समीर चौगांवकर।
राजस्थान में कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट 11 अप्रैल से अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन कर रहे हैं।
यह सिर्फ कांग्रेस में ही हो सकता है कि मुख्यमंत्री अपने साथी उपमुख्यमंत्री रहे नेता को निकम्मा कहे और सार्वजनिक रूप से निकम्मा घोषित किया गया नेता अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन करे।
सचिन पायलट को यह समझने में लंबा वक्त लगा कि राजनीतिक लड़ाईयां विरोधियों से कम और अपनों से ज्यादा लड़ी जाती हैं।
सियासत तो, दरअसल,किसी को निशाना बनाकर किसी और को निपटा देने की कला है।
राजस्थान की राजनीति पर छाई धुंध अब छंटने लगी है, पाले खीचें जा रहे हैं, हथियारों को पैना किया जा रहा है।
राजस्थान के चुनाव का बिगुल पायलट के अनशन के साथ बज गया है।
राजस्थान को कांग्रेस से मुक्त करने का बीड़ा उठाने की भाजपा को जरूरत नहीं हैं क्योंकि यह काम कांग्रेस ने खुद ही करने का तय कर लिया है।
राजस्थान में गहलोत और पायलट आपस में ही खुन खच्चर पर उतारू है।जैसे युद्ध में बिना सर के धड़ चला करते हैं, वैसे ही राजस्थान में कांग्रेस चल रही है। यह धड़ अब कितने कदम और चलेगा कोई नहीं जानता।
2014 में 44 सीटें और 2019 में 55 लोकसभा सीटें जीतकर तेजी से भारतीय राजनीति से लुप्त हो रही कांग्रेस विपक्ष से निपटना तो दूर अपने ही नेताओं में भरोसा बनाए रखने में पूरी तरह असफल रही। पार्टी के कई बड़े नेता हरे भरे चारागाहों की तरफ निकल गए।
कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता वोट का छिटकना नहीं है। गया हुआ वोट फिर लौट कर आ सकता है लेकिन जनमानस में गया हुआ भरोसा फिर लौटकर नहीं आता।
नेता और रणनीति,दोनों में बौनी हो चुकी कांग्रेस, भाजपा के चुनावी और राजनैतिक लक्ष्यों में बाधा नहीं बल्कि सुविधा है।
2014 के बाद भाजपा को जो कांग्रेस मिली थी, वह तो ठीक से विपक्ष होने के बोझ से भी मुक्त हो चुकी थी।
कांग्रेस की दयनीय हालत के लिए जरा आंकड़ों पर गौर कीजिए। देश में कुल 4033 विधायक है, इनमें कांग्रेस के सिर्फ 658 विधायक हैं।
पिछले 8 सालों में कांग्रेस विधायकों की संख्या 24 प्रतिशत से घटकर 16 प्रतिशत रह गई। देश के पांच राज्यों में तो कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। देश के 9 राज्यों में कांग्रेस के 10 से भी कम विधायक है।
1951 में तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस 2023 में सिर्फ तीन राज्यों में मुख्यमंत्री है।
1984 में 48 प्रतिशत वोट ले चुकी कांग्रेस 2019 में 20 प्रतिशत से कम वोट पर सिमट गई।
उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, गुजरात,ओडिशा जैसे राज्यों में वहां की नई पीढ़ी को गूगल से पूछना होगा कि आखिरी बार कांग्रेस ने वहां कब राज किया था?
यदि कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं को साधने और कड़े निर्णय लेने की इच्छाशक्ति और ताकत होती तो कांग्रेस आज इस हाल में नहीं होती।
कांग्रेस में नेता परिवर्तन की पंरपंरा नहीं है। कांग्रेस में रण छोड़कर रण जीतना कोई नहीं चाहता।
कांग्रेस मर रही है और कांग्रेस में जान डाल सके ऐसा नेता कांग्रेस के पास नहीं है।
सारे कांग्रेसी और देश की जनता कांग्रेस को तिल तिल मरता हुआ देख रही है।
कांग्रेस ने फैसला न करने में महारत हासिल कर ली है।
राजस्थान में कांग्रेस ने खुद के ढांचे को जर्जर कर लिया है। इसी साल होने वाले राजस्थान चुनाव में आपस में लड़कर जर्जर हो चुकी कांग्रेस का ढांचा ढहना तय है।
लेखक वरिष्ठ और पत्रकार लेखक हैं। आलेख उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है।
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