डॉ. ऋतु पांडे शर्मा।
यह कहानी है एक युवा इंजीनियर की जो संभावनाओं से भरा हुआ है लेकिन उसके मन में भारतबोध भी उसे चमकदार कैरियर के बीच स्पंदित करता रहता है।
सुविधा सम्पन्न जीवन सामने था लेकिन सत्यम ने लीक से हटकर कुछ करने को ही सत्य माना और चैतन्य कुल नाम से एक प्रयोग किया।
चैतन्य कुल मतलब समाज के वास्तविक जरूरतमंद बच्चों को सीखने के कौशल को निखरने का व्यवस्थित अवसर।
आज युवा इंजीनियरों का यह प्रकल्प शालेय शिक्षा के रटन्त और उबाऊ चलन की जगह कौशल उन्नयन और बुनियादी रूप से सीखने के प्रवृति पर काम कर रहा है।
खास बात यह है कि चैतन्य कुल का लक्षित वर्ग समाज के सबसे जरूरतमंद बच्चों से जुड़ा है।यह प्रकल्प नई शिक्षा नीति के साथ भी सैद्धान्तिक रुप से मेल खाता है। सत्यम श्रीवास्तव मेरठ से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट है।
अपने सहपाठियों के विपरीत,कैरियर के निर्णायक समय में एक ऐसा निर्णय उन्होंने लिया है जो अप्रत्याशित है। लड़के इस उम्र में जहां भारी पैकेज वाली नौकरी के लिए गलाकाट प्रतियोगिता का हिस्सा बनते हैं और जल्दी ही सैटल हो जाने का सोचते हैं।
वहीं यह नवयुवा शिक्षा जैसे बुनियादी क्षेत्र में कदम रखता है। वह अपने काम की शुरूआत 2016 मऊ (उप्र) से करता है। एक बच्चे से शुरू हुए स्कूल में धीरे-धीरे 150 बच्चे पढ़ने लगते हैं।
उसी के जैसे कुछ और युवा सत्यव्रत,रितिक इस यज्ञ में अपने जुनून की समिधा डालते हैं और यहां से "चैतन्य कुल" अस्तित्व में आता है।
"सत्यम के अंदर चुनौती स्वीकार करने का अदम्य साहस है। बरखेड़ा (सीहोर) जैसे जंगल में अकेले रहना अपने आप में बहुत कठिन काम है।
पर सत्यम ने जिस प्रण को पूरा करने का महाघोष किया है निश्चित ही सारा ब्रह्मांड उनके लिए रास्ते खुद बना देगा। प्रकृति के साथ जीना और सीखना " संवेदनशील होने की तरफ महत्वपूर्ण कदम है जो आजकल के कॉन्वेंट एजूकेशन में नही है"।
आधुनिक शिक्षा धन,यश, साधन तो जुटाने में सफल है लेकिन स्वयं से दूर कर देना इसका नकारात्मक परिणाम है। आधुनिक शैक्षिक वातावरण कला को ड्राईंग, पेटिंग समझकर क्लोन बनाने की तरफ धकेल रहा है, जबकि प्रकृति ने हरेक को विलक्षण बनाया है।
सत्यम ने जिस तरह का काम हाथ में लिया है यह 'आउटडेटेड' भले ही दिखाई दे लेकिन कई मायनों में सार्थक है।
आखिर सीखना क्या है, कैसे होता है, कौन सीखता है -जैसे प्रश्न आधुनिक शिक्षा में अनुत्तरित हैं। लोग बहती धार से विपरीत तैरने को संघर्ष समझते हैं और अपना यशगान करते हैं।
जबकि धारा के विपरीत बहने में अपने अस्तित्व को स्वतंत्र छोड़ देने से ही समंदर के रास्ते पहुँचा जा सकता है। और ज्ञान वही समंदर है, जिसे हर कोई खोजता फिर रहा है।
यह सब 2016 में शुरू हुआ जब सत्यम श्रीवास्तव ने अपना व्यवसाय छोड़ने और अपने पैतृक गांव अडारी की ओर रुख करने का फैसला किया।
उनका एकमात्र लक्ष्य ग्रामीण बच्चों के लिए एक सीखने का अनुकूल माहौल बनाना था। जैसे ही वह वहां पहुंचे, उन्होंने देखा कि बच्चों को रटने के पुराने सिद्धांतों का पालन करने के लिए मजबूर किया जाता है और उन्हें शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ता है।
एक सख्त परिवार में पले-बढ़े वे ऐसी ही परिस्थितियों से गुजरे थे, इस प्रकार इन बच्चों को एक बेहतर बचपन प्रदान करने के अपने संकल्प को मजबूत किया।
पिछले 4 वर्षों में, चैतन्य कुल इन बच्चों के पालन-पोषण और उन्हें जिम्मेदार इंसान बनने में मदद करने के अपने सिद्धांत पर कायम है। आज पूरे शिक्षण केंद्र का संचालन बच्चों द्वारा किया जाता है।
सत्यम कहते है कि
सत्यम का कहना है कि सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक दायित्व से परे और उम्र, लिंग और वर्ग की बाधाओं से परे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना और बढ़ावा देना हमारा प्रमुख उद्देश्य है।
हमारी नजर यार, देखभाल, त्याग, सच्चाई और ईमानदारी के बीज को सिखाने की नहीं, बल्कि सीखने की प्रक्रिया के माध्यम से बोना आवश्यक है।
सत्यम जोड़ते हैं कि हम ग्रामीण भारत के कम विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को गुणवत्तापूर्ण सीखने के अवसर प्रदान करते हैं।
सीखने के कार्यक्रम का फोकस प्रतिभागियों को विभिन्न तकनीकी और सॉफ्ट स्किल्स में आत्म-निर्भर बनने के लिए तैयार करना है और उन्हें एक ऐसा वातावरण देना है जहां वे कर्तव्यनिष्ठ और जिम्मेदार इंसान बनना सीखते हैं, ताकि वे अपने समुदाय के दयालु और बुद्धिमान नागरिक बन सकें।
लेखिका बीईंग माइंडफुल पत्रिका की संपादक हैं।
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