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आशु की चकरघिन्नी:तू न थकेगा, तू न रुकेगा, सत्य पथ, अग्नि पथ(?)

मीडिया            Apr 06, 2016


सत्य, आदर्श, आन्दोलन, अभियान, मुहिम कोई युग रहा होगा, जब अखबारों के साथ यह अल्फाज जुड़े होते थे, अच्छे भी लगते थे। फिर दौर बदला, तोर-तरीके बदले और अखबार से लेकर खबरों के मायने भी बदलते गए। सच का जज्बा लिए कलम चलाने वालों के हाथ से फिसलकर अखबारी इन्तजामात पूजिपतियों की झोली में चले गए। खबरों में सच्चाई की जगह चापलूसी, चाटुकारिता और व्यापारिक नजरिये ने ले ली। हालात यहाँ तक पहुँच गए कि अब खबरों की जगह भी अखबार नवीस, सम्पादक या मालिक नहीं बल्कि इन समाचार पत्रों को जिन्दा रखने वाली सरकारें तय करने लगे हैं। देश का सबसे बड़ा अखबार होने का दावा करने वाले समाचार पत्र को एक टीवी अभिनेत्री की आत्महत्या, एक एनआईए अफसर के सरेआम कत्ल से ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है। एक नहीं तीन दिन तक अखबार की लीड पर बैठी खुदकुशी, अफसर की हत्या की खबर को चौथी-पाचवी पायदान पर पहुँचा देती है। केलेन्डर से तारीख बदलने से पहले खबरों का किरदार बदल जाता है। देश में काला धन वापसी, हर आम-ओ-खास को मिलने वाले 15 -15 लाख रुपए, हर साल 2 करोड़ बेरोजगारों को नौकरी मिलने की बातें, हाफिज़ सईद, दाऊद इब्राहिम और पाकिस्तानियो के सिर लाने के बडबोलेपन कही दबा दिए जाते हैं। विजय माल्या अरबों रुपए लेकर छुमन्तर हो जाता है, पठानकोट हमले के मुजरिम लापता हो जाते हैं, रोहित के क़ातिल जमीनदोज हो जाते हैं और अखबार भारत माता की जय की डिबेट पर ही अटक जाते हैं। सियासत करने वाले अवाम से किए वादे भुलाकर, देश को बेवकूफ बनाने में लगे हैं और अखबार ताल से ताल मिलाकर कहते नजर आ रहे हैं तू न थकेगा कभी, तू न झुकेगा कभी०००! पुछल्ला राज(न) गए, कुछ और भी पा गए! कभी नकलची कहे गए तो कभी करोड़ों के इश्तहार घोटाले के आरोप से घिरे। वक्त-बेवक्त आवाज़ आती रही कि अब राज(न) रहेगा। बदलाव हुए, तीन दर्जन आइएएस हिल गए। लेकिन उनके हिस्से एप्को सहित कई मलाईदार विभागों की चाशनी और जुड़ गई। कहा जा रहा है कि करेगा जो भी, (सरकार) भलाई के काम, उसका ही नाम रह जाएगा!


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