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पॉक्सो एक्ट के सबसे ज्यादा पेंडिंग केस मप्र में

वामा            Dec 07, 2025


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

देश में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की सुनवाई बेहद धीमी है। ताजा सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पॉक्सो कानून के तहत 35,434 से ज्यादा केस दो साल से अधिक समय से अदालतों में अटके पड़े हैं।

लोकसभा में दी गई जानकारी से साफ है कि कई बड़े राज्यों में लंबित मामलों की संख्या तेजी से बढ़ी है।

2023 तक के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 10,566 केस दो साल से लंबित हैं। इसके बाद महाराष्ट्र 7962, पश्चिम बंगाल 2003, तमिलनाडु 1910 और मध्य प्रदेश 1736 केस के साथ शीर्ष राज्यों में शामिल हैं।

वहीं छत्तीसगढ़ में 375, राजस्थान में 224, बिहार में 1079, झारखंड में 315, पंजाब में 152, हरियाणा में 606, चंडीगढ़ में 16, हिमाचल प्रदेश में 101 और उत्तराखंड में 374 केस दो साल से ज्यादा समय से लंबित हैं।

पेंडिंग केस- 2023

उत्तर प्रदेश    10,566

महाराष्ट्र    7,962

प. बंगाल    2,003

तमिलनाड    1,910

मध्य प्रदेश    1,736

लंबित केसों में भारी इजाफा

2015 की तुलना में 2023 में लंबित केसों में भारी बढ़ोतरी हुई है। उदाहरण के तौर पर 2015 में यूपी में सिर्फ 26 केस पेंडिंग थे, जो बढकर 10,566 हो गए। महाराष्ट्र में यह संख्या 48 से बढकर 7962, प. बंगाल में 55 से 2003, तमिलनाडु में 2 से 1910 और मध्य प्रदेश में 0 से 1736 पहुंच गई।

5 साल में 4.5 लाख केस दर्ज

2021 से 2025 के बीच देश में पॉक्सो के 4.5 लाख से ज्यादा केस दर्ज हुए। इनमें यूपी सबसे ऊपर रहा जहां 1,31,692 मामले दर्ज हुए। महाराष्ट्र (76,409) और मध्य प्रदेश (32,548) दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। तमिलनाडु (39,099) और गुजरात (31,617) भी प्रमुख राज्यों में शामिल हैं। कुछ पूर्वोत्तर राज्योंमिजोरम, नगालैंड, लद्दाख और अंडमान-निकोबारमें हर साल 0 से 11 के बीच ही मामले दर्ज हुए।

लंबित मामलों में इजाफा

राज्य    2015    2023

यूपी    26    10,566

महाराष्ट्र    48    7,962

बंगाल    55    2,003

तमिलनाडु    02    1,910

मध्यप्रदेश    00    1,736

773 फास्ट ट्रैक कोर्ट

देश में 773 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट चल रहे हैं, जिनमें 400 अदालतें सिर्फ पॉक्सो केसों की सुनवाई करती हैं। सितंबर 2025 तक ये अदालतें 3.5 लाख केस निपटा चुकी हैं। केंद्रीय कानून मंत्री ने बताया कि पहली बार पांच और दस साल का राज्यवार डेटा एक साथ संसद में पेश किया गया है।

 


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