प्रकाश भटनागर।
ये जापान से तो हमारे देश के अच्छे ताल्लुकात हैं ना! वहां के प्रधानमंत्री शिंजो आबे तो भाभीजी के साथ भारत आकर जोरदार मेहमाननवाजी का लुत्फ भी उठा चुके हैं। अगले को इस खातिरदारी से ऐसी खुशी मिली कि कह गये, ‘मैं और मेरा मुल्क हमेशा के लिए भारत का दोस्त बनकर रहना चाहेंगे।’
दमदार लोग फूलकर कुप्पा होने के बाद अक्सर ऐसी बात कह जाते हैं और सयाने मौका मिलते ही उस बात को भुनाने में पीछे नहीं रहते। इसकी उदाहरण सहित व्याख्या पेश है।
फिल्म ‘मुगले-आजम’ में अकबर बमुश्किल बाप बन पाते हैं। जो दासी उन्हें बेटा होने की खबर देती है, अकबर निहाल होकर उससे कहते हैं कि जिंदगी में एक बार जो चाहे मांग ले, उसकी मुराद पूरी की जाएगी।
कालांतर में हुआ यह कि यही बेटा बड़ा होकर दासी की छोरी के चक्कर में राजपाट पर लात मारने के लिए उतारू हो गया। बादशाह ने उस लड़की को मार डालने का हुक्म सुनाया।
यही मौका था। दासी उनके सामने प्रकट हुई और कसम की याद दिला दी। बादशाह उलझ गये। उन्हें लड़की को जिंदा छोड़ना पड़ गया।
तो जनाब हमें चाहिए कि शिंजो भाईजान के उक्त कथन की रबर को खींचकर उससे अपना हित साध लें। मामला यह है कि जापान ने ऐसे रोबोट इजाद कर लिए हैं, जो स्कूलों में बच्चों को सुधारेंगे। उन पर नजर रखेंगे। बदमाशी पर नकेल कसेंगे।
और तो और, बच्चे द्वारा लड़ने की मुद्रा अपनाते ही रोबोट एक्टिव होकर उन्हें रोक देंगे। इसकी वजह यह कि एक साल के दौर में ही यहां बच्चों के बीच स्कूलों में करीब चार लाख झगड़े हुए हैं।
इनसे परेशान होकर दस बच्चे खुदकुशी कर चुके हैं। चुंनाचे इंसान को सुधारने का जिम्मा मशीनों को सौंप दिया गया।
अब यह किया जाए कि शिंजो को उनका कथन याद दिलाकर कहा जाए कि हमें भी अपने मुल्क के लिए ऐसे ही रोबोट दिए जाएं। जिनका इस्तेमाल हम उस पौध को दुरुस्त करने के लिए करेंगे, जिसे राजनीतिज्ञ कहते हैं और जिसे सुधारना अब शायद परमात्मा के बस की भी बात नहीं रह गयी है।
जापान ने रोबोट के प्रोग्राम में बच्चों के झगड़ों के नौ हजार मामले की हिस्ट्री फीड कर दी है। हम तो इतने समृद्ध हैं कि बैठे-बैठे मुंहजबानी ही इस रोबोट को ऐसे नौ लाख किस्से सुना देंगे। ताकि वो हमारे नेताओं के सदाचार से कदाचार तक के सफर को समझकर उन पर अंकुश लगाने के लिए तैयार हो सके।
एक बार भोपाल स्थित विधानसभा में कुछ स्कूली बच्चे कार्यवाही देखने लाये गये थे। बाद में एक खबरनवीस ने उनसे इस अनुभव पर सवाल पूछा तो बच्चे बोले, ‘अंदर जितना चीखना-चिल्लाना चल रहा था, उतना शोर तो हमारी क्लास में भी नहीं होता है।’
इसीलिए अपना मानना है कि देश के नौनिहाल नहीं, बल्कि गुरूघंटाल नेताओं को सुधारने के लिए जापानी रोबोट्स की सख्त दरकार है। नेताओं ने बदमाशी की तमाम विधाओं को मानो पेटेंट करवा लिया है। रोजाना एक-दूसरे से लड़ने का काम तो उनके लिए नित्यकर्म की तरह अनिवार्य हो चुका है।
जापान में साल भर में बच्चों के बीच चार लाख झगड़े हुए, हमारे यहां न्यूज चैनलों पर होने वाली बहसों की गिनती कर ली जाए, तो यह आंकड़ा साल भर में शायद चालीस लाख के आसपास कहीं पहुंच जाएगा।
हां, एक फर्क है। वह यह कि इन झगड़ों के चलते किसी माननीय ने खुदकुशी नहीं की। आखिर चमड़ी मोटी करने का उनका रियाज और किस दिन काम आएगा!
इन रोबोट्स को मंगवाने का काम अब नेता तो करने से रहे। उन्हें डर रहेगा कि ऐसा सिस्टम लागू हो गया तो देश की राजनीति मुख्य धारा से भटककर सुधार के रास्ते पर चल पड़ेगी। यह स्थिति उनके लिए अस्तित्व का संकट खड़ा कर देगी।
इसलिए वे तो यही चाहेंगे कि ऐसा कभी न हो। लेकिन हमें तो सिस्टम को सुधारना है ना! इसलिए यह पुनीत कार्य हमें ही अपने-अपने स्तर पर करना होगा। सोशल मीडिया पर इसके लिए मुहिम चलाइए।
फेसबुक और व्हाट्सऐप पर कुछ दिन अपने खींसे निपोरते, विमान में यात्रा करते, किसी महानुभव के बगल में खड़े होकर चम्चत्व भरी मुस्कुराहट बिखेरते फोटो मत डालिए।
इनकी जगह जापान पर दबाव बनाने और शिंजो को उनकी बात याद दिलाने वाली पोस्ट डालें। हो सकता है कि अगला पिघल जाए।
ऐसे दो-चार रोबोट भी यदि उसने भेज दिये तो फिर बदलाव की बयार शुरू हो जाएगी। सोच क्या रहे हैं! हो जाइए शुरू।
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