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इंदौर प्रेस क्लब चुनाव:गुटका सुपारी किंग एक वोट में मकान-प्लाट, तीर्थ, लोन और न जाने क्या-क्या देगा

मीडिया            May 02, 2016


मल्हार मीडिया डेस्क। गुटका सुपारी किंग ने 4 से 5 करोड़ का बजट रखा है इंदौर प्रेस क्लब चुनाव का। रोज दारू पार्टियां हो रही हैं, भंडारे चल रहे हैं। कहते हैं कि सिंधी 'संत' आसाराम का फाइनेंस मैनेजर यही गुटकेवाला है, जो राजेन्द्र माथुर और राहुल बारपुते की परम्परा में प्रेस क्लब अध्यक्ष बनना चाहता है..। आलम यह है कि पत्रकारों को एक वोट के बदले मकान—प्लाट,तीर्थ,लोन जैसे लालच दिये जा रहे हैं। अब माथुर—बारपुते पत्रकारिता परंपरा में रह रहे असल पत्रकारों की परीक्षा है कैसे पढ़ें अरे! वाह पत्रकारों के अच्छे दिन सच में आ गए हैं। आपको पता नहीं। एक वोट दो और मकान-भूखंड, बुजुर्गों की तीर्थ यात्रा, बीमा, अच्छा रेस्टोरेंट, खास फिल्मों के वक्त परिवार के साथ मल्टी प्लेक्स में शो, लोन और पैंशन लेना हो तो एक अच्छी सी सहकारी साख संस्था और न जाने क्या-क्या? इतने वादे तो मोदी जी ने भी नहीं सोचे होंगे। सच में एक वोट की इतनी कीमत है तो कितना अच्छा होगा। हर पत्रकार का स्वरूप बदल जाएगा। पता चला है कि ज्यादा वोट दिलवाने वालों को बाइक और स्मार्ट फोन भी मिलेगा। पत्रकारों के अच्छे दिन के ऐसे ख्वाब दिखाने वाले लोगों पर रोजाना सोशल मीडिया वाले किरकिरे हमले हो रहे है, लेकिन इसकी चिंता और जमीनी हकीकत से वे रूबरू ही नहीं है। सिर्फ पत्रकारों को अच्छे दिन लाने के ख्वाब दिखाने वाले मोदी की तर्ज पर चल पड़े हैं, लेकिन वे इन हमलों से कुछ सीख नहीं ले पा रहे हैं। हाल ही में एक पैनल द्वारा जारी किए गए घोषणा पत्र की व्हाट्सएप पर काफी आलोचनाएं हो रही है। लोग लगातार व्हाट्सएप हमले कर रहे हैं। कहीं-कहीं तो उम्मीद्वारों पर ही खासे जोग्स कसे जा रहे हैं। कई मैसेज तो तीखे और खतरनाक वाले हो चले हैं। कई जगहों पर मौखिक विरोध भी हो रहा है, जैसे:- मकान-जमीन और भूखंड दिलाने के आसमानी ख्वाब दिखाने वाले ये भूल गए कि बियावानी के भूकंप में मालिनी की कितनी किरकीरी हो रही है और वह खुद मैयर होकर लोगों को अच्छी जगह उपलब्ध नहीं करवा पा रही है, तो महज प्रेस क्लब अध्यक्ष बनते ही लोगों को कैसे अच्छे और सस्ते दामो में आशियाने मिल सकते हैं। कमेंट्स करने वालों का कहना है कि लोगों को जमीन और भूखंड तो हम भी दिलवा सकते हैं और उसके लिए किश्तें ही तो भरना है। ये किश्ते कौन भरेगा? ऐसे ही कई और भी जुमले बनकर सामने आने लगे हैं, जिससे पैनल का विरोध साफ दिखाई देने लगा है। एक जुमला चला है कि 451 उन लोगों के वापस आने पर बधाई कैसी जो फर्जी पत्रकार थे। क्या उनके दम पर पैनल अपना चुनाव जीतना चाहेगी, जो कभी कुत्ते बिल्ली बेचते थे तो कोई सिनेमा घर का टिकट बेचता था या कोई ऐसा फर्जी सदस्य जो एक डॉक्टर की झूठन चाटने वाला है और खुद को एक नामी अखबार का पत्रकार बताता था, लेकिन उस नामी अखबार के पत्रकारों ने कई बार उस फर्जी को धुत्कार दिया। इन जुमलों के साथ पैनल के विरोध के स्वर भी सामने आ गए हैं और व्हाट्सएप से लेकर मैदानी चर्चाओं तक कहानियों ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है। अब दूसरी पैनल के घोषणा पत्र का भी इंतजार है। यदि वह प्रैक्टीकली ठीक रहा तो ठीक वरना उसके लिए भी कई कमेंट्स तैयार हो जाएंगे। आखिर में बात यही कि पत्रकारों के कभी अच्छे दिन नहीं आएंगे। 50 बाइक और 300 स्मार्ट फोन आने की खबर भी मैदान में जोर पकड़ रही है, लेकिन क्या महज एक वोट डालने से पत्रकार को मकान, हाइटेक हॉल, बाइक, मोबाइल, घर के बुजुर्गों को तीरथ यात्रा मिल सकती है। यदि ऐसा है तो लोगों को तो खुलेआम पैनल को जिताना चाहिए, ताकि वे और अच्छे वादे करें व लोगों को सुविधाएं दिलाएं। सोर्स:- चुनावी चकल्लस के व्हाट्सएप संदेश और मैदानी हलचलों की जानकारी। मल्हार मीडिया को मिले एक पत्र पर आधारित


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