मल्हार मीडिया ब्यूरो जबलपुर रायपुर।
एडीजी पवन देव से जुडे़ यौन उत्पीड़न मामले में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण ( कैट ) ने छत्तीसगढ़ शासन सहित पुलिस महानिदेशक एएन उपाध्याय, जांच समिति के सदस्यों को नोटिस थमा दिया है। अब इन्हें नोटिस का जवाब देना होगा। नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्त के खिलाफ जाकर जांच करने को लेकर आईपीएस देव ने रपट को ही कैट में चुनौती दी है जिस पर यह आदेश आया है।
ज्ञात हो कि एक महिला आरक्षक द्वारा आईपीएस देव पर आरोप लगाए गए थे।आरोप की जांच का जिम्मा डीजीपी उपाध्याय ने विशाखा समिति का गठन कर उसे सौंपा था। विशाखा समिति में आईएएस रेणु पिल्ले,आईपीएस बीपीएस पोषार्य व सोनल मिश्रा के अलावा एक अशासकीय सदस्य के रुप में श्रीमती मनीषा शर्मा शामिल थी। इसी समिति ने जांच कर जो रपट सौंपी है अब वह विवादित हुए जा रही है।
पहले मिला स्टे,अब दिलवाया नोटिस
एडीजी देव से जुडे़ प्रकरण में आए दिन नए मोड़ आ रहे हैं। आईपीएस पवन देव शुरुआत से ही शिकायत को आशीष वासनिक की बर्खास्तगी से जुडा़ षडयंत्र का हिस्सा बताते रहे हैं लेकिन समिति ने इस पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। समिति की जांच रपट भी धूल खाते महीनों पडी़ रही।
कार्रवाई नहीं होने की बात करते हुए महिला आरक्षक ने बिलासपुर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करी थी। हालांकि हाईकोर्ट ने इसे जनहित याचिका मानने से इंंकार करते हुए छत्तीसगढ़ शासन को *महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम* के प्रावधानों के तहत 45 दिन के भीतर प्रकरण के निराकरण के निर्देश दिए थे। कोर्ट द्वारा दी गई अवधि की समाप्ति के ठीक पहले एडीजी देव को आरोप पत्र थमा दिया गया।
स्वयं को आरोप पत्र मिलने के बाद आईपीएस देव ने कैट का दरवाजा खटखटाया। अभी तकरीबन दो सप्ताह पहले ही आरोप पत्र पर एडीजी पवन देव को कैट से स्टे मिला था। इसके तुरंत बाद पूरी जांच रपट को ही एडीजी देव ने कैट के समझ चुनौती दी। इस चुनौती को स्वीकारते हुए कैट ने नोटिस जारी की है।
क्या थे तर्क
एडीजी देव ने यह तर्क दिया था कि जांच में उन्हें प्रतिपरीक्षण का अवसर नहीं दिया गया।इसके अलावा नियम विरुद्ध तरीके से साक्षियों की गवाही फोन पर लेने,वाट्सऐप पर लिए गए बयान,नियमों की अनदेखी कर नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों के खिलाफ जाकर कार्रवाई करने सहित साक्ष्यों की कूटरचना कर रपट तैयार करने के आधार पर जांच रपट को कैट में चुनौती दी गई।
कैट जबलपुर ने प्रथम दृष्टि में आईपीएस देव के तर्कों पर सहमति जताई है। कैट ने शासन द्वारा जारी किए गए आरोप पत्र पर आगामी कार्रवाई पर रोक लगा दी है। इसी तरह विशाखा समिति के जांच प्रतिवेदन पर एडीजी पवन देव के अधिवक्ता मनोज शर्मा द्वारा दिए गए उक्त तर्कों से सहमत होते हुए याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार्य कर ली है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ शासन सहित डीजीपी व उनके द्वारा गठित विशाखा समिति के सभी सदस्यों को नोटिस जारी कर जवाब प्रस्तुत करने आदेशित किया है।
गौरतलब है कि एडीजी पवन देव द्वारा प्रस्तुत याचिका में समिति पर साक्ष्यों को बदलने के भी आरोप लगाए गए हैं। यह अत्यंत ही आश्चर्य का विषय है कि समिति में आईएएस रेणु पिल्ले जैसी ईमानदार,कर्त्तव्यनिष्ठ व विद्वान अधिकारी के होते हुए भी साक्ष्यों में कूटरचना हो गई। अब सवाल इस बात का उठता है कि यह कूटरचना कैसे और किसके इशारे पर की गई?
आईपीएस अफसर पवन देव ने कैट के समझ प्रस्तुत अपनी याचिका में स्पष्ट किया है कि समस्त तथ्यों को उन्होंने अपने अभ्यावेदन के माध्यम से शासन के ध्यान में लाया था। फिर ऐसी क्या परिस्थिति थी कि किसी तरह का साक्ष्य न होने के बावजूद नियम विरुद्ध तरीके से एडीजी पवन देव के खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया। अब फिर एक सवाल उठता है कि क्या एडीजी पवन देव के खिलाफ षडयंत्र रचा जा रहा है? यदि रचा जा रहा है तो वो कौन से प्रभावशाली लोग हैं जो षडयंत्र में शामिल हैं ?
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