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फ्रांस की हिंसा पर चिंतित हमारा मीडिया और राजनीतिक, मणिपुर पर परेशान नहीं होते

खरी-खरी            Jul 02, 2023


जयशंकर गुप्त।

फ्रांस के एक शहर में ट्रैफिक चौराहे पर नस्ली भेदभाव से प्रेरित एक पुलिस अधिकारी के द्वारा अलजीरियाई मूल के एक नाबालिग युवक नाहेल की बेवजह हत्या के विरोध के नाम पर फूटे जनाक्रोश के क्रम में शुरु हुई अशांति और उपद्रव थमने का नाम नहीं ले रहा है।

हालांकि हत्यारे पुलिस अफसर को निलंबित और गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन पिछले चार दिनों से हो रही हिंसा, तोड़-फोड़, लूट-पाट और आगजनी की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रहीं।

अभी तक उपद्रवियों के बारे में अधिकृत रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है लेकिन भारतीय मीडिया का एक बड़ा वर्ग इसके पीछे फ्रांस में रह रहे शरणार्थियों-घुसपैठियों को जिम्मेदार ठहराते हुए बताने में लगा है कि एक खास संप्रदाय के और खासतौर से रोहंगिया शरणार्थी जहां जहां गये हैं, वहां इस तरह की घटनाएं संभव हो सकती हैं।

हमारे मीडिया और खासतौर से टीवी चैनलों के कुछ वरिष्ठ कहे जाने वाले उत्साही लेकिन अपढ़-कुपढ़ पत्रकार और कुछ राजनीतिक भी फ्रांस की घटनाओं के जरिये भारत में नफरत का सांप्रदायिक जहर घोलने में लग गए हैं।

कुछेक ने तो जर्मनी के मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. एन जान के नाम से बने एक फर्जी ट्वीट को ही सच मान लिया और दावे करने लग गए कि फ्रांस में उपद्रव और अशांति पर काबू पाने के लिए यूपी के बुलडोजर छाप मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को फ्रांस भेज देना चाहिए।

आइटी सेल द्वारा प्रसारित इस ट्वीट का सच जानने की किसी ने भी जहमत नहीं उठाई जबकि फैक्ट चेकर्स ने इसका सच उजागर कर दिया कि उपरोक्त ट्वीट प्रो. एन जान का नहीं बल्कि भारत के ही एक जालसाज का है जो उनके नाम पर नफरती ट्वीट किए जा रहा है।

हमारा मीडिया और हमारे सत्ताधारी राजनीतिक जितना फ्रांस की हिंसा और उपद्रव को लेकर चिंतित हैं, इस तरह की चिंता उनने अपने ही देश के मणिपुर राज्य में पिछले दो महीने से चल रही हिंसा, लूट-पाट, उपद्रव और आगजनी की घटनाओं को लेकर नहीं दिखाई जिसमें तकरीबन 140 लोगों की जान जा चुकी है, हजारों लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।

राज्य में मैतेई, कूकी और नगा आबादी एक दूसरे को शक की निगाह से देखने और सामने वाले से जान का खतरा महसूस करने लगे हैं।

आर्थिक गतिविधियां ठप सी पड़ी हैं, इंटरनेट बंद है। लेकिन इसको लेकर हमारा मीडिया चर्चा भी नहीं कर रहा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मणिपुर जाना तो दूर की बात है, मणिपुर के बारे में अभी तक एक शब्द भी उनने नहीं बोला है। गृहमंत्री अमित शाह जाकर लौट आए हैं लेकिन हिंसक उपद्रव और अशांति जारी है।

फ्रांस और भारत के मणिपुर में अशांति और उपद्रव के बीच एक बात उभर कर आई है कि जहां फ्रांस में उपद्रव, तोड़ फोड़ और आगजनी की घटनाएं शुरू होने पर राष्ट्रपति मैक्रों विदेश में चल रही महत्वपूर्ण बैठक बीच में ही छोड़कर चले आए और अपनी प्रस्तावित जर्मनी यात्रा को टाल दिया, वहीं भारत के प्रधानमंत्री मोदी जलते मणिपुर का हाल जानने, लोगों के जले कटे पर मलहम लगाने के बजाए अमेरिका में राजकीय भोज का आनंद लेते रहै।

स्वदेश लौटने के बाद भी वह मणिपुर जाकर वहां के लोगों का दुख दर्द बांटने के बजाय चुनावी सभाओं को संबोधित करने और मध्यप्रदेश के शहडोल में आदिवासी नृत्य का आनंद लेने में लगे हुए हैं। अपनी-अपनी प्राथमिकताएं!

फ्रांस के राष्ट्रपति ईमैनुएल मैक्रों विदेश में अपनी महत्वपूर्ण बैठक छोड़कर पेरिस लौट आए। उन्होंने जर्मनी की अपनी महत्वपूर्ण यात्रा को टाल दिया है। लगातार स्थिति पर नजर गड़ाए मैक्रों प्रशासन शांति और कानून व्यवस्था कायम करने के उपायों में जुटा है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 



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