मल्हार मीडिया ब्यूरो।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी व्यक्ति का सार्वजनिक स्थान से अपहरण करना, पिस्तौल के बट से हमला करना और धमकी देकर खुद को दोषी ठहराने वाला झूठा वीडियो बनाना “जघन्य अपराध” की श्रेणी में आता है, जिसे समझौते के आधार पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
यह आदेश जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की एकल पीठ ने सुनाया, जब उनके समक्ष आरोपियों द्वारा एफआईआर रद्द करने की याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में समझौते का हवाला दिया गया था, लेकिन कोर्ट ने एफआईआर की डिटेल को देखते हुए उसे रद्द करने से इनकार कर दिया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार शिकायतकर्ता अपने दोस्तों के साथ खड़ा था, जब एक कार में सवार कुछ लोगों ने उसे बात करने के बहाने कार में बैठा लिया।
उसके मना करने पर भी जबरन ले जाया गया और 5 लाख रुपए की मांग की गई। जब उसने इनकार किया, तो एक आरोपी ने पिस्तौल निकालकर धमकाया और उसकी आंख के पास पिस्तौल का बट मारा।
इतना ही नहीं, आरोपियों ने Google Pay के माध्यम से ₹16,000 की वसूली की और फिर शिकायतकर्ता को पिस्तौल पकड़ाकर एक झूठा वीडियो बनवाया, जिसमें उसे यह बोलने के लिए मजबूर किया गया कि वह दीपेंद्र कंसाना को मारने आया था और पैसे उसने स्वेच्छा से दिए।
इसके बाद आरोपियों ने शिकायतकर्ता को धमकी देते हुए 4,84,000 रुपये की और राशि मांगी कि वे वीडियो को वायरल कर देंगे और अगर उसने किसी को घटना के बारे में बताया तो उसे फंसा दिया जाएगा।
अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि इस तरह का अपराध महज निजी विवाद नहीं बल्कि समाज के खिलाफ गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। जस्टिस अहलूवालिया ने कहा कि ऐसी हरकतें “सामाजिक व्यवस्था और कानून के शासन” पर गंभीर प्रभाव डालती हैं।
कोर्ट ने “ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य” (2012) और “नरिंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य” (2014) जैसे सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि जघन्य और संगठित अपराधों में समझौता नहीं किया जा सकता।
इस आधार पर अदालत ने एफआईआर रद्द करने की याचिका खारिज कर दी और कहा कि ऐसे मामलों में न्यायिक विवेक का प्रयोग करते हुए एफआईआर रद्द करना उचित नहीं होगा।
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