरे हिन्दुस्तान की आलोचनात्मक टिप्पणियों को सहते शरीफ़ (?) की खुशियों में शिरकत करके आए भर हैं। देश की विदेश मंत्री पाकिस्तानी मन्त्री के साथ चर्चा में मशगूल हैं। पहली बार नहीं हुआ है ऐसा, न ही आखिरी कहा जा सकता। बार-बार जख्म देने वाले इस सपोले को पोषित करने वाले महाताकत के इशारे पर हम कब तक दिल छलनी कराते रहेंगे? जैसे को तैसा का तर्ज पर जवाब देने की मानसिकता हम क्यों नहीं बना पा रहे? अपने मफाद के लिए दहशत का जहर फैलाने वाले इस अदना से मुल्क के चन्द सिरफिरो की वजह से एक नया नाम इजाद हो गया, इस्लामी आतंकवाद! इस एक लफ्ज की वजह से हर बार वह लोग घायल होते हैं, जो इस्लाम के मानने वाले और इस अकिदे के कायल हैं कि अल्लाह बेगुनाह का खून बहाने वाले को पूरी इन्सानियत का कत्ल करने वाला करार देता है। अपनी नापाकियों की खातिर दुनिया में जहर फैलाने वाले अगर हकीकत में इस्लाम के पैरोकार होते तो यह सोचकर ही अपनी हरकतों से बाज आते कि उनके मुल्क की मुट्ठीभर आबादी से कई गुना ज्यादा मुसलमान भारत की सरजमीन पर सांस ले रहे हैं। सच यह है कि दहशत फैलाने वालों का कोई मजहब नहीं है। न अपने मुल्क के वफादार हैं, न कौम के, न इन्सानियत के और न ही अपने माबूद के। इन लोगों के साथ वही सुलूक किया जाना चाहिए, जो किसी पागल कुत्ते के साथ किया जाता है। इस काम में वह मुल्क, जिसकी धरती पर यह जी रहे हैं, हमारा साथ देने को राजी हो तो दोस्ती की तहरीर दुरुस्त, वर्ना ऐसे दोस्त की बजाय खुला दुश्मन ही बेहतर है और दुश्मनों के लिए जो सुलूक किया जाना चाहिए, हमें उस पर अमल करना चाहिए। दुश्मनी और दूरियों को कम करने की कवायद करने वाले उस देश को भी दो टुक यह बात कहना हमें सीखना होगी कि दोस्ती के एक तरफा प्रयास बहुत हो चुके, अब जैसा गाना, वैसा बजाना यह देश दिखाएगा।


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