अजीब शख्श है, हंसता हुआ गुजर जाता है,सैलाब शहर में छोड़ जाता है

खास खबर            May 14, 2022


वीरेंद्र भाटिया।
जिनके चित्र आप नीचे देख रहे हैं वह एक आईएएस अफसर के चित्र हैं, ऐसा एक आईएएस हमे नजदीक से देखने को मिला जो अक्सर फिल्मों में था, या सुदूर कहानी किस्सों में था।
अशोक गर्ग जब सिरसा के उपायुक्त हुए तो उनसे परिचय हुआ।

आईएएस से परिचय होना बड़ी बात होती होगी, लेकिन हम मिले तो हमें आईएएस वाली धौंस में लगे ही नहीं।

हमने सोचा आम पब्लिक या मातहत के साथ अधिकारी की धौंस होती है, हम तो मित्रवत मिले हैं। कुछ समय के बाद उनकी ट्रांसफर हो गया।

ये सैलाब जेब में भरकर लाते हैं और चुपके से उस शहर में छोड़ देते हैं जहाँ से इन्हे रुख़सत होना होता है।

ये सिरसा की गलियों में सैलाब छोड़कर चले गए।

एक मेरे मित्र हैं प्रेम शर्मा, उपायुक्त के मातहत कर्मचारी हैं, एक दिन रुआंसे हो गए ,बोले कितने ही उपायुक्त के साथ मैंने काम किया है लेकिन सर तो.. और आगे उनसे बोला नही गया।

सिरसा में शिक्षा, सफाई, युवाओं से संवाद इनके मुख्य कार्य थे लेकिन जब इनका तबादला हिसार हुआ तो ये म्युनिसिपल कमिशनर हो गए।

अशोक गर्ग साहब को यहां काम करने की बढ़िया सम्भावना नज़र आई। इन्होंने हिसार के तमाम सफाई कमर्चारियों का जीवन स्तर उठाने की पहल की।

उनके लिए तथा उनके बच्चों के लिए अनेक पुस्तकालय खोले, पढ़ने की जरूरत समझाई और चुनिंदा कहानियो की एक किताब छपवाकर उन्हें भेंट की ताकि वे इसे अपने पास हमेशा रखें। उन्होंने कुछ सफाई कर्मी महिलाओं से कहा कि आप बतौर लेखक अपनी कहानी कहिए।

महिलाओ ने जो कहा, वह दलित चिंतन का अविस्मरणीय कहन है। वे कहानियां पुस्तक रूप में संकलित हैं और प्रकाशनाधीन हैं जिस पर उनके मित्र औऱ ख्यात साहित्यकार-चित्रकार मनोज छाबड़ा ने बहुत मेहनत की है।

अशोक गर्ग साहब अपने विभाग के सफाई कर्मियों के बीच ऐसे रहे जैसे कि उनका कोई सखा कोई शुभचिंतक उनके बीच है।


 
सफाईकर्मी कहते कि आजतक तो हमें किसी आम इंसान ने ही इंसान न समझा, हम अफसर से तो डांट खाने ही उनके सामने आते थे, यह पहला अफसर है जो हमारी और बच्चों की शिक्षा की चिंता कर रहा है, बीमारी की चिंता कर रहा है, नशों से बरबादी की चिंता कर रहा है।

हम तो ऐसे अफसर के लिए जान दे दें , काम की क्या बात है, जितना मर्जी करवा लो और गर्ग साहब ने सिर्फ उतना ही काम लिया जितना बनता था।

कल तक हिसार सफाई के मामले में हरियाणा में अव्वल कहा जा सकता था, देश के साफ शहरों की सूची मे सम्भव है इस बार हिसार का नाम भी आये।

और फिर उनका तबादला रेवाड़ी के उपायुक्त के पद पर हो जाता है, विदाई पार्टी में वह तमाम वर्ग जुटता है जिनके लिए गर्ग साहब अपने थे।


एक हाथ में फूल दूसरे में मिठाई पकड़े लोग, खासकर महिलाएं अनेक बार भाव विह्वल हुईं। कुछ लोग गर्ग साहब के सीने लगकर रोये।

कोई अफसर किसी सफाई कर्मी को सिर्फ फिल्मों में ही गले लगाता दिखा होगा। वर्ना तो जिन्हें हम हिन्दू हृदय सम्राट कहते थे ऐसे लोग भी दलित बस्तियों से लौटकर गंगाजल से नहाते पाए गए।

अशोक गर्ग और उनका परिवार साधारण सौम्य और धौंस रहित अफसरी वाला परिवार है लेकिन इनकी धौंस इतनी है कि किसी से एक बार मिल लेते हैं तो उसके भीतर जबरन घुस जाते हैं।

लोग कहते हैं कि अफसर और मन्त्री की अगाडी से बचना चाहिए, अफसर और मंत्री के लिए जो जगह तय हो वहां न तो बैठना चाहिए न ही खड़े होना चाहिए।

लेकिन एक बार मैं गलती से गर्ग साहब की गाड़ी में उनके साथ उनकी ही सीट पर बैठ गया, वह उनकी सीट थी यह मुझे बैठने के बाद समझ आया क्योंकि उस जगह पर उनका छोटा तौलिया रखा हुआ था।

मुझे बाद में समझ आया कि अफसर अपनी जगह की निशानी रखते हैं ताकि कोई दूसरा गलती न खा जाए, अफसर का यह डेकोरम जरुरी भी होता है।

गर्ग साहब ने मुझे नहीं टोका, लेकिन तीन किलोमीटर के सफर में मुझे तीन सौ बार यह बोध हुआ कि अफसर अगर मित्रवत है तो भी उनके डेकोरम को तो बनाए रखना चाहिए था।

जब मेरा घर आ गया तो मैने गाड़ी रुकवाई और गर्ग साहब से कहा, सॉरी sir मुझे ज्ञात नहीं रहा कि मुझे किस साइड बैठना था लेकिन sir जी फील बड़ा मज़ेदार था जी इस जगह बैठने का।
गर्ग साहब हंसे और बोले, किसी वक्त लम्बे सफर में साथ चलना, ज्यादा समय वाला बड़ा फील लेना।

गर्ग साहब हमें ऐसे लगते हैं जैसे आज भी सिरसा में हैं, उम्मीद करता हूँ हिसार के उनके शुभचिंतक लोगों को भी ऐसा ही लगे कि वे उनके बीच ही हैं।

आप की जरूरत रेवाड़ी को हिसार से ज्यादा होगी शायद। हमारी ढेरों शुभकामनाएं हैं, और उपायुक्त होने की इस बार थोड़ी मरोड़ राखियो sir जी।


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