कीर्ति राणा।
मध्यप्रदेश के इंदौर संभाग के आदिवासी अंचलों में होली के पहले का यह सप्ताह त्यौहारिया हाट वाला है। त्यौहारिया हाट यानी भगोरिया शुरू होने के पहले वाला यह हाट यानी दिवाली से पहले कपड़े, जेवर सहित अन्य खरीदारी वाला रहता है।
आदिवासी समाज में शुरु से ही सोने की अपेक्षा चांदी के जेवरों के साथ विवाह आदि में वर पक्ष द्वारा किलो से चांदी देने का चलन रहा है। होली के पहले वाले महीने से बड़े पैमाने पर होने वाली चांदी की खरीदी इस समाज को ठगने का आसान जरिया भी बन गई है।
सिल्ली चांदी का भाव फिलहाल 73 हजार रु किलो का है लेकिन असली के भाव में नकली-मिलावटी चांदी का कारोबार आदिवासी अंचलों में धड़ल्ले से चल रहा है। सोने के जेवरों पर तो हॉलमार्क जैसी अनिवार्यता रहती है इसलिए खोट की राह आसान नहीं रहती लेकिन चांदी पर हॉलमार्क जैसी अनिवार्यता नहीं है इस कारण भी इसमें मिलावटी चांदी के जेवर महंगे दाम पर बेचे जा रहे हैं।
देश के विभिन्न राज्यों में मजदूरी के लिए जाने वाले आलीराजपुर, झाबुआ, धार, मनावर, कुक्षी, रतलाम अंचल के आदिवासी अपने घरों पर लौटते हैं होली-भगोरिया पर्व में शामिल होने के लिए। साल के बाकी महीनों में मजदूरी में जो पैसा मिलता है उसका उपयोग त्यौहारिया हाट में खरीदारी के काम आता है।
अपनी सम्पन्नता प्रदर्शित करने का जरिया चांदी के जेवरों की खरीदी रहती है। अब तो सोने के टॉप्स, कांटे, कंदोरे आदि में पहनावे में है लेकिन सोने के मुकाबले चांदी सस्ती होने से इसकी खरीदी पर सर्वाधिक जोर रहता है। आदिवासी अंचलों के ज्वेलर्स चांदी की ज्वेलरी बनाने से अधिक इसकी अन्य राज्यों से खरीदी कर बेचने में अधिक रुचि लेते हैं।
बाहर से आने वाली ज्वेलरी में कंदोरा, पायल, टीका, कड़े आदि राजकोट, इंदौर, मुंबई आगरा से मंगवाते हैं। इन जेवरों में चांदी 30-35 फीसदी में तांबा और अन्य धातु मिलाई जा रही है।मिलावटी चांदी वाले इन जेवरों की वॉयब्रेटर पॉलिश होने से इसकी चमक शुद्ध चांदी का आभास कराती है।जो व्यापारी आदिवासियों को ऐसे चांदी जेवरों की हकीकत नहीं बताते वे बड़ी आसानी से 70 से 73 हजार रु किलो का भाव बता कर इसी भाव में सौ ग्राम से लेकर आधा किलो तक के जेवर खपा देते हैं।
आदिवासी समाज में बेटी का विवाह तय होने पर वर पक्ष द्वारा अपनी हैसियत मुताबिक एक से पांच किलो तक चांदी वधु पक्ष को देने का रिवाज होने से कई व्यापारी ये खोट वाली चांदी भी ऊंचे भाव में बेच देते हैं।सोने के जेवरों की तरह चांदी पर हॉलमार्क की अनिवार्यता नहीं होने और चांदी की प्रामाणिकता की जांच जैसी सुविधा आदिवासी अंचलों में नहीं होने का सीधा लाभ ऐसे कारोबारी उठा रहे हैं।अंचलों में चांदी के जेवरों की खरीदी बिक्री बिना बिल-गारंटी के अधिक होती है। जेवर खरीदने वाले आदिवासी परिवार तब ठगे से रह जाते हैं जब चांदी काली पड़ जाने, खराब हो जाने पर बेचने जाते हैं तो खरीदी वाले भाव जितने दाम नहीं मिल पाते।
अभी जो त्यौहारिया हाट में चांदी के जेवरों की खरीदी के दबाव का आलम यह है कि धार-झाबुआ के आदिवासी अंचलों में ही दस हजार किलो से अधिक के चांदी जेवर की बिक्री हो जाती है।गिलट के जेवरों की खरीदी तो अलग ही है।
