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अपना दर्जा घटाने में हम खबरनबीसों की कितनी हिस्सेदारी

मीडिया            Apr 14, 2016


राकेश दीवान। पनामा पेपर्स' पर काम करने वाले भारतीय पत्रकारों से मिलने कल 'प्राइम टाइम' में रवीश कुमार 'इंडियन एक्‍सप्रेस' के दफ्तर गए थे। 'इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्‍वेस्‍टीगेटिव जर्नलिस्‍ट' (आईसीआईजे) से जुडीं ऋतु सरीन, वैद्यनाथन नायर और जय मजूमदार के अलावा उन्‍होंने अखबार के स्‍थानीय संपादक राकेश सिन्‍हा से भी बात की। सिन्हा जी ने ऐसी खोजी पहल और उस पर अखबारी प्रतिष्‍ठान की प्रतिक्रिया के बारे पूछने पर एक बहुत मार्के की बात की। उन्‍होंने कहा कि जो अखबारी प्रतिष्‍ठान पत्रकारिता का ''मान'' रखते हैं वहां ऐसे कामकाज सरलता से होते हैं। इसके पहले ऋतु जी बता चुकी थीं कि इसी अखबार में रहते हुए उन्‍होंने तीन ऐसी खोजी खबरें की हैं जिनके प्रभाव देश, विदेश में महसूस किए गए। सोचिए, हमारे हिंदी अखबारों के मालिकों और उनके दाएं-बाएं बसे संपादकों की पत्रकारिता और पत्रकारों पर क्‍या राय होती है? और क्या ऐसी राय के बूते कोई ठोस, कारगर पत्रकारिता की जा सकती है? अलबत्‍ता, सोच रहे हैं तो यह भी सोच ही लीजिए कि अपना दर्जा घटाने में हम खबरनबीसों की कितनी हिस्सेदारी है? राकेश दीवान के फेसबुक वॉल से


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