शहरी क्षेत्रों में शेयर, म्युचुअल फंड, जमीन और सोने की खरीदी तो आदिवासी अंचलों में चांदी की खरीदी इंवेस्टमेंट का माध्यम है। ईमानदारी से व्यापार करने वाले भी हैं लेकिन मिलावट करने वाले व्यापारी वर्षों से इसका लाभ उठा रहे हैं।
आदिवासी अंचलों में बेटी का जन्म भी किसी उत्सव से कम इसलिए भी नहीं है क्यों कि बेटी के विवाह में वर पक्ष द्वारा जो दहेज दिया जाता है उसमें चांदी देना भी शामिल है।शहरी क्षेत्रों में जहां सुशिक्षित परिवार भी लड़की के जन्म पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं वहीं आदिवासी परिवारों में बेटी के जन्म पर दारु-मुर्गे की पार्टी का जश्न मनाना सामान्य बात है।
झाबुआ क्षेत्र में दशकों से आदिवासियों के तीज-त्यौहार, परंपरा-संस्कृति के प्रामाणिक हस्ताक्षर फोटोग्राफर *अनिल तंवर *(आलीराजपुर) बताते हैं पहले चांदी के जेवर पर अब गिलट धातु हावी है तो उसकी वजह चांदी के भाव में निरंतर वृद्धि होना भी है।एक वो जमाना था जब गले में पहनी जाने वाली चांदी की तागली में जार्ज पंचम के सिक्के होते थे।
हाथ-पैर में चांदी के मोटे कड़े पहने जाते थे।भगोरिया में अब तेजी से जो बदलाव आया है तो पानी की बोतल भले ही नहीं मिले वॉस्को बीयर जरूर मिल जाएगी।इस बीयर में एक पौवा देशी शराब मिक्स कर के युवक नशे में झूमते देखे जा सकते हैं।
ग्राहक को अंधेरे में रखना गलत, चांदी पर हॉलमार्क अगले साल तक अनिवार्य हो सकता है-अनिल रांका, सराफा एसोसिएशन अध्यक्ष
इंदौर चांदी सोना जवाहरात व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल रांका से चर्चा की तो उनका कहना था चांदी के जेवरों में डिमांड के हिसाब से अलग अलग टंच के जेवर बनाये जाते है।इस संबंध में ग्राहक को संबंधित सर्राफ आगाह भी करते हैं। जो व्यापारी ग्राहक को वापसी की कीमत नही बताते वो ठीक नहीं, ग्राहक को अंधेरे में रखना गलत है।
वैसे तो चांदी के चौरसे पर टंच प्रामाणिकता का रिफाइनरी अपना तो ठप्पा लगाती ही हैं लेकिन देश में “इंदौर चांदी सोना जवाहरात व्यापारी एसोसिएशन" ही एक मात्र ऐसी संस्था है जो चौरसे पर अपनी एसोसिएशन के लोगो का ठप्पा लगाती है, जो चांदी की 99 फीसदी प्रामाणिकता को दर्शाता है।सोने के जेवरों पर जिस तरह हॉल मार्क अनिवार्य कर दिया गया है।
केंद्र सरकार चांदी के जेवरों पर भी यह नियम लागू करने वाली है, अगले साल तक इन जेवरों पर भी हॉलमार्क अनिवार्य हो सकता है।
रांका के मुताबिक चांदी के जेवरों में उपयोग की जाने वाली चांदी 70-80 टंच की रहती है।10-15 फीसद लेबर और अपना मुनाफा जोड़कर ज्वेलर्स कारोबार करते हैं। चांदी जेवर खरीदने वालों को बता भी देते हैं कि बेचने पर कितना मूल्य मिलेगा। चांदी जेवरों का कारोबार करने वाले जो व्यापारी ऐसा नहीं करते हैं वो ग्राहकों के प्रति विश्वसनीय नहीं हो सकते।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
